खबर लहरिया Blog रोजगार मिशन में कौन होगा बेरोजगार

रोजगार मिशन में कौन होगा बेरोजगार

Who will be unemployed in employment mission

योगी सरकार की मिशन रोजगार योजना लागू हुई तो सबसे पहले मजदूरों को रोजगार दिया जाय पर क्या सरकार ऐसा करेगी? अगर नहीं करेगी तो क्यों नहीं, करना ही चाहिए। इस मिशन के तहत आइये हम बात करें एक ऐसे गांव की जहां पर रहता है सिर्फ आदिवासी समुदाय, जो पलायन करके परिवार का पालन पोषण करता था। लॉक-डाउन के चलते उनका काम ढप हो जाने से खाने के लाले पड़े हैं। पहले से भी सरकारी योजनाओं से यह गांव वंचित है।

एक गांव जहां रहते हैं सिर्फ आदिवासी

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आइये ले चलूं आपको उस गांव जहां की बात यहां पर की जा रही है। बांदा मुख्यालय से लगभग तीस किलोमीटर दूर बसा है यह गांव। इस गांव का नाम है गोसाईं पुरवा। गोसाई पुरवा ग्राम पंचायत पिथौराबाद (ब्लाक महुआ) का मजरा है जो बहुत ही उबड़ खाबड़ और पहाड़ी क्षेत्र है। यहां के लोग हमें बहुत ही अच्चभे से देखते हुए बोले कि हम कौन हैं और कहां भटक पड़े। पत्रकार जानकर लोग बहुत खुश हुए। बोले तीन से चार पीढी बीतने के बाद पहली बार किसी पत्रकार को अपने गांव में देख रहे हैं। जैसे ही बातचीत करने की शुरुआत की लोग बिफर पड़े क्योंकि उनको भी एक मौका मिल गया था अपनी स्थिति अधिकारियों तक पहुंचाने का।

सिर्फ सीसीरोड से हो गया विकास

राजकुमारी बताती हैं कि यहां पर लगभग पचास आदिवासी परिवार रहते हैं। कम से कम चार पीढ़ियों से बसे इस गांव में सीसीरोड के अलावा किसी तरह का विकास नहीं है। लॉक-डाउन के चलते सारे रोजगार ठप होने से भूखों मर रहे हैं। कोटे से मिलने वाला राशन और फ्री में मिलने वाले चावल से किसी तरह भूख मिटा ही रहे हैं। बस्ती से सटे तालाब से बच्चे मछलियां मारकर खा लेते थे। वह भी छीन लिया गया क्योंकि गांव के लोगों ने उसका पट्टा करा लिया मत्स्य पालन के लिए। जैसे तैसे जिंदगी कट ही रही है। किसी के पास खेती के लिए अपनी जमीन नहीं है।
*सरकारी योजनाएं इनके लिए नहीं तो किनके लिए*
रामशरण बताते हैं कि यहां पर कई लोग हैं जो थोड़ा पढ़े लिखे हैं लेकिन आज तक किसी को मजदूरी करने के अलावा छोटी मोटी नौकरी भी नहीं मिली। यहां तक कि मनरेगा में भी काम नहीं कर पाते क्योंकि वहां पर मजदूरी पाने के लिए महीनों नहीं सालों इंतज़ार करना पड़ता है।

मायावती सरकार के समय का गिर गया आवास

मुलिया बताती हैं कि उनके पास रहने को घर नहीं है। जब मायावती मुख्यमंत्री थीं उस समय एक कालोनी के लिए दस हज़ार रुपये मिले थे तो उससे घर बनाया था, वह भी तीन साल से गिरा पड़ा है। वह अपने घर अकेली महिला हैं। पति और लड़का गम्भीर बीमारी से ग्रसित हैं इसलिए वह तो घर बना सकते नहीं।

क्या कहते हैं जिम्मेदार प्रधान और अधिकारी

इस मामले को लेकर जब प्रधान से बात की गई तो उन्होंने क्या कहा सुन लीजिए। प्रधान मुन्ना यादव का कहना है कि वह खुद उस पुरवा के लोगों को रोज़गार और काम देना चाहते हैं। वह उनकी स्थिति से वाकिब हैं लेकिन जो प्रशासन की तरफ से योजनाएं हैं उससे बढ़कर वह क्या करें। कई बार उन्होंने व्यक्तिगत रूप से भी राशन और पैसों की मदद पहुंचाई है।Connection lost. Saving has been disabled until you’re reconnected. We’re backing up this post in your browser, just in case.
मुख्य विकास अधिकारी हरिश्चंद्र वर्मा का कहना है कि सभी बीडीओ और प्रधानों को आदेशित किया गया है कि कोरोना काल में लोगों का उचित ध्यान रखा जाय। चाहे वह योजनाओं का लाभ हो या स्वास्थ्य की परेशानी। मनरेगा में पैसों की कमी नहीं है। ऐसी कोई शिकायत उन तक नहीं आई वरना कार्यवाही जरूर की जाती है। हमारे माध्यम से उन तक शिकायत गई है तो जांच करा लेंगे।

रोजगार मिशन में ऐसे लोगों को मिले प्राथमिकता

एक तरफ लोग सरकारी योजनाओं से वंचित हैं। लॉक-डाउन के कारण रोजगार छिन गया। मजदूरी का काम नहीं है तो खाने के लाले पड़े हैं। दूसरी तरफ प्रधान और अधिकारी सफाई देने में माहिर हैं। बड़ी ही चतुराई से अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। ऐसे में पूरे सरकारी तंत्र के ऊपर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है? परेशान लोगों को क्या करना चाहिए जब प्रधान और प्रशासन पाकसाफ़ हैं? फिर सरकार ही कुछ करें इनका कि जो योजनाएं या मिशन लागू कर रही है इसमें पहली प्राथमिकता ऐसे ही लोगों को मिलना चाहिए।