सरकार ने भले ही प्रवासियों के लिए योजना चलाई हो, जिससे अब पलायन रोका जा सके, पर मजदूरो की स्थिति बहुत ही बुरी है। पूरे लॉक डाउन में मजदूर इधर से उधर भटकते नजर आए है। लोगो के घर मे पेट भर खाने के लिए भोजन नही मिला। जैसे ही पहला अनलॉक खुला, प्रवासियों का पलायन फिर से चालू हो गया, किड़ारी गाँव के राजेन्द्र कुमार ने बताया कि हम लोग करीब 20 साल से पलायन कर रहे हैं।
हमारे पास ना तो कोई खेती है, ना ही कोई रोजगार, जिससे अपने परिवार का भरण पोषण कर सके। परिवार भी हमारा बड़ा है इसलिए हम सब लोग पलायन के लिए दिल्ली पंजाब जाते है। लॉक डाउन में हम लोग 7 साल बाद अपने घर वापस आये थे। अब दीपावली बाद फिर चले जायेंगे। लॉक डाउन भर हमारे परिवार को पेटभर खाना नही मिला ऐसे दिन गुजारे है हमने।
हमें कोई सरकारी योजना का लाभ नही मिला, न कोई राशन किट, न कोई पैसा। रेखा ने बताया कि बचपन से बहुत शौक था कि पढ़ाई कढ़ाई सिलाई सीखू, जिससे कुछ काम कर सकूं। मायके में इतनी गरीबी थी। 6 बहन थे पापा मजदूरी करते थे इसलिए कुछ नही कर पाए। 16 साल में हमारी शादी हो गई, ससुराल में भी कुछ नही था। इसलिए पलायन करने लगे।
लोगो के घर मे झाड़ू पोछा का काम करते है। महीने में 2 हजार रुपये मिल जाता है, जिससे घर खर्च चलता है। पति बेलदारी का काम करते है। उनको कभी काम लगता है कभी नही लगता तो बैठे रहते है। 6 महीना हो गए वापस आये, यहां पर कोई काम नही लगा। थोड़ी बहुत लोगो के खेत मे काम लगा तो वही किया है। अब कोई काम नही है। हमारे खाता तो है पर उसमे पैसे नही है।
लॉक डाउन में घर आये कह रहे थे कि मोदी पैसा भेजेगा। पर हमारे खाते में एक रुपये नही आया। न ही खाने की कोई सामग्री मिली है। राशनकार्ड में भी हमारे पति और हमारा राशन मिलता है। बच्चों का राशन भी नही मिलता। हमारा न तो गांव में मजदूरी कार्ड बना है और न दिल्ली में। प्रधान से कहते है तो वो कहता है कि आप कौन यहां रहते है जो यहां का जॉब कार्ड बनवाएं।
अब पलायन तो करना ही पड़ेगा, क्योंकि यहां गुजारा नही चलने वाला। जितने दिन यहां है लोगो से कर्जा लेकर पेट पाल रहे है। जब जाएंगे और मजदूरी करेंगे फिर उनका कर्जा चुकाएंगे। सेवनियोजन अधिकारी राममूर्ति ने बताया कि लगातार हमारी डीएम और अन्य अधिकारियों के साथ मीटिंग हो रही है। जिससे ज्यादा ज्यादा प्रवासियों को रोजगार दिला सके।
हमारी पूरी कोशिश है कि लोग पलायन न करें। पर लोगो की भी मजबूरी है पलायन करने की। क्योंकि यहां पर उस तरह का रोजगार नही मिल पा रहा है। बाहर कंपनियों को भी मजदूरो की जरूरत है इसलिए वो खुद बस भेजकर मजदूरो को ले जा रही है। अब ऐसे में सरकार क्या कर रही है। जब प्रवासी रास्ते पर निकलता था तो मारपीट और मुकदमा लिखाया जा रहा था। पर अब प्रवासी फिर से पलायन कर रहा है और यह बात एक जिम्मेदार अधिकारी मान रहा है। और शासन प्रशासन कुछ नही कर पा रही है। तो क्या माना जाए, सासन की नामयबी या प्रसासन की?