आज विश्व साइकिल दिवस के अवसर पर हम आपको एक ऐसे ही महिला की कहानी बताने वाले हैं जिन्होंने 45 साल की उम्र में साधन के खर्च को बचाने के लिए साइकिल को अपना सहारा बनाया और आज वो पूरे गाँव में एक मिसाल बन चुकी हैं।
जिला महोबा के ब्लॉक जैतपुर के गाँव लाडपुर की रहने वाली शकुंतला का कहना है कि बड़े शहरों में सभी महिलायें मोटरसाइकिल और गाड़ियां चलाती हैं जिनको देखकर उनका भी साइकिल चलाना सीखने का मन कर गया। लॉकडाउन में जब घर में पैसों की किलात हुई तो उनके पास मज़दूरी करने के लिए काम पर जाने तक के पैसे नहीं होते थे और सारे वाहन बहुत किराया मांगते थे। जिसके बाद उन्होंने साइकिल चलाना सीखने की ठानी। वो साइकिल चलाकर ही फिर काम पर जाने लगीं।
उनका कहना है कि गाँव वाले उन्हें साइकिल चलाता देख कई बार हँसते भी थे लेकिन उन्होंने सबकी बातों को नज़रअंदाज़ कर सिर्फ अपने काम पर ध्यान दिया। उनका कहना है कि वो साइकिल शौक से नहीं लेकिन मजबूरी से चलाती हैं। हाल ही में उनकी साइकिल पंक्चर हो गयी और मज़दूरी का काम बंद होने के कारण उनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वो अपनी साइकिल को ठीक करा सकें। लेकिन अभी भी उनके अंदर काम पर जाने की लगन बिलकुल भी काम नहीं हुई है। शकुंतला को उम्मीद है कि जैसे ही लॉकडाउन हटेगा उनको दोबारा से रोज़गार मिलेगा और वो वापस से अपनी साइकिल चला पाएंगी।
शकुंतला की कहानी सुनके हम आशा करते हैं कि आप भी साइकिल चलाने के लिए प्रेरित हुए होंगे। और अपनी सेहत बनाने के साथ-साथ प्रकृति को स्वस्थ्य रखने में भी अपना योगदान देंगे।
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