केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा हाल ही में ज़ारी रिपोर्ट बताती है कि देश में साल 2014 से 2023 तक तकरीबन 15.3 लाख लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मौत हो चुकी है।
सड़क दुर्घटनाओं की कई वजहों में एक वजह है ‘खराब सड़कें’। ये खराब सड़क आपको गांव के परिवेश में आराम से देखने को मिल जाएंगी। खबर लहरिया की इन खराब सड़कों पर की गई रिपोर्टिंग बताती है कि कच्ची सड़कें हमेशा से वहां रहने वाले लोगों के लिए खतरा बनी रहती हैं। उन्हें हर रोज़ उस खतरे भरी सड़क से होकर गुज़रना पड़ता है क्योंकि उनके पास इसके आलावा कोई और सड़क नहीं है। उन्हें अपनी जान जोखिम में डालनी ही पड़ती है, चाहें उनकी मर्ज़ी हो या नहीं।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा हाल ही में ज़ारी रिपोर्ट बताती है कि देश में साल 2014 से 2023 तक तकरीबन 15.3 लाख लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मौत हो चुकी है।
सड़क दुर्घटनाओं को सिर्फ सड़क पर दिखाई दे रही या घटित होती घटनाओं तक सीमित होकर नहीं देखा जा सकता, जहां दृश्य गाड़ियों के टकराने या ओवरस्पीडिंग से जुड़े हुए होते हैं व जिन आंकड़ों को सड़क दुर्घटनाओं में शामिल किया जाता है।
जैसे कि हमने सड़क दुर्घटना होने की कई वजहों में से एक कारण की बात की, ‘खराब सड़क’, ये खराब सड़कें सिर्फ लोगों को सड़क दुर्घटनाओं में ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य सुविधा व मूल सुविधाओं से वंचित कर भी मारती हैं। खबर लहरिया की रिपोर्ट बताती है कि बांदा जिले के नौगवां ग्राम पंचायत का मजरा सुखारी का पुरवा जहां पहुंच पाना ही एक चुनौती है, क्योंकि वहां उचित सड़कें नहीं है। सड़कों का न होना यहां के लोगों को ज़रूरत के समय स्वास्थ्य सुविधा से दूर कर देता है। गांव के एम्बुलेंस नहीं आ पाती क्योंकि सड़क खराब है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को या तो खाट पर या फिर बैलगाड़ी के ज़रिये उबड़-खाबड़ रास्ते से होते हुए अस्पताल लेकर जाया जाता है। इसमें यह पता नहीं होता कि इस सफ़र में माँ और बच्चा सही-सलामत लौट भी पाएंगे या नहीं। कोई मरीज़ अपनी जान बचा पायेगा भी या नहीं, या उसे अपनी जान बचा पाने का मौका मिल भी पायेगा या नहीं।
केशकली बताती हैं कि उनके कई बच्चे मर गए,कई जी गए। एक बच्चे को नौगवां तक ले गए, बांदा अस्पताल पहुंचते-पहुंचते ही उसकी मौत हो गई। यह उदाहरण दर्शाता है कि खराब सड़कें सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं का कारण नहीं बनतीं, बल्कि स्वास्थ्य संकट भी उत्पन्न करती हैं, जिससे लोगों को समय पर चिकित्सा सेवाएं नहीं मिल पातीं।
अन्य महिला बताती हैं कि जब वह गर्भवती थी तो एम्बुलेंस ने यह कहकर आने से मना कर दिया था कि रास्ता खराब है। फिर वह उसी हालत में जैसे-तैसे मोहन का पुरवा गईं, वहां एम्बुलेंस आई और तब जाकर वह अस्पताल पहुंची।
एम्बुलेंस चालक सतेंद्र कुमार खबर लहरिया को बताते हैं कि खराब सड़क होने की वजह से एम्बुलेंस गांव के अंदर नहीं जा पाती ।कई बार उन्हें मरीज़ों से निवेदन भी करना पड़ता है कि वे किसी तरह एम्बुलेंस तक पहुँचने का प्रयास करें, ताकि वे उनकी मदद कर सकें।
आगे कहा,’सुखारी का पुरवा का रास्ता इतना खराब है कि जो जल्द से जल्द उन्हें स्वास्थ्य सुविधा मिलनी चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पाती। बहुत संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि रास्ता बहुत ही ज़्यादा खराब है।’ अगर बारिश हुई तो उस समय तो जा ही नहीं पाते। रास्ता कच्चा है तो गाड़ी फंस जाती है।
रास्ता खराब होने की वजह से उन्हें व गांव के लोगों को तालमेल बैठाना पड़ता है क्योंकि कोई भी एक-दूसरे तक आसानी से नहीं पहुंच पाता।
यह स्थिति वर्षों से बनी हुई है। नौगवां गांव के एक निवासी ने कहा, ‘तीन पीढ़ी हो गई खराब सड़क को देखते हुए। पैदा हुए तब भी यही था, बड़े हुए तब भी और आज बच्चे हो गए हैं तब भी यही स्थिति है’।
यह रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि सड़क दुर्घटनाओं का दायरा सिर्फ सड़क पर चलती गाड़ियों तक नहीं बल्कि वहां से भी हैं जहां-जहां सड़क का नाम है, उसका जुड़ाव है और उससे जुड़ी चीज़ें हैं जैसे कि स्वास्थ्य सुविधाएं।
मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि लगभग 15 लाख लोगों की मौत का आंकड़ा चंडीगढ़ की आबादी से भी ज्यादा है और करीब भुवनेश्वर की आबादी के बराबर है। इसका मतलब है कि ये मौत के आंकड़े एक राज्य में रहने वाले लोगों के बराबर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं के मामले में यूपी सबसे आगे हैं जहां साल 2023 में 23,652 व 2022 में 22,595 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके बाद तमिलनाडु,महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश,कर्नाटक और राजस्थान है।
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