कहते हैं कि रीति-रिवाज आपस में प्रेम बढ़ाने और मिलकर रहने के लिए बनाए गए हैं। लेकिन देखा जाता है कि ऐसे व्रत सिर्फ महिलाएं ही करती हैं। किसी पुरुष को अपनी पत्नी के लिए उपवास रखते और पूजा करते नहीं देखा जाता। हमारे तीज-त्योहारों में ऐसे व्रत बनाए भी नहीं गए हैं।
ये भी देखें – समाज की सोच कमजोर है या महिला? बोलेंगे बुलवाएंगे शो
हम आज पढ़ी-लिखी नारी की बात करते हैं। उसके पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात करते हैं। पर आश्चर्यजनक रूप से पढ़ी-लिखी महिलाएं भी ऐसे रिवाज स्वेच्छा से अपने ऊपर लाद लेती हैं। जब कुल, परंपरा और पति की उम्र की दुहाई दी जाती है, तो भारतीय नारी हर तरह के व्रत या पूजा करने के लिए तैयार हो जाती है। उसने बचपन से यही तो देखा और सीखा है। लेकिन जीवन साथी का दर्जा तो बराबर का होता है।
शादी के समय दिए गए सात वचन बराबरी का हक दिलाते हैं। पति के मन में भी अपनी पत्नी के स्वास्थ्य और लंबे जीवन की कामना रहती होगी। लेकिन इसकी अभिव्यक्ति के लिए कोई त्योहार या अनुष्ठान क्यों नहीं है?
ये भी देखें –
पुरुष करे चार शादी तो वाह-वाही, महिला करे तो चरित्रहीन, बोलेंगे बुलवाएंगे शो
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’