खबर लहरिया Blog Great Nicobar: ‘ग्रेट निकोबार योजना’ विकास या पर्यावरण पर खतरा

Great Nicobar: ‘ग्रेट निकोबार योजना’ विकास या पर्यावरण पर खतरा

यह योजना विशेष रूप से शोम्पेन जनजाति के लोगों के लिए चिंता का कारण बन गई है जो इस क्षेत्र में रहने वाली एक आदिवासी जनजाति है। शोम्पेन लोग बहुत ही विशिष्ट और पारंपरिक जीवनशैली जीते हैं जो जंगलों पर आधारित है। इस परियोजना के बारे में पूरी जानकारी के बिना इन लोगों को इसके प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है।

ग्रेट निकोबार टापू की सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

लेखन – मीरा देवी

ग्रेट निकोबार भारत का वह टापू है जो देश के सबसे दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह अंडमान-निकोबार समूह का सबसे बड़ा और सबसे दूर वाला इलाका है। आज कल यह इलाका एक बड़ी सरकारी योजना को लेकर पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। हमारी सरकार यहां एक बंदरगाह, हवाई पट्टी, बिजलीघर और नया नगर बसाने की योजना पर काम कर रही है। इस योजना की लागत लगभग बहत्तर हज़ार करोड़ रुपये बताई जा रही है।

ग्रेट निकोबार आज कल चर्चा में क्यों है?

5 अप्रैल 2025 को द हिंदू समाचार पत्र में यह खबर प्रकाशित हुई कि सरकार ग्रेट निकोबार परियोजना / Great Nicobar project में तेज़ी लाने जा रही है और ज़मीन चिन्हित करने का काम पूरा कर लिया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य निकोबार द्वीपसमूह में विकास को बढ़ावा देना और वहां की आर्थिक स्थिति को सुधारना है। इस योजना के तहत कई प्राकृतिक संसाधनों और जंगलों का उपयोग किया जाएगा जिससे वहां के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

यह योजना विशेष रूप से शोम्पेन जनजाति / Shompen and Nicobarese tribes के लोगों के लिए चिंता का कारण बन गई है जो इस क्षेत्र में रहने वाली एक आदिवासी जनजाति है। शोम्पेन लोग बहुत ही विशिष्ट और पारंपरिक जीवनशैली जीते हैं जो जंगलों पर आधारित है। इस परियोजना के बारे में पूरी जानकारी के बिना इन लोगों को इसके प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है। शोम्पेन जनजाति के लोग अपनी पारंपरिक ज़मीन और संसाधनों के नुकसान को लेकर चिंता में हैं क्योंकि उन्हें इस योजना के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी गई है। यह स्थिति उनके लिए एक प्रकार का उत्पीड़न बन गई है और अब उनके बीच विरोध और असंतोष बढ़ने लगा है।

ग्रेट निकोबार टापू की सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

शोम्पेन जनजाति / Shompen and Nicobarese tribes लोगों की सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताते हुए वन विभाग के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों ने सरकार को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि यह योजना निकोबार के जंगलों और वहां की जैविक विविधता के लिए अत्यधिक हानिकारक हो सकती है। इन अधिकारियों का मानना है कि यदि इस परियोजना को लागू किया गया तो इससे जंगलों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। उनका कहना है कि ग्रेट निकोबार क्षेत्र में विशिष्ट प्रकार के वनस्पतियां और जानवर पाये जाते हैं जिनका अस्तित्व इन योजनाओं के कारण संकट में आ सकता है। अधिकारियों ने सरकार से इस योजना के पर्यावरणीय प्रभावों का गहराई से अध्ययन करने की अपील की है ताकि न केवल स्थानीय आदिवासी समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन रोका जा सके बल्कि क्षेत्र की जैविक विविधता की भी रक्षा की जा सके।

ग्रेट निकोबार परियोजना में क्या-क्या बनाया जाएगा?

