खबर लहरिया ताजा खबरें बेटी-बेटा एक समान तो पढ़ाई में असमानता क्यों? बोलेंगे बुलवायेंगे हंसकर सब कह जायेंगे

बेटी-बेटा एक समान तो पढ़ाई में असमानता क्यों? बोलेंगे बुलवायेंगे हंसकर सब कह जायेंगे

मुद्दा- लड़की लड़का के शिक्षा में अंतर

अक्सर हम सुनते हैं कि अगर लड़के को ज़्यादा पढ़ना है या कहीं बाहर जाकर पढ़ाई करनी है तो उसे छूट मिल जाती है चाहें नौकरी के लिए हो या पढ़ाई के लिए।

वहीं अगर लड़कियां आगे पढ़ना चाहें तो उनसे कहा जाता है कि अठवीं पास कर लो या हाईस्कूल कर लो बहुत है, करना तो चूल्हा-बर्तन ही है। नौकरी करना चाहें तो उन्हें इज़ाज़त नहीं मिलती बाहर जाने की। समय बदला सोच भी बदल रही है। मैं ये भी नहीं कहूंगी की लड़किया पढ़ ही नहीं रही हैं। हमारे देश की लड़कियां बहुत तरक्की भी कर रही हैं। हर क्षेत्र में लड़कियों की भागीदारी है। लेकिन फिर भी अभी ग्रामीण क्षेत्र और छोटे शहरों में रूढ़िवादी सोच अभी भी हावी है।

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तो चलिए हम आपको रूबरू कराते हैं कुछ लोगों से।

1-सवाल-आपको क्या लगता है बेटियां क्या कर सकती हैं क्या नहीं ?

2 बेटियों को कितना पढ़ाना चाहिए और बेटों को कितना ?

3  बेटी-बेटे की शिक्षा मे इतना अंतर क्यों ?

4 क्या बेटियां कमजोर हैं, क्या उन्हें कम पढ़ना चाहिए क्योंकि उन्हें चूल्हा चौका ही करना है?

5 अगर आपके पास बेटी-बेटा दोनों हैं और दोनो को आगे पढ़ने का मन है और आपके पास एक के लिए पैसा है तो आप किसे पढ़ायेंगे ?

6. क्यों आपको नहीं लगता की बेटी को पढ़ाने से फायदे भी हो सकते हैं?

लोग इस पर पॉजिटिव भी बोलेंगे और नेगेटिव भी, उसी हिसाब से और भी सवाल हो सकते हैं।

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टिप्पणी

ये है लोगों की सोच, हमारे देश में जहां आज भी रूढ़िवादी सोच हावी है। कहने को लोग कहते हैं कि बेटी-बेटा एक समान है, हर जगह बड़े-बड़े शब्दों मे बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ लिखा होता है तो ये दोगला व्यहार क्यों लड़कियों के साथ? अगर लड़की शिक्षित है तो वो दो परिवार की ज़िम्मेदारी अच्छे से संभालती है, घर के साथ-साथ नौकरी भी कर सकती है।

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