खबर लहरिया Blog जहां कथित आस्था ‘पर्यावरण और मानव जीवन’ दोनों को हानि दे और सरकार अनभिज्ञ हो जाए! | Mahakumbh 2025

जहां कथित आस्था ‘पर्यावरण और मानव जीवन’ दोनों को हानि दे और सरकार अनभिज्ञ हो जाए! | Mahakumbh 2025

महाकुंभ में करोड़ों की संख्या में लोगों द्वारा लिए जा रहे कथित पवित्र स्नान ने नदी को दूषित से अत्यधिक दूषित कर दिया है, जिसे यूपी के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने भी माना। कहा कि संगम का पानी स्नान के लिए सही नहीं है और इसकी वजह बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (इससे पानी की गुणवत्ता मापी जाती है) का बढ़ा हुआ स्तर है।

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सांकेतिक तस्वीर ( फ़ोटो साभार – सोशल मीडिया)

आस्था एक निजी विचार है – सामुदायिक, राष्ट्रीय, वैश्विक, राजनीतिक इत्यादि नहीं। लेकिन जब आस्था की मशाल राज्य और प्रशासन द्वारा हाथों में ले उसे सबका बना दिया जाए तो इससे होने वाले किसी भी तरह के परिणामों की ज़िम्मेदारी उस सरकार, उस राज्य की हो जाती है।

उत्तर प्रदेश का जिला प्रयागराज जिसका अर्थ संगम बताया गया है, वहां तथाकथित तौर पर 144 साल बाद आने वाला महाकुंभ आयोजित किया गया है, जिसका गठित व मौजूदा इतिहासों से जुड़ी कहानियां में भी स्पष्टता नहीं है।

13 जनवरी 2025 से शुरू हुए महाकुंभ में अब तक 55 करोड़ लोगों ने कथित आस्था के त्रिवेणी संगम ‘गंगा, यमुना, सरस्वती’ में तथाकथित पवित्र स्नान की डुबकी लगाई है – यूपी सरकार ने बीते मंगलवार 18 फरवरी को बताया।

करोड़ों की संख्या में लोगों द्वारा लिए जा रहे कथित पवित्र स्नान ने नदी को दूषित से अत्यधिक दूषित कर दिया है, जिसे यूपी के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने भी माना। कहा कि संगम का पानी स्नान के लिए सही नहीं है और इसकी वजह बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (इससे पानी की गुणवत्ता मापी जाती है) का बड़ा हुआ स्तर है।

बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) ज़्यादा होने का मतलब है, पानी में कार्बनिक पदार्थों (जैसे मृत पौधे, जानवर, गंदगी, और अन्य जैविक सामग्री) की अधिक मात्रा है। इन कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए पानी में मौजूद सूक्ष्मजीवों को अधिक ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है।

सूक्ष्मजीवों द्वारा अधिक ऑक्सीजन इस्तेमाल करने से पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। इससे पानी में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने पर उनकी मौत भी हो सकती है और उनके परिस्थितीक तंत्र को गहरा नुकसान पहुंचता है जिसकी भरपाई भी नहीं हो पाती। इसका सीधा असर जल व पर्यावरण पर पड़ता है और यह ये दर्शाता है कि मानव द्वारा कथित तौर पर आस्था या उद्योगों के नाम पर नदी में डाली जा रही गंदगी पर्यावरण संकट का किस तरह से निर्माण करती है।

वह संकट जिसे न तो पर्यावरण की दृष्टि से देखा जा रहा है और न ही लोगों के जीवन और स्वास्थ्य से।

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दूषित पानी या कथित ‘पवित्र स्नान’?

सीएम योगी ने सीपीसीबी के ही रिपोर्ट का हवाला देते हुए संगम के पानी को लेकर बयान दिया था कि, “संगम का पानी ‘स्नान और पीने (अंचमन)’ दोनों के लिए उपयुक्त है।”

सीपीसीबी की यह रिपोर्ट बुधवार,19 फरवरी को राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा जो पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करता है, उसे काफ़ी फटकार लगाने के बाद आई थी। बोर्ड ने सीपीसीबी को गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता, फेकल कॉलिफोर्म और ऑक्सीजन स्तर जैसे मानदंडों की जानकारी रिपोर्ट में देने को कहा था। वहीं जमा की रिपोर्ट में न तो यह बताया गया कि पानी के सैंपल किस जगह से लिए गए हैं और न ही यह कि इनका प्रशिक्षण किस लैब में किया गया है।

यूपी सरकार व सीएम योगी महाकुंभ के नाम पर सनातम धर्म का प्रचार प्रतिष्ठा से करते नज़र आ रहे हैं और उनका कहना है कि स्नान के लिए किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा रहा, जिसे पर्यावण व जल जीवन के नज़रिये से देखा जाए तो सबसे बड़ा भेदभाव है।

अगर सरकार का फर्ज़ उन्हें आस्था और धर्म का प्रचार करना कहता है तो नदी के जीवन का बचाव भी उनकी ज़िम्मेदारी होती है। क्योंकि यह नदियां जो दूषित से अत्यधिक दूषित हो चुकी हैं, वह लोगों की कथित आस्था को पूरा कर रही है जिसे सरकार का समर्थन प्राप्त है।

