उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में दहेज प्रथा के नाम पर ईंट-भट्टे पर काम कर रही डॉली को जला दिया गया। ऐसे तो वह बच गईं लेकिन आज तक वो अपने जीवन में न्याय के लिए लड़ रही हैं। खुद से कमा कर अपना जीवन चला रही हैं।
रिपोर्ट – सुशीला देवी
दहेज के नाम पर न जाने कितनी लड़कियों ने अपनी जान दी और कितनी लड़कियों की जान ले ली गई। कहीं लड़कियों को दहेज के नाम पर पीटा जा रहा है तो कहीं उन्हें जलाया जा रहा है। कुछ दहेज के मामले खबरों में आते हैं तो कुछ इज्जत के नाम पर घर में ही दबा दिए जाते हैं। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में दहेज प्रथा के नाम पर ईंट-भट्टे पर काम कर रही डॉली को जला दिया गया। ऐसे तो वो बच गई लेकिन आज तक वो अपने जीवन में न्याय के लिए लड़ रही है। खुद से कमा कर अपना जीवन चला रही है।
ईंट-भट्टे पर काम करने वालों की इतनी कम मजदूरी (वेतन) होती है कि पेट चल जाए। इससे ज्यादा बजट नहीं होता है लेकिन फिर भी वो सदियों से चली आ रही इस रीत को निभा रहे हैं। दहेज के खिलाफ आवाज उठाने वालों की कोई नहीं सुनता मजबूरन उन्हें भी दहेज देकर ही शादी करनी पड़ती है। दहेज के लिए प्रताड़ित करने वाले लोगों की किसी थाने में रिपोर्ट भी नहीं दर्ज होती है और अगर दर्ज हो भी जाती है तो उन्हें न्याय के लिए भटकना ही पड़ता है।
आजमगढ़ की रहने वाली मालती देवी का कहना है कि “आज से 6 साल पहले अपनी बेटी की शादी जौनपुर के रहने वाले आनंद से किया था। दहेज में साइकिल, घड़ी और बर्तन दिया था क्योंकि हम लोगों का इतना बजट नहीं है जो गाड़ी दे पाए। गाड़ी को लेकर के लगातार झगड़ा-मारपीट बेटी के ऊपर करते थे। मेरी तीन बेटियां है। उसमें से पहली बेटी जो डॉली थी उनकी शादी मैंने आनंद से की थी। एक दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि ससुराल वालों ने ही मिलकर के मिट्टी का तेल डालकर के बेटी को जला दिया। जब वह जलने लगी तो आसपास के लोगों द्वारा सूचना मिली कि आप की लड़की को जला दिया गया है। हम लोग जब पहुंचे तो अपनी बेटी को वहां से ले आए और अस्पताल में भर्ती करा दिया। हमने बेटी के न्याय के लिए थाने तक गए लेकिन रिपोर्ट ही नहीं दर्ज हुई।”
दहेज के लिए आग में झोंका
डॉली का आरोप है कि “शादी होने के 6 महीना बाद ही लगातार झगड़ा करने लगे हालांकि खाना ना देना, मारना-पीटना यह आए दिन का काम था। मैं ईंट-भट्टे पर काम करती थी और जब मैं काम करके अपने मडईया में सोई थी। अचानक मेरा पति आकर के मेरे ऊपर तेल डाल करके जला दिया। मैंने चिल्लाया तो वहां आस पास के लोग आए और उन्हीं के द्वारा मेरे मायके वालों को पता चला। लोग हॉस्पिटल ले गये तब मेरी जान बची। मेरा एक साल का बेटा भी है। लगातार झगड़े के कारण मेरा मन कहता था कि मैं यहां से छोड़कर के मां-बाप के यहां चली जाऊं। मां-बाप भी वही ईंट-भट्टे पर काम करते थे। कब तक मैं बोझ बनी रहूंगी यह सोचकर मैं ससुराल में ही काम करती रही। मेरे पति के सिवा घर के सास-ससुर का भी उसमें पूरा हाथ था क्योंकि वह भी लोग बात-बात पर लड़ जाते थे। अगर दहेज चाहिए था तो शादी के पहले बोलना चाहिए था। जब लड़कियां शादी करके घर जाती है तो दहेज चाहिए।”
दूसरी शादी करने से मिली राहत
शादी के बाद एक महिला का फिर से शादी करना, समाज कभी स्वीकार नहीं करता। हालांकि आज समय में थोड़ा बदलाव आया है। डॉली ने बताया कि “आज मेरी दूसरी शादी मुक्ति गंज जौनपुर के भोले से हुई है और मेरे दो बेटे भी हैं। वहां से मैं छोड़कर के वाराणसी जिले में गोसाईपुर ईंट-भट्टे पर काम करती हूं। जब बारिश होती है तो काम बंद हो जाता है। यहां पर मडईया लगाकर के रह लेती हूं पर वहां नहीं जाती हूं। 2 सालों में मैंने काफी झेला। शायद मुझे दो वक्त की रोटी भी अच्छे से नहीं मिल पाती। अब मैं काम रही हूं और कमा भी रही हूं।”
समाज की सोच से लड़ी लड़ाई
समाज की सोच से आज तक महिलाएं लड़ रही हैं। डॉली बताती है कि “समाज की सोच इतनी गंदी है कि वह जीने नहीं दे रहा है। अलग-अलग तरीकों से बात करता है। कहीं चरित्र पर आवाज उठाता है तो कहीं कुछ कहता है। हम महिलाओं को कब जीने का अधिकार मिलेगा? कब खुलकर जिएंगे?”
ऐसे ही हिंसा लड़कियों के साथ होती है तो ससुराल से लेकर मायके तक जो सोच उनकी बनी हुई है वह लगातार लड़कियों के ऊपर ताने मारने से बाज नहीं आती है। क्या लड़की होना इतना गुनाह है? लड़कियों से तो सब चीज है लेकिन फिर भी यह समाज की सोच इतनी नीचे है कि लड़कियों को आज भी बोझ समझा जाता है वो भी इस दहेज के कारण।
दहेज के लिए सोच बदलने की आवश्यकता
पति भोले का कहना है कि “लोग चाहे जो बोले मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैंने शादी की और अच्छे से हूं, बहुत खुश हूं। जो समाज की सोच है शायद वही बदल जाए तो लड़कियां दहेज को लेकर के हर दिन सूली पर नहीं चढ़ती।”
अब तक नहीं मिला इंसाफ
डॉली ने बताया कि “बछापुर थाना में ससुराल वालों के खिलाफ दहेज हत्या, जान से मारने की रिपोर्ट लिखी। पहले तो रिपोर्ट ही नहीं लिख रहे थे। यह थाने के लोग कह रहे थे कि जाइए आप इलाज कराओ। हो सकता है कि अपने से ही जली होगी। किसी तरह से रिपोर्ट तो उन्होंने हाथ में ली। थाने के चक्कर में घर में रखे गेहूं-चावल भी बेच दिए। लोगों से भिक्षा भी मांग करके लड़की का इलाज करवाया और कुछ पैसे थाने पर भी दिए। उसके बावजूद भी मुझे न्याय नहीं मिला।”
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