कांग्रेस में अब सियासी जंग के बाद , आपस में तनाव की समस्या बढ़ती जा रही है। कांग्रेस के नेता पार्टी द्वारा किए जाने वाले कामो से खुश नहीं है। यहां तक की पार्टी कार्यकर्ताओ ने सोनिया गाँधी को लेकर अपनी नराज़गी भी ज़ाहिर की है । लगातार कांग्रेस की बिगड़ती छवि को देखते हुए पार्टी में सब ने एक–दूसरे पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए है। डर ये भी है कि कही उठते सवालों से पार्टी में दरार न आ जाए।
23 वरिष्ठ नेताओ ने लिखे पार्टी में बदलाव को लेकर पत्र
कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओ ने पार्टी में बदलाव और समस्याओ को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र लिखा। जिसमें पांच पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य, सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शामिल हैं। पत्र में सोनिया गाँधी से पार्टी में ऊपर से लेकर नीचे तक बदलाव करने की मांग की गयी। साथ ही पत्र में यह बात भी मानी गयी कि भाजपा बहुत ही तेज़ी से लोगो के बीच नया चेहरा बन गयी है। ज़्यादातर युवाओ पर भाजपा का असर देखने को मिला है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कांग्रेस जल्द ही युवाओ का विश्वास खो बैठेंगी। जो की बहुत ही चिंता का विषय है।
किन नेताओ ने पत्र को लेकर दी अपनी मंज़ूरी ?
पार्टी में पूरी तरह बदलाव लाने के लिए हस्ताक्षर द्वारा कांग्रेस नेताओ ने अपनी –अपनी मंज़ूरी दी। इसमें राज्यसभा के विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद, पार्टी के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, सांसद विवेक तन्खा, एआईसीसी के पदाधिकारी और सीडब्ल्यूसी के सदस्य मुकुल वासनिक साथ ही जितिन प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शामिल हैं। जिनमें भूपिंदर सिंह हुड्डा, राजेंदर कौर भट्टल, एम वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज भवन, पी जे कुरियन, अजय सिंह, रेणुका चौधरी, और मिलिंद देवड़ा भी हैं। पूर्व पीसीसी प्रमुख राज बब्बर (यूपी), अरविंदर सिंह लवली (दिल्ली) और कौल सिंह ठाकुर (हिमाचल), वर्तमान बिहार अभियान प्रमुख अखिलेश प्रसाद सिंह, हरियाणा के पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा, दिल्ली के पूर्व स्पीकर योगानंद शास्त्री और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित। इन सभी ने सोनिया गाँधी को लिखे हुए पत्र पर हस्ताक्षर किए और पार्टी को लेकर अपनी चिंता और राय रखी।
नेताओ को नहीं है खुद के फैसले लेने का अधिकार
पत्र में सोनिया गाँधी को लेकर कहा गया कि नेताओ को कोई भी फैसला पूर्ण रूप से लेने की आज़ादी नहीं दी गयी है। साथ ही पार्टी में नेताओ और राज्य अध्यक्षों की नियुक्ति भी देरी से की जा रही है जिसकी वजह से पार्टी सही तरह से काम नहीं कर पा रही है। अभी तक जितनी भी बातें सामने आयी हैं उससे तो यही लगता है की कांग्रेस के नेताओ को सोनिया गाँधी से ज़्यादा शिकायते है। वही राहुल गाँधी को लेकर पत्र में कुछ नहीं कहा गया। साथ ही यह बात भी कही जा रही है कि जिस वक़्त देश में पार्टी द्वारा किए जाने वाले कामो की सबसे ज़्यादा ज़रुरत है , उसी वक़्त पार्टी में गिरावट देखने को मिल रही है। इस वक़्त देश आर्थिक और सामाजिक समस्याओं के बीच फंसा हुआ है। वही राजनीतिक पार्टियों की समस्याएं खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है।
क्या सोनिया गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ देंगी ?
पत्र मिलने के बाद सोनिया गाँधी का कहना था कि कांग्रेस उनके लिए एक बहुत बड़ा परिवार है और वह ऐसा कुछ भी नहीं करेंगी जिससे की उनके परिवार को कोई परेशानी हो। बाद में यह बात भी कही जा रही थी कि सोनिया गाँधी अपने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देगी। हालाँकि अभी तक ऐसा कुछ हुआ नहीं है। पार्टी में उथल –पुथल को देखते हुए 24 अगस्त को सोनिया गाँधी ने कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक बुलाई। बैठक में यह बात भी कही गयी की जब तक छः महीने के अंदर ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की बैठक नहीं होती तब तक सोनिया गाँधी अध्यक्ष पद पर बनी रहेंगी। वहीं सोनिया गाँधी अपना पद छोड़ने पर अड़ी हुई हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वरिष्ठ नेता ए के एंटनी ने सोनिया गाँधी से गुज़ारिश की , कि वह फिलहाल पद पर बनी रहे।
पार्टी में तनाव इतना बढ़ गया है कि अब खुद सोनिया गाँधी अध्यक्ष पद पर बने रहना नहीं चाहती। उन पर उन्ही के पार्टी के कार्यकर्ता और नेता उनके कामो पर सवाल उठा रहे है। क्या इसे सोनिया गाँधी की हार समझी जाए की वह खुद की ही पार्टी को संभालने में नाकामयाब रही है। उन्ही के कार्यकर्ता उनके फैसलों से खुश नहीं है। अगर पार्टी में तनाव और मतभेद की हवा ऐसे ही बहती रही, तो पार्टी को टूटने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा। क्या कांग्रेस अपने नेताओ के अनुसार पार्टी में बदलाव ला पाएगी। साथ ही कांग्रेस किसे चुनेगी अपना अगला अध्यक्ष। यह सवाल अभी तक चिंता का विषय बना हुआ है।