नमस्कार दोस्तों द कविता शो के इस एपिसोड में आपका स्वागत है। क्या आप भी गेहूं खरीदने गल्ला मंडी गये थे? क्या आपको गल्ला मंडी में गेहूं मिला? नहीं न। चैत्र के बाद बैसाख जेठ अषाढ़ तक मंडी अनाज और किसानों से गुलजार हुआ करती थी। लेकिन अब तो मंडी के अंदर घुसो तो डर लगता है। कहते हैं न जब पाप का घड़ा भर जाता है तो फूटता जरूर है और वही हो रहा है।
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इस बार किसान अपना अनाज सरकार को नहीं बेंच रहें हैं। कारण है कि सरकार किसानों का गेहूं सस्ते दाम में खरीदना चाहती और नगद भुगतान भी नहीं करती है। सैकड़ों किसानों का पैसा पिछ्ले साल का बकाया पड़ा है। किसान बुरी तरह से आहत हो चुका है। साल भर खून पसीना बहाता है, कभी फसल अच्छी होती है कभी प्रकृति की मार से उससे भी हाथ धोना पड़ता है। और ऊपर से अनाज का मूल्य नहीं मिलता। मजबूरी में अगर अनाज मंडी में बेंच दिया तो पैसा खाते में जाते हैं और जिनका क्रेडिट कार्ड का क़र्ज़ बकाया है उसको बैंक काट लेती है।
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इन सब कारणों के चलने इस बार किसानों ने सरकार को सबक सिखाया। अपना गेंहू प्राईवेट व्यापारियों या फिर जिनको जरूरत है उनको बेंच दे रहे हैं और नगद पैसे भी मिल जा रहे हैं। इस बार सरकार अपने खरीद लक्ष्य से कोसों दूर है। अब सवाल ये उठता है कि सरकार के पास अगर गेहूं नहीं होगा तो मिड्डेमील योजना, खाद्य सुरक्षा योजना (राशनकार्ड) और सेना के जवानों को कहां से अनाज पूरा करेगी? क्या सरकार किसानों के सामने झुकेगी? उचित मूल्य और समय पर भुगतान के बारे में सोचेगी? क्योंकि मामला तो अब गम्भीर हो चुका है और ये सिर्फ बुंदेलखंड बस की बात नहीं है। एक राज्य की बात नहीं है। ये मामला अंर्तराष्ट्रीय बन चुका है। कहीं ये असर किसानों के आंदोलन का तो नहीं है?वैसे मैं तो खुश हूं किसानों के फैसले से। गांव की जनता भूखी नहीं मरेगी क्योंकि गांव का किसान अपना अनाज गांव और जनता के बीच बेंच रहा हैं।
दोस्तों आपको क्या लगता है इस मुद्दे पर क्या आपके पास भी कुछ सवाल है? आप मुझे जरुर से बतायें। अगर मेरे शो की चर्चा आपको पसंद आई है तो अपने दोस्तों के साथ जरुर से सेयर करिय। और हां ये शो आपको कैसे लगा अपने राय कमेन्ट और सुझाव जरुर से भेजना। तो इस बार के शो में इतना ही अगले एपिसोड में फिर मिलूंगी कुछ करारी बातों के साथ तब क्त के लिए दीजिये इजाजत नमस्कार।
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