19 नवंबर 2020 को हर साल अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज इस दिवस पर हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि पुरुषों का घर-परिवार में कितनी भूमिका है या ये कहें कि वे महिलाओं के साथ घर-परिवार के कामों में कितना सहयोग देते हैं। इस बात में कोई शक नहीं कि पुरुष और महिला, दोनों की ही मदद से परिवार बनता है और उसका संचालन भी होता है।
लेकिन कौन क्या काम करेगा, इसका दायरा किस हिसाब से बांटा जाता है कि महिलाओं के हिस्से सिर्फ घर के काम और पुरुषों के हिस्से बाहर के काम आएंगे ?ऐसे में हमारी टीम ने कुछ महिलाओं से बात करके इन सब बातों के बारे में जानने की कोशिश की है। यूपी के जिला चित्रकूट में रहने वाली आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रशीदा बेगम का कहना है कि वह बाहर के कामों के साथ-साथ घर के काम भी करती हैं जिसमें उनके पति घर के कामों में उनका हाथ बंटा देते हैं।
लेकिन उनके अंदर हमेशा यह भाव ज़रूर रहता है कि चूल्हा-बर्तन आदि के काम सिर्फ औरतों के हिस्से हैं, वह चाहें कमा कर लाए या नहीं, यह सब काम करना पुरुषों के हिस्से में नहीं आता। प्रगति सामजिक संस्थान की मंत्री शहरोज़ फातिमा कहती हैं कि काम पर जाने से पहले वह सुबह बच्चों के लिए चाय, नाश्ता, दोपहर का खाना सब इंतज़ाम करके जाती हैं। फिर घर वापस आने के बाद रात के खाने की भी वही तैयारी करती है। हमने चित्रकूट के पन्ना जिले के राजापुर गाँव की महिला से भी बात की।
उनका भी यही कहना था कि पुरुष कहने पर भी उनके कामों में हाथ नहीं बंटाते। सारा दिन सिर्फ वही काम में लगी रहती हैं। चाहें वह बाहर जाकर काम करने वाली महिला हो या फिर गृहस्थी को संभालने वाली महिला, घर के सारे कामों की ज़िम्मेदारी उन्हीं के सर पर है। कहते हैं कि रथ के दो पहिए पति-पत्नी होते हैं। दोनों साथ मिलकर चले तभी रथ सही से चलता है।
तो फिर परिवार और गृहस्थी को सँभालने की ज़िम्मेदारी सिर्फ महिलाओं के हिस्से ही क्यों ? आर्गेनाईजेशन फॉर इकनोमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट डाटा की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाएं हर दिन घर के कामों में 352 मिनट बिताती है, वहीं आदमी सिर्फ 52 मिनट ही काम करते हैं। ( स्त्रोत – शी द पीपल, 14 फरवरी 2020 , वूमेंस चैनल)इन आंकड़ों से आपको भी यह बात साफ़ हो गयी होगी कि पुरुषों का घर में कितना सहयोग है।