प्रशासन से हिन्दू संगठन ने आंदोलन की चेतावनी के साथ 5 अगस्त तक मस्ज़िद हटाने के लिए की थी मांग। मंदिर का कुछ हिस्सा टूटा तो मस्ज़िद का नामोनिशान हटा दिया गया।मुस्लिम लोग प्रशासन से उम्मीद में कि किसी एक समुदाय के साथ न हो नाइंसाफी। रिपोर्टिंग से पता चला कि आज कल यह टेंशन है महोबा में हिन्दू मुस्लिम के बीच।
रात में प्रशासन की मौजूदगी में गिराई गई मस्जिद
5 अगस्त की रात दो बजे प्रशासन ने अपनी मौजूदगी में मस्ज़िद को तोड़वा कर निकला मलबा बगल में बने पुराने कुए में डालकर कुआं भी पूर दिया गया, जो सदियों से लोगों को ठंडा पानी पिलाता आ रहा था।
हाइवे निर्माण सीमा में आने वाली मस्ज़िद का मिटाया गया नामोनिशान
मुस्लिम समुदाय और संगठन के करीब सात लोगों से हमारी बात हुई। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नेशनल हाइवे के नियमानुसार सड़क के दोनों तरफ पचहत्तर पचहत्तर फुट की जमीन से सभी अतिक्रमण हटाया जाता है। इसीलिए कानपुर-सागर हाईवे में चल रहे चौड़ीकरण के कार्य में मदीना मस्ज़िद का कुछ हिस्सा हाइवे में आ रहा था। पीडब्ल्यूडी अधिकारियों ने मस्ज़िद की 8 फुट तक की जमीन जाने की बात की फिर दोबारा 10 फुट मांगी तो 11 फुट देने की बात कहके इस मुद्दे को यही खत्म करना चाह रहे थे।
तब भी मस्जिद का कुछ हिस्सा बच रहा था जिसके कारण 3 अगस्त दिन सोमवार को अपर जिलाधिकारी रामसुरेश वर्मा, उपजिलाधिकारी सदर राजेश कुमार यादव, सीओ सदर जटाशंकर राव, तहसीलदार बालकृष्ण सिंह ने नेशनल हाइवे-86 के अभियंताओं के साथ मदीना मस्ज़िद चौराहा पहुंचकर मुश्लिम समुदाय के लोगों से बातचीत की।
इस पर मस्ज़िद के सर्वराकार सईद लंबरदार ने कुछ समय की मोहलत मांगते हुए स्वयं अभियंताओं द्वारा लगाए गए निशान तक हटाए जाने का आश्वासन दिया लेकिन प्रशासन को न जाने अचानक से क्या हुआ कि 5 अगस्त की रात 2 बजे मस्जिद को गिराकर नामोनिशान मिटा दिया।
अपर जिलाधिकारी के अनुसार मदीना मस्ज़िद सड़क से सटी होने के कारण हाईवे के चौड़ीकरण के कार्य में आ रही दिक्कत को देखते हुए मस्ज़िद के मौअजिज लोगों से बातचीत की गई थी और मस्ज़िद के सर्वराकार ने प्रशासन का सहयोग करते हुए स्वयं लगाए गए निशान तक मस्ज़िद का हिस्सा हटाने की बात कही गई थी।
हिन्दू संगठन ने मस्ज़िद गिराये जाने की छेड़ी थी मुहीम
हिन्दू संगठन के बजरंग दल अध्यक्ष ने बताया कि मिर्जापुर से सागर तक हाइवे के निर्माण कार्य में आड़े आये मंदिरों को तोड़ा जा चुका था लेकिन मस्ज़िद तक निर्माण कार्य आने से पहले ही काम पेंडिंग में डाल दिया गया। प्रशासन मस्ज़िद को तोड़वा पाने में नाकामयाब साबित हो रही थी। इसलिए संगठन ने मिलकर फेसबुक में मुहीम छेड़ी। सभी ने फेसबुक की प्रोफाइल आईडी में इस मांग को लगाई। प्रशासन को दरखास देते हुए बोला गया कि अगर 5 अगस्त तक मस्ज़िद नहीं हटाई गई तो आंदोलन किया जाएगा। इस तरह में प्रशासन के ऊपर दबाव बना और मस्ज़िद हटाए जाने में मदद भी मिल पाई।
पुलिस ने इस मामले पर जानकारी देना नहीं समझा जरूरी
इस मामले को लेकर हम अपर एसपी वीरेंद्र कुमार से जानकारी चाही। उन्होंने जानकारी तो दी ही नहीं ऊपर से नसीहतों की बौछार लगा दी। बोले किसी भी मीडिया ने इस बारे में उनसे नहीं पूछा तो हम क्यों पूंछ रहे हैं। जब उनको लगा कि अब जानकारी देनी ही पड़ेगी तो बोले कि उनको इस मामले की कोई जानकारी नहीं पता। वह इस मामले पर कुछ नहीं बोलेंगे। और तो और हम इस मामले पर एसपी मणिलाल पाटीदार से बात करने गए। दो घण्टे इंतज़ार करते रहे लेकिन उन्होंने हमसे बात करने के लिए केविन तक नहीं बुलाया। उनके मन में जो भी चल रहा था लेकिन हमें समझ में आया कि प्रशासन भी कितना दबाव महसूस कर रही थी लोकल की राजनीति से।
यूथ फॉर एंटी साम्प्रदायिक सौहार्द
साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए जाने जाना वाला छोटा शहर जहां पर बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार यहां के ज्यादातर धर्मस्थल मुस्लिम समुदाय के जमींदारी में बनाए गए जिससे धार्मिक सौहार्द कायम चला आया है। अब नवयुवक जो धर्म बढ़ाने के कंपीटिशन की आग में आंख बंद करके कूद जाता है और अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानकर दूसरे धर्म को अपने से नीचा देखने लगता है। वह धर्म के अंदर ही अपने कैरियर की आन बान शान मानता है। अपने धर्म को बढ़ाने और दूसरे धर्म को मिटाने के नाम रात दिन तैयारी करता है। खासकर धर्म को बढ़ाने पर ही अपना कैरियर मानकर बैठ गया, सारे सपने धर्म के अंदर देखने लगा इसी का नतीजा है कि मंदिर गिर चुके तो मस्जिद क्यों नहीं?
-खबर लहरिया ब्यूरो