यह त्रिवेणी संगम की नदियां जो आम दिनों बस नदी तो कभी नाला बनकर रहती है, अचानक महाकुंभ और कुछ हिन्दू धर्म की तिथियों में ‘पवित्र नदियों’ में परिवर्तित कर दी जाती हैं, ‘पवित्र व प्रमुख स्नानों’ के नाम पर।

“एक सेवक के रूप में अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना हमारी जिम्मेदारी है” – सीएम योगी का यह बयान विधानसभा में सपा को महाकुम्भ से जुड़े उठाये सवालों पर देते हुए दिया गया था।

लेकिन सेवा तो नदियां दे रही हैं, आस्था के तथाकथित भार की और पवित्र स्नानों की भी। सरकार या खुद को सेवक बताने वाले उस नदी को क्या दे रहे हैं जो उस नदी में बसे हुए अनगिनत जीव-जंतुओं का जीवन है। प्रदूषण? गंदगी? उनकी आयु में घटाव?

कथित तौर पर बताई गई ये त्रिवेणी नदियां जिन्हें आस्था और धर्म में मां की उपाधि के साथ जीवनदायनी माना जाता रहा है, उनका अस्तित्व क्या सिर्फ आस्था और डुबकी तक ही सीमित है? क्या सिर्फ उन्हें मनुष्य के शरीर, फैक्टरियों से निकलते ज़हरीले पदार्थ को भरने के लिए थोड़ा बहुत जीवित रखा गया है क्योंकि जीवन तो अब इन नदियों में नज़र नहीं आता। नदी का चेहरा काई और कीचड़ से भरा है, उसका अपना कोई चेहरा नहीं बचा।

प्रमुख स्नानों के दौरान नदी की गुणवत्ता

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 13 जनवरी 2025 को जब महाकुंभ की शुरुआत हुई थी, इस दिन पानी का बीओडी (BOD) स्तर 3.94 मिलीग्राम प्रति लीटर था। वह पानी स्नान के लिए उपयुक्त था।

जब बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होता है तो पानी साफ़ व ऑक्सीजन युक्त होता है। वहीं जब बीओडी का स्तर 5 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज़्यादा होता है तो पानी अत्यधिक प्रदूषित होने के साथ जीव-जंतुओं के लिए खतरे का संकेत होता है।

सीपीसीबी का कहना है कि बीओडी का स्तर हाल ही में बड़ा है। 16 फरवरी को सुबह 5 बजे, संगम का बीओडी स्तर 5.09 मिलीग्राम प्रति लीटर था। 18 फरवरी की शाम 5 बजे यह 4.6 मिलीग्राम प्रति लीटर था, और 19 फरवरी को सुबह 8 बजे यह बढ़कर 5.29 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया।

यह भी कहा गया कि 29 जनवरी को हुई माघी अमावस्या जिसमें समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, 57.1 मिलियन से अधिक लोगों ने कथित पवित्र स्नान की डुबकी लगाई थी, उस दिन भी बीओडी स्तर 2.28 मिलीग्राम प्रति लीटर था।

अन्य प्रमुख स्नान के दिनों में भी BOD स्तर स्नान के लिए उपयुक्त था। मकर संक्रांति (14 जनवरी) को BOD स्तर 3.26 मिलीग्राम प्रति लीटर था।

महाकुंभ के कथित प्रमुख स्नानों में हर उम्र के लोगों ने प्रदूषित बनाई जा चुकी संगम नदियों में डुबकी लगाई।

प्रदूषित की जा चुकी नदियों का पानी पीया जाए या उसमें ‘पवित्र स्नान’ के नाम पर डुबकी लगाई जाए, परिणाम सिर्फ़ एक है – ख़राब स्वास्थ्य। प्रदूषित पानी जलजनित बीमारियां,दस्त,हैज़ा, पाचन तंत्र विकसित होने में रुकावट व उसे खराब करना इत्यादि में मदद करता है।

आस्था, वैकल्पिक है… चाहें वह करोड़ों लोगों द्वारा मानी जाए या फिर किसी एक व्यक्ति द्वारा। लेकिन अगर कथित आस्था एक पूरे पारिस्थितिक तंत्र ( उदाहरण – जल) को खत्म कर रही है, जीवों के जीवन को नष्ट कर रही है, आपके शरीर को रोगग्रस्त कर रही है और जहां सरकार इसके आयोजन में भागीदार और प्रचार में संचालक है, तो यहां सत्ता की सरकार की जवाबदेही बनती है कि वह इस सवाल का जवाब दे कि कथित आस्था की पूर्ती के लिए पर्यावरण और उसमें रहने वाले जीवों को संकट में क्यों डाला जा रहा है? वह संकट जिसे टाला जा सकता है, सभी जीवों के बारे में सोचते हुए।

‘महान आयोजन करने का सौभाग्य हमारी सरकार को मिला है’ – सीएम योगी ने कहा पर सवाल यह है कि क्रियान्यवन किसके लिए किया गया है? क्योंकि आस्था की डुबकी लगा रहे लोग भी इसमें जूझ रहे हैं और पर्यावरण भी।

 

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