महिलाओं के ऊपर काम और जिम्मेदारी का इतना बोझ होता है कि वे अपने बारे में न कुछ सोच पाती है और न ही कुछ कर पाती है। कुछ महिलाएं ऐसी होती है जो काम करते समय अपनी पड़ोस की महिलाएँ सब से बातचीत करती है, हंसती-बोलती है। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के मऊ ब्लॉक के गांवों जैसे कि उसरी और कोलमजरा में आज भी महिलाएं जंगलों से कुछ पतली तीलियाँ को चुनकर लाती हैं और उसे जोड़कर झाड़ू बनाती हैं, जिसे ग्रामीण भाषा में बढ़नी कहा जाता है।
महिलाओं के चेहरे पर आयी मुस्कान से आप ये अनुमान लगा सकते हैं कि झाड़ू बनाना उनको कितनी खुशी देता है। महिलाएं बढ़नी बनाने का काम खासतौर से दीपावली के बाद शुरू करती हैं और साल भर घर की सफाई में यह बढ़नी उनके काम आती है।
जंगल जाना महिलाओं को देता है ख़ुशी
जब महिलाएं जंगल जाती हैं, तो यह उनके लिए एक तरह से मनोरंजन का समय भी होता है। वे जंगल में बेर खाते हुए, एक-दूसरे के साथ दुःख-सुख की बातें करती हैं। इस समय को वे मजे से बिताती हैं और एक दूसरे के साथ सामूहिक रूप से बढ़नी काटने का काम करती हैं। यह एक सामाजिक गतिविधि भी बन जाती है, जिसमें महिलाएं अपने रिश्तों को मजबूत करती हैं और परंपराओं को आगे बढ़ाती हैं।
कुशा से बढ़नी (झाड़ू) बनाने की प्रक्रिया
गांव के लोगों को कहना है प्राचीन समय से झाड़ू का इस्तेमाल होता आ रहा है क्योंकि यह सस्ती और टिकाऊ होती है। बढ़नी बनाने के लिए कुशा घास का प्रयोग किया जाता है जो आमतौर पर ग्रामीण इलाकों में खुद ही उग जाती है। बढ़नी काटने के बाद, इसे सूखने के लिए रखा जाता है और फिर महिलाएं मिलकर इसे छीलती हैं। बढ़नी के इस छिलके से झाड़ू बनाने का काम काफी मेहनत का होता है, लेकिन इसका कोई खर्चा नहीं आता।
महिलाएं इस काम में सामूहिक रूप से जुटती हैं, और इस प्रक्रिया में न सिर्फ घर के कामकाजी बोझ को हल्का करती हैं, बल्कि साथ ही एक-दूसरे से मिलकर बातचीत भी करती हैं।
घर में बढ़नी (झाड़ू) लगाने के लाभ
बढ़नी का उपयोग घर की सफाई में किया जाता है। महिलाएं पूरे साल भर के लिए झाड़ू तैयार कर लेती हैं और फिर एक-एक करके घर में झाड़ू लगाती हैं। इस बढ़नी से घर बहुत अच्छे से साफ होता है और घर की सफाई में कोई खर्चा नहीं आता। यह तरीका ना सिर्फ सस्ता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधनों से तैयार होता है।
इस परंपरा से यह भी साबित होता है कि किस तरह महिलाएं अपनी मेहनत और सामूहिक प्रयासों से घर के कामों को आसान और खुशहाल बनाती हैं। झाड़ू न सिर्फ एक घरेलू उपयोगी वस्तु है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। इस बढ़नी के पीछे छिपी मेहनत और सामूहिकता की भावना ग्रामीण जीवन की सादगी और समृद्धि को दर्शाती है।
हालांकि आजकल शहरी इलाकों में प्लास्टिक झाड़ू का प्रचलन बढ़ गया है, लेकिन इन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बढ़नी से घर साफ़ किए जाते हैं। बढ़नी बनाने का यह काम महिलाओं को शारीरिक श्रम करने और एक दूसरे के साथ समय बिताने का अवसर भी देता है। ग्रामीण महिलाओं की यह मेहनत और रचनात्मकता को दर्शाती है कि छोटे-छोटे कदमों से बड़े बदलाव और खुशियों का एहसास कैसे किया जा सकता है।
रिपोर्ट व तस्वीर – सुनीता देवी, लेखन – सुचित्रा
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’