खबर लहरिया ताजा खबरें महिलाएं चाँद तक पहुंचीं, फिर भी मंदिरों में क्यों नहीं? | पितृसत्ता vs समानता | बोलेंगे बुलवायेंगे

महिलाएं चाँद तक पहुंचीं, फिर भी मंदिरों में क्यों नहीं? | पितृसत्ता vs समानता | बोलेंगे बुलवायेंगे

आज के दौर में महिलाएं चाँद तक पहुँच चुकी हैं, लेकिन पितृसत्तात्मक समाज अब भी कुछ क्षेत्रों पर अपनी बपौती जमाए बैठा है। विशेष रूप से धार्मिक स्थलों और परंपराओं में महिलाओं की भागीदारी को अब भी सीमित किया जाता है, जैसे कि धार्मिक नेतृत्व की कुर्सी—जिस पर आज भी केवल पुरुषों, और विशेषकर पंडितों का ही अधिकार समझा जाता है। यह सोच न केवल लैंगिक समानता के खिलाफ है, बल्कि सामाजिक विकास में भी बाधक बनती है।

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