खबर लहरिया Blog महोबा की महिलाएं इच्छा नवमी के दिन क्यों करती हैं आंवलें के पेड़ की पूजा, अंधविश्वास या रिवाज़ ?

महोबा की महिलाएं इच्छा नवमी के दिन क्यों करती हैं आंवलें के पेड़ की पूजा, अंधविश्वास या रिवाज़ ?

women in mahoba worshiping amla tree

जिला महोबा ब्लॉक और क़स्बा जैतपुर (बेलातालकी महिलाएं आज 23 नवंबर का दिन इच्छा नवमी के रूप में मनाती हैं। यह कार्तिक महीने में मनाया जाता है। सबसे पहले महिलाएं परंपरा के अनुसार अवरी यानी आंवले के पेड़ के नीचे चावल और चूड़ी रखती हैं, फिर पेड़ को सिंदूर से टीकती हैं। पूजा करने के बाद सारी महिलाएं फिर साथ में पेड़ के नीचे बैठकर खाना खाती हैं। 

आंवले के पेड़ के नीचे खाना, माना जाता है शुभ 

गुलाब रानी का कहना है कि साल भर में एक दिन अवरी के पेड़ के नीचे खानाखाना बहुत शुभ होता है। वहीं शकुंतला देवी का कहना है कि पूजा से पहले आंवले का अचार ना ही रखना चाहिए और ना ही खाना चाहिए क्यूंकि वह जल्दी खराब जाता है। उनका कहना है कि पुराने समय में लोग कहते थे कि पूजा के बाद आंवला खाने से आंवले का स्वाद काफी बढ़ जाता है और वह लम्बे समय तक खराब भी नहीं होता।  

पूजा से पहले तो छू सकते हैं और ना ही खा सकते हैं 

women in mahoba worshiping amla tree

जिस तरह समाज में अन्य चीज़ों के लिए रीतिरिवाज़ होते हैं। वैसे ही पेड़पौधों के लिए भी रीतिरिवाज़ हैं। जैसेमहिला द्वारा जब नए बच्चे के जन्म देने पर उसे नहीं छुआ जाता। ठीक वैसा ही, आंवले के पेड़ को भी माना गया है। साथ ही पेड़ को लेकर यह भी मान्यता जुड़ी है कि अगर महिलाएं आंवले के पेड़ के चक्कर लगाती हैं तो या तो उस पेड़ पर फल बिल्कुल भी नहीं आते या तो बहुत कम आते हैं। बच्चे आंवले के अचार को कभीभी खा सकते हैं, वहीं महिलाएं सिर्फ पूजा के बाद ही आंवले को खा सकती हैं। 

पुरुष नहीं मानते परम्पराओं को 

गाँव के ही स्थानीय व्यक्ति मुन्ना ने बताया कि वह और अन्य पुरुष इन परम्पराओं को नहीं मानते। सिर्फ महिलाएं ही इन परम्पराओं को मानती हैं और उनका पालन करती हैं। उनकी सोच हमसे काफी अलग है इसलिए हम उनसे कुछ नहीं कहते। महिलाओं द्वारा परंपराओं को मानने को हम गलत नहीं कह सकते। लेकिन परंपरा और रीतिरिवाज़ के नाम पर अंधविश्वास को मानने को गलत कहा जा सकता है। आखिर ऐसा रिवाज़ बनाया किसने ? और वह भी सिर्फ महिलाओं के लिए क्यों बनाया गया ? इसे देखकर तो बस यही लगता है कि इन परम्पराओं को बस महिलाओं को सुख से वंचित रखने के लिए बनाया गया है। जिनका शिकार आज भी कई महिलाएं हैं जो रिवाज़ के नाम पर अंधविश्वास का पालन करती रही हैं। आखिर कब तक महिलाएं परंपरा और रीतिरिवाज़ के नाम पर अपने सुखों का त्याग करती रहेंगी ?