समाज ने न जाने महिलाओं के लिए कितनी परीक्षा रखी हुई हैं। कदम-कदम पर महिलाओं को अपने आप को सही साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी है। चाहें रूप कोई भी हो, किसी ने बोल बोल दिया की किसी महिला के बारे में की इसका चरित्र अच्छा नहीं है बस बिना सच्चाई जाने महिला को चरित्रहीन साबित कर दिया जाता ह। वो चाहें जितना भी सही हो लेकिन समाज उसे जीने नहीं देता।
हम सिर्फ सुनते आए हैं कि अग्नि परीक्षा क्या है, किसने दी होगी दी होगी भी या नहीं या फिर हम सीता की अग्नि परीक्षा याद करते हैं फिर ये बोल कर या सोच कर सन्तोष कर लेते हैं कि जब राम ने सीता को नहीं छोड़ा समाज के आरोप लगाने पर, राम ने सीता से अग्नि परीक्षा ले ली वो भी सतयुग में तो आज तो कलयुग का समय है हमें ये समाज कैसे छोड़ सकता है?
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ऐसा नहीं है कि अग्नि परीक्षा उस समय ही ली गई थी। आज भी महिलाएं अग्नि परीक्षा दे रही हैं हमारे समाज में बहेलिया समुदाय की महिलाएं आज भी देती हैं अग्नि परिक्षा। बहेलिया समुदाय की महिलाओं के चरित्र पर उंगली उठी तो उन्हें पांच किलो के लोहे का गोला हाथ मे लेकर अपने पवित्रता का सबूत देना होता है।
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ये परीक्षा उन्हें सुबह सूरज निकलने से पहले देना होता है। सारे समुदाय के पुरुष एक जगह इकठ्ठा होते हैं। वहां पहले से ही आग में रातभर लोहे के गोले को तपाया जा रहा होता है। उस लोहे के गोले को महिला के हाथ में रखा जाता है। सिर्फ चार पिपल के पत्त्ते महिला के हाथ पर रखे जाते हैं और फिर दहकता हुआ जब अंगार बन जाता है तो उस गोले को महिला के हाथ पर पांच मिनट तक के लिए रख दिया जाता है। लोगों का मानना है कि अगर महिला का हाथ जल गया तो वह चरित्रहीन है। इसके दंड स्वरूप से पूरे समाज को खाना खिलाना होगा नहीं तो उसे समाज से बाहर निकाल दिया जाएगा।
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