1. बंदरगाह (जहां माल उतरे और चढ़ाये जा सकेंगे)

– इतना गहरा कि दुनिया के सबसे बड़े जलपोत भी वहां आ-जा सकें।
– इसको विश्व व्यापार के एक बड़े केंद्र के रूप में स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।

2. हवाई पट्टी (जहाज उतरने-चढ़ने की जगह)

– बड़ी और लंबी हवाई पट्टी जो सैनिक और आम दोनों उड़ानों के लिए होगी।

3. बिजलीघर: 450 मेगावॉट की क्षमता वाला संयंत्र जिसमें कुछ ऊर्जा सूरज से और बाकी पारंपरिक साधनों से बनेगी।

4. नया नगर (शहर): सरकार का इरादा है कि यहां 1 लाख 30 हज़ार लोग बसाए जाएं जबकि इस समय पूरे टापू पर कुल मिलाकर 8 हज़ार लोग ही रहते हैं।

ग्रेट निकोबार परियोजना से किसे नुकसान हो सकता है?

1. वन क्षेत्र:

130 वर्ग कोस से ज्यादा जमीन इस योजना के लिए ली जा रही है जो बड़े पैमाने पर जंगलों को प्रभावित करेगा। अनुमान के मुताबिक 9 लाख 64 हज़ार पेड़ काटे जाएंगे जो जैविक विविधता और पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है। यह बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाने का कारण बनेगा।

2. जनजातीय समुदाय:

इस क्षेत्र में शोम्पेन और निकोबारी दो मुख्य जनजातियां निवास करती हैं। शोम्पेन समुदाय को सबसे ज़्यादा खतरा है, क्योंकि यह जनजाति जंगलों में निवास करती है और बाहरी दुनिया से उनका कोई विशेष संपर्क नहीं है। इनकी जीवनशैली पूरी तरह से जंगलों पर निर्भर है, और इस परियोजना से उनके पारंपरिक जीवन में भारी बदलाव हो सकता है। शोम्पेन का इलाका आरक्षित जनजातीय क्षेत्र है, जहां बिना अनुमति कोई भी गतिविधि नहीं की जा सकती। इस योजना के तहत इस क्षेत्र में विकास कार्य करना जनजातीय अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

3. जीव-जंतु और समुद्री जीवन :

ग्रेट निकोबार टापू कई दुर्लभ जीवों का घर है, जैसे निकोबारी मैगपोड (एक खास पक्षी), समुद्री कछुआ और निकोबार वृक्ष-चूहा। यहां के समुद्र तटों पर लेदर बैक कछुए अंडे देते हैं जो अब संकट में आ सकते हैं। यह कछुए दुनिया के सबसे बड़े कछुए हैं और उनके अंडे देने के स्थल पर मानव गतिविधि का असर उनके अस्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

ये भी देखें तमिलनाडु के समुद्री तट पर मिले 1,100 अधिक मृत ओलिव रिडले कछुए, ‘संकटग्रस्त प्रजातियों’ में सूचीबद्ध हैं ये

आइये इन सबके बारे में विस्तार से समझते हैं…निकोबारी मैगपोड यह एक विशेष प्रकार का पक्षी है जो केवल निकोबार द्वीपसमूह में पाया जाता है। निकोबारी मैगपोड अपने अंडों को गर्म रखने के लिए पृथ्वी की गर्मी का उपयोग करता है और इनकी प्रजनन प्रक्रिया अत्यधिक संवेदनशील होती है। यदि इस क्षेत्र में विकास कार्य किया जाता है और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बढ़ता है तो इस पक्षी की प्रजनन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। किसी भी प्रकार के वनस्पति या प्राकृतिक आवास की क्षति से इस पक्षी की जीवनशैली पर गंभीर असर पड़ सकता है।

समुद्री कछुआ ग्रेट निकोबार के समुद्र तटों पर कई समुद्री कछुए अंडे देते हैं जिनमें सबसे प्रमुख लेदर बैक कछुआ है। यह कछुआ दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री कछुआ होता है और इसके अस्तित्व को संकट का सामना करना पड़ रहा है। लेदर बैक कछुए समुद्र तटों पर अंडे देने के लिए आते हैं और इस दौरान किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधि जैसे निर्माण, पर्यटन, प्रदूषण, या समुद्र तटों पर असंतुलित विकास इनकी प्रजनन प्रक्रिया को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। कछुए अंडे देने के लिए विशेष स्थानों पर निर्भर होते हैं और अगर इन स्थानों पर मानव गतिविधि बढ़ती है तो यह कछुए के अंडे देने के प्राकृतिक स्थल को खत्म कर सकता है जिससे उनकी संख्या में और ज्यादा कमी हो सकती है।

