‘बोलेंगे बुलवाएंगे हंस के सब कह जायेंगे ‘ के इस एपिसोड में हम जानेंगे कि पुरुषों को तो आधिकारिक रूप से अपने जीवनसाथी का चयन करने की अनुमति होती है, जबकि महिलाओं को अपने साथी चयन करने की आज़ादी नहीं मिलती वह अपने लिए कैसा पति चाहती हैं। देखा जाए तो यह पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की आवाज को दबाने वाली स्थिति है, जो उन्हें समाजिक, आर्थिक और आत्मिक रूप से निराशा की ओर ले जाती है।
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यहां महिलाओं को सिर्फ परिवार और समाज की मान्यताओं और नियमों के अनुसार जीने के लिए बांध दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें खुद को व्यक्त करने, अपने सपनों और अभिलाषाओं को पूरा करने का अधिकार नहीं होता है। यह मानसिकता एक समाज की अवधारणा को दर्शाती है, जहां नारी को सिर्फ समाज की सेवा करने का दायित्व सौंपा जाता है और उसे समाज में पुरुषों के आदेशों के अनुसार चलना होता है।
एक महिला के पति के चयन में उसके स्वतंत्रता, स्वाभाविकता और सम्मान का अर्थ छिपा होता है। महिलाओं से उनकी अभिव्यक्ति का अधिकार को हमेशा दूर रखा गया। इसलिए इस मुद्दे के बारे में सोचना भी अवश्यक है और हमारी समाजिक संरचना में बदलाव भी आवश्यक है।
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