बांदा : 19 अप्रैल 1858 को बांदा जब ब्रिटिश हुकूमत से आजाद चल रहा था। अंग्रेजी जनरल जीसी हिृटलाक ने भारी फौज के साथ धावा बोल दिया। शहर से 13 किमी. पश्चिम गोयरा मुगली गांव में घमासान युद्ध हुआ। जिसमें तीन सौ क्रांतिवीर शहीद हुए। भूरागढ़ किला इतिहास का मूक गवाह है।बांदा के जाने माने इतिहासकार और कांग्रेसी नेता हरिश्चन्द्र वाजपेयी बताते हैं कि बांदा के नवाब अली बहादुर द्वितीय ने 15 जून 1857 को बांदा को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करा लिया था। गजेटियर के पेज नंबर 60 में इसका जिक्र किया गया है कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि अंग्रेजी जनरल जीसी हिृटलाक भारी फौज के साथ धावा बोल दिया। इसी समय नवाब की फौज तात्या टोपे व रानी लक्ष्मीबाई की मदद के लिए चरखारी गया था। नवाब ने केन नदी के तट पर स्थित भूरागढ़ दुर्ग को सुरक्षित किया तथा अपनी बची हुई फौज क्रांतिकारी पेशवा माधव राव नारायन राव के साथ फिरंगियों से लड़ने के लिए भेजा।
गोयरा मुगली गांव में दोनों सेनाओं में मुकाबला हुआ। घमासान युद्ध में तीन सौ क्रांतिवीर शहीद हो गये। खून खराबा देखकर नारायन राव माधव राव पेशवा ने समर्पण कर दिया। जबकि नवाब अली बहादुर बचे हुये साथियों के साथ फरार हो गये। इसके बाद अंग्रेजी फौज ने शहर में लूटपाट और कत्ले आम शुरु किया। यह सब देखकर वीरांगना शीला देवी ने महिलाओं के साथ नंगी तलवारें लेकर फिरंगियों का मुकाबला किया। अंग्रेजों की भारी फौज के सामने वह ज्यादा नहीं टिक पायी और उनका शीश भूरागढ़ दुर्ग में काट दिया गया।
हमीरपुर के क्रांतिकारी राजा महिपत राव व उनके परिवार के 108 लोगों को भूरागढ़ दुर्ग में एक लाइन में खड़ा करके गोली से उड़ाया गया था। क्रांतिकारियों ने बबेरू का खजाना लूट लिया। जिसमें 13 लोग पकड़े गये। आज ही के दिन 1858 में शहीद हुए सपूतों के नाम भूरागढ़ किले के अंदर बने स्तंभ में दर्ज हैं। जब वह दिन आता है तो याद जरूर किया जाता है। लेकिन उसके बाद साल भर के लिए भूल जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि भले ही एक दिन के लिए ही सही लेकिन उनको याद करना सबका फर्ज बनता है।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए मीरा देवी द्वारा लिखा गया है।