निकोबार वृक्ष-चूहा यह प्रजाति भी केवल निकोबार द्वीपसमूह में पाई जाती है और इस क्षेत्र के वनस्पति और जंगलों पर निर्भर होती है। इस प्रजाति का जीवन भी जंगलों की संरचना और वहां की जैविक विविधता पर आधारित है। यदि यहां की वनस्पतियां और जंगल नष्ट होते हैं तो इस चूहे की प्रजाति के लिए भी संकट उत्पन्न हो सकता है क्योंकि उनका प्राकृतिक आवास कम हो जाएगा।

समुद्री जीवन भी बहुत ही अलग तरह का होता है और यहां के समुद्र तटों पर पाए जाने वाले समुद्री जीवों की प्रजातियां महत्वपूर्ण हैं। इन जीवों का संरक्षण सुनिश्चित करना पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है। लेदर बैक कछुए जैसे जीवों का संकट में आना दिखाता है कि अगर यहां के प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से रख-रखाव न किया गया तो यह न केवल इन विशेष प्रजातियों के लिए सभी के लिए भी बड़ा खतरा बन सकता है।

ग्रेट निकोबार परियोजना : क्या मिली है सरकारी मंज़ूरी?

2022 में सरकार ने इस योजना को हरी झंडी दी थी जिससे योजना को लागू करने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया गया। पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट में यह कहा गया है कि इस योजना से पर्यावरणीय नुकसान होगा लेकिन इसे कम किया जा सकता है। हालांकि यह रिपोर्ट सुझाव देती है कि यदि उचित उपाय किए जाएं तो नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है लेकिन कई विशेषज्ञों और रिपोर्टों ने यह दावा किया है कि पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट में स्थानीय लोगों की राय नहीं ली गई और रिपोर्ट में कई अधूरे तथ्य दिए गए हैं। इस वजह से परियोजना को लेकर कई विवाद उत्पन्न हो गए हैं और यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस योजना को लागू करते वक्त सभी पहलुओं का सही तरीके से आकलन किया गया है।

ग्रेट निकोबार परियोजना : स्थानीय लोगों की राय

निकोबारी पंचायत के कुछ लोगों ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री कार्यालय में ज्ञापन दिया कि इस योजना से उनका जीवन, संस्कृति और पर्यावरण सब खतरे में है। शोम्पेन नामक जनजाति तो अब भी अपनी भाषा बोलते हैं वह बाहर वालों से बात नहीं करते और जंगल पर पूरी तरह निर्भर हैं। ऐसे में उन्हें बे-दखल करना संविधान और जन-जाति अधिकार कानून के विरुद्ध माना जा रहा है।

ग्रेट निकोबार परियोजना के मुख्य बिंदु एक नजर में:

विषयविवरण
स्थानग्रेट निकोबार टापू (अंडमान-निकोबार समूह)
लागत72,000 करोड़ रुपये
निर्माणबंदरगाह, हवाई पट्टी, बिजलीघर, नया नगर
प्रभावित क्षेत्र130 वर्ग कोस (ज्यादातर जंगल)
प्रमुख नुकसान 9.64 लाख पेड़, जनजातीय जीवन, जीव-जंतु
प्रमुख जनजातिशोम्पेन (संवेदनशील जनजाति), निकोबारी
मंजूरी वर्ष2022 (पर्यावरण मंत्रालय द्वारा)

इस आर्टिकल को लिखने का उद्देश्य

यदि आप गांव, कस्बे या किसी छोटे इलाके में रहते हैं तो यह जानकारी इसलिए भी जरूरी है ताकि आपको यह समझ में आए कि देश के दूसरे सिरे पर क्या हो रहा है और विकास के नाम पर किनकी ज़मीनें, जंगल और जीवन बदल रहे हैं। यही बातें आपके इलाके में भी कभी लागू हो सकती हैं।

 

यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते हैतो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke   

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *