शौचालय होने के बावजूद भी बुंदेलखंड क्षेत्र के कई गाँवों के लोग खराब शौचालय होने की वजह से खुले में शौच के लिए जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र कई मायनों से आज भी पिछड़ा हुआ है। बुंदेलखंड का बाँदा और चित्रकूट जिला पूरी तरह से जंगली क्षेत्र है। जो की डाकुओं के लिए काफ़ी मशहूर है। इसके आलावा यहां शिक्षा की भी काफ़ी कमी है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत करते हुए कहा था कि हर घर में शौचालय बनेगा। जिससे की स्वच्छ भारत का निर्माण होगा। लेकिन आज भी यहां की आधी से ज़्यादा आबादी खेतों में ही खुले में शौच के लिए जाती है।
हम बात कर रहे हैं ग्रामीण भारत में स्वछता और बेहतर शौचालयों के कमी की। जिसका वादा आज से लगभग सात साल पहले मौजूदा सरकार द्वारा किया गया था। योजना को लेकर ज़ोरो-शोरो से काम भी किया गया। हमने ग्रामीण क्षेत्रों में बने शौचालयों को लेकर काफ़ी कवरेज भी की। जिसमें हमने यह जानने की कोशिश की कि आखिर ज़मीनी हकीकत क्या है? लोग बने हुए शौचालय का उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं? वह शौच के लिए बाहर क्यों जा रहे हैं?
खराब सामग्री, खस्ता शौचालय
हाल ही में हमने बाँदा जिले के अंतर्गत आने वाले नरैनी ब्लॉक के तरह की कालिंजर ग्राम पंचायत के मजरा गिरधरपुर की कवरेज की थी। जिसमें हमें यह पता चला कि गाँव में लगभग 85 शौचालय बने हुए हैं। लेकिन लोग उन शौचालयों का उपयोग नहीं कर रहे हैं। शौचालयों में लोगों ने लकड़ी, कबाड़ आदि सामान भरा हुआ है। इसके साथ-साथ हमने यह भी देखा कि कई लोगों के शौचालय उनके घरों से दूर खेतों में बने हुए हैं।
शौचालय के लिए ज़रुरत के हिसाब से सामग्री नहीं
हमने जब यहां के लोगों से शौचालय को लेकर बात की तो उनका कहना था कि यूँ तो सरकार ने शौचालय के बजट के लिए भरी-भरकम बजट खर्च किया है। लेकिन बने हुए शौचालय किसी काम के नहीं है। फिर हमने लोगों से उसकी वजह जाननी चाही। लोगों का कहना था कि सचिव और प्रधान द्वारा उनके शौचालय के लिए 5 बोरी सीमेंट, 7 सौ ईंट और 10 बोरी बालू दिया गया था। इतने कम में टिकाऊ और बेहतर शौचालय नहीं बन सकता।
खराब सामग्री से धसा शौचालय
गांव के रहने वाले रामकेश बताते हैं कि उनके बगल में एक शौचालय बना हुआ है। जिसने शौचालय बनवाया है, जब वह उसे इस्तेमाल में लिए शौचालय के अंदर गया तो वह अचानक से धसने लगा। किसी तरह से वह व्यक्ति बाहर निकला और उसने अपनी जान बचाई।
इसी गाँव की ही महिला कलावती कहती हैं जब शौचालय नहीं था तभी बेहतर था। यूँ तो हर घर में शौचालय बन गए हैं चाहें वह काम के हो या नहीं। जिनके पास शौचालय नहीं है वह तो मज़बूरी में बाहर जाते हैं। उनके तो शौचालय बने हुए हैं फिर भी वह शौच के लिए बाहर जाती हैं क्यूंकि शौच के लिए उन्हें और अन्य महिलाओं को घंटो खड़े रहना पड़ता है।
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शौचालय बनवाने के लिए नहीं दिए गए पूरे पैसे
जो गरीब है वह तो वैसे भी अपनी तरफ से शौचालय नहीं बनवा सकते। मज़दूरी करके घर चला पाना ही मुश्किल होता है। गाँव वालों का कहना है कि शौचालय बनवाने के लिए वैसे तो 12 हज़ार रूपये देने का नियम है। लेकिन सचिव और प्रधान द्वारा उन्हें पूरे पैसों की जगह बस शौचालय बनवाने की थोड़ी से सामग्री दे दी जाती है। उतने में ही वह जैसे-तैसे शौचालय बनवा लेते हैं पर वह किसी काम के नहीं होते। अगर उन्हें पूरे पैसे मिलते तो वह बेहतर शौचालय बनवा लेते। अगर ज़रुरत पड़ती तो वह कुछ पैसे वह खुद भी लगा देते। यही वजह की लोग शौचालय का इस्तेमाल शौच के लिए नहीं बल्कि कबाड़ रखने के लिए कर रहे हैं।
गांव में सिर्फ दो-चार शौचालय ही है जो की उपयोग करने लायक है। वह भी सिर्फ इसलिए क्यूंकि जिन लोगों को हाथ में पैसे दिए गए उन लोगों ने अपनी तरफ से अच्छे और टिकाऊ शौचालय बनवाये हैं।
खुदे गड्ढे, अधूरे शौचालय
हमने नरैनी ब्लॉक के पिपरहरी ग्राम पंचायत के कछिया पुरवा में भी शौचालय को लेकर कवरेज की थी। गाँव में लगभग डेढ़ सौ शौचालय बनने के लिए आये थे। जब हमने यहां अपनी कवरेज के दौरान लोगों से बात की तो लोगों ने हमें उनके घरों में शौचालय के लिए खुदे गड्ढे दिखाए। गड्ढे दिखाते हुए लोगों ने बताया कि सचिव और प्रधान द्वारा उन्हें गड्ढे खोदने के लिए कहा गया था। यह भी कहा गया था कि जब उनका शौचालय बन जाएगा तो उन्हें उसके पैसे भी दे दिए जाएंगे। लेकिन उन्हें कभी पैसे ही नहीं मिले। खुले गड्ढे होने की वजह से कई बार बच्चे खेलते-खेलते उसी में गिर जाते हैं। कई बार जानवर भी गड्ढो में गिर जाते हैं। जिसकी वजह से फिर उन्होंने गड्ढों को भर दिया।
कई लोगों के घरों में शौचालय की सीट तो बनी थी लेकिन आस-पास की जो दीवार खड़ी थी उसमें कोई सहारा नहीं था। जिसका मतलब यह है कि वह दीवार कभी-भी ढह सकती है। इसी डर की वजह से लोग शौच के लिए बाहर ही जाते हैं।
सचिव-प्रधान ने करीबियों को दी अच्छी सामग्री – लोगों का आरोप
ग्रामीणों ने यह भी बताया कि उनके गाँव में बहुत से लोगों को शौचालय ही नहीं मिला है। लेकिन वह इस सोच के साथ खुश है कि जिनके पास शौचालय बने हुए हैं वह भी ठीक नहीं है। अगर उन्हें भी शौचालय मिलता तो उन्हें भी अन्यों लोगों की ही तरह अधूरा शौचालय बनवाना पड़ता। जिसे बनवाने का कोई मतलब नहीं होता। लोगों का यह भी आरोप है कि जो लोग सचिव और प्रधान के करीबी हैं। उनके द्वारा उन्हें अच्छी सामग्री दी गयी है। जिसका इस्तेमाल करके उन्होंने बेहतर शौचालय बनवाये हैं और वह उनका इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
लोगों की लापरवाही की वजह से है शौचालय खराब – सचिव
इस मामले में हमने तरहटी कालिंजर सचिव से गिरधरपुर में बने शौचालयों की स्थिति के बारे में बात की। उनका कहना था कि तरहटी कालिंजर के पूरी ग्राम पंचायत में लगभग 500 शौचालय बने हैं। जिसमें से गिरधरपुर में 80 से 85 शौचालय हैं। कालिंजर में सब को पैसे दिए गए हैं और लोगों ने अपने मन से शौचालय भी बनवाए हैं। गिरधरपुर में कुछ लोगों को पैसे दिए गए हैं और कुछ लोगों को सामग्री भी दी गयी है। सबको अच्छी सामग्री दी गयी है। वह आगे कहते हैं कि क्यूंकि लोगों ने बने शौचालयों की सही देख-रेख नहीं की इसलिए वह आज अनुपयोगी हो गए हैं। लोगों को सात बोरी सीमेंट और 1100 ईंटें भी दी गयी थी। लेकिन लोगों की लापरवाही की वजह से ही शौचालयों की स्थिति खराब है।
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अगर एक बार के लिए यह बात भी मान ली जाए कि लोगों की कम देखरेख की वजह से शौचालयों की स्थिति खराब है। फिर ऐसे में यह सवाल आता है कि जो शौचालय अधूरे पड़े हुए हैं उनका क्या? उन शौचालयों का क्या जो इस्तेमाल करने के दौरान टूट कर गिर गए? क्या यह सारी चीज़ें खराब सामग्री की तरफ इशारा नहीं करती? जो सचिव और प्रधान द्वारा लोगों को शौचालय बनवाने के लिए दिए गए थे। साथ ही लोगों को शौचालय बनवाने के लिए पूरे पैसे क्यों नहीं दिए गए ? पूरे मामले में यह साफ़ तौर पर देखा गया कि सचिव और प्रधान द्वारा सिर्फ नाम के लिए शौचालय बनवाने के लिए कुछ सामग्री और पैसे दे दिए गए। जिससे न तो पूरा और टिकाऊ शौचालय बन सकता है न ही लोग उसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए गीता देवी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
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