गाना-जल जंगल ज़मीन ,जल जंगल जमीन जल जंगल ज़मीन ये भैया, संविधान कहता है अब से ,जीने का हक भारी सबसे इसे जल्दी लो छीन इसे जल्दी लो छीन इसे जल्दी लो छीन ये भैया ,जंगल जमीन ये भैया दोस्तों आज विश्व पार्यावरण दिवस है और यह गाना मैंने इस दिवस के लिए गया है विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। आज के दिन पार्यावरण की जमकर बातें हो रही है और सबसे ज्यादा जो बात होती है वो है पौधारोपण की क्योंकि एक साल में सरकारी अधिकारी और कर्मचारी और राजनैतिक लोग पेड़ लगाते हैं एक पेड़ को पकड़ कर कमसे कम दस दस लोग फोटू खिंचवाएंगे मुस्कुराते हुए फिर सोसल मीडिया में डालते हैं और जब कमेंट आयेंगे तब मारे खुशी के फूल कर बादर हो जाते हैं ऐसे लगता है मानो यही प्रकृति के रखवाले है लेकिन ये सोचना गलत है अरे ये तो दूसरे दिन ही भूल जाते हैं पार्यावरण के बारे में लेकिन मैं पूछना चाहती हूं कि क्या यह सही है ?इस प्रक्रिया पर सवाल क्यो नहीं उठते हैं,क्या सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए ही पार्यावरण मनाना चाहिए या इसके आगे और भी जिम्मेदारी बनती है यही फोटो खिंचवाने वाले फिर भूल जाते हैं कि जिन पौधे को पकड़ कर फोटो खिंचवाई है वह मर गया या जिंदा है पेड़ों के कटान बराबर हो रहे हैं नदियों का सीना चीर कर बालू निकाली जा रही है जिस वजह से पानी की कमी भी हो रही है ताजी बालू को लाद कर ट्रको को जब लाया जाता है तो बालू से सैकड़ों टैंक पानी बहता है सकडो में और जनता इसको भुगतती है उसको अपनी प्यास बुझाने के लिए एक एक बूंद को तरसना पड़ता है प्रकृति को नुक्सान पहुंचाने वाले सिर्फ और सिर्फ बालू माफिया उद्योगपति और राजनैतिक लोग हैं इन्होंने सिर्फ अपनी जेब भरने और काला बाजारी की है प्रकृति के साथ चाहे फैक्ट्रियों से निकला धुआं हवा को बर्बाद करने का मामला हो फैक्ट्रियों का गंदा पानी के बड़े बड़े नाले नदियों में छोड़ने का मुद्दा या बड़ी बड़ी गाड़ियों से निकलती आवाज़ ध्वनि को बर्बाद करने का मामला हो इनको नुकसान यही लोग पहुंचाते हैं और अपने आधुनिक सुख-सुविधाओं का लुप्त उठाते हैं आखिर इनके ऊपर कौन कार्यवाही करेगा कौन आवाज़ उठायेगा गिने चुने लोग अगर आवाज भी उठाते हैं तो धमकी के बल पर उनकी आवाज को भी बंद कर दिया जाता है ,प्रकृति के साथ जिस तरह का घोर अन्याय होता है उसी का खामियाजा आज पूरी दुनिया भुगत रही है पूर्व डीएम हीरा लाल ने अपनी वाहवाही के लिए बांदा में जल आरती करवाया बोले नदी को इसे बचाया जा सकता है लेकिन नदियों में लगे गंदे नाले को बंद करवाने की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी ,कुओं और तालाबों को पुजवाया लेकिन टूटे पड़े कुआं और तालाबों को खोदवा कर उसमें पानी भरवाने के बारे में वो नहीं सोचें ,हजारों हज़ारों की संख्या में पेड़ लगवाया लेकिन बाद में ये पेड़ कैसे बचेगें इनकी देखभाल कौन करेगा इसके बारे में वो नहीं सोचें। हां एक चीज का उन्होंने जमकर फायदा उठाया है खूब फोटो खिंचवाई,विडियो बनवाया मीडिया में अपनी वाहवाही छपवाई और बन गये हीरो जिसकी वजह से उनका नाम वर्ल्ड की किताब में दर्ज हो गया बड़े बड़े मंचों में वो सम्मानित हुए आवार्ड जीते ।ये खुशी तो उनके अंतर्रात्मा को खुश और शान्ति दी होगी लेकिन प्रकृति को कदापी नहीं आज भी बुन्देलखण्ड पहले जैसी ही प्यास से तड़प रहा है अगर प्रकृति का हित सोचा है तो वो हैं ग्रामीण गरीब आदिवासी और कुछ समाज सेवी हमने कयी ऐसे लोगों की स्टोरी की जो प्रकृति को अपने बच्चे की तरह पाला है बुंदेलखंड के चित्रकूट जिला के भरतकूप में एक ब्यक्ति से हम मिले जिन्होंने हजारों हज़ारों की संख्या में पेड़ लगाये हैं पूरा जंगल उनकी वजह से जीवित है और लोगों को सांस लेने के लिए सुद्ध हवा दे रहा है ,महोबा में एक ब्यक्ति है वो लोगों की और जानवरों की प्यास बुझाने के लिए अपने निजी बोर से नदियां में पानी भरते हैं तो ऐसे प्रेरणा दायक लोगों से हमारे अधिकारियों और सरकार और राजनैतिक लोगों को सीख लेने की जरूरत है प्रकृति को बचाने की जरूरत है ताकि आने पीढ़ी भी हम सबको दोषी न ठहराये, तो आप भी चर्चा करिए सवाल उठाइये, प्रकृति से प्रेम करिए प्रकृति को अपना परिवार समझिए क्योंकि अगर प्रकृति जिंदा नहीं रहेगी तो आप और हम भी जिंदा नहीं रहेगें