26 जनवरी जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मानते आये हैं. आज के ही दिन विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान ‘भारतीय संविधान’ को लागू किया गया था. आज हम 72वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। लेकिन इन अधिकारों का लाभ लोगों को कितना मिल पाता है? आज हम कुछ ऐसे उदाहरण देखेंगे जो हमारे संविधान की धज्जिया उड़ाते हुए नज़र आ रहे हैं |
सबसे पहले हम आते हैं समानता के अधिकार पर इसका अर्थ यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान ढंग से उन्हें लागू करेगा. धर्म, नस्ल, जाति, लिंग के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाएगा. लेकिन हल ही में हाथरस की घटना कौन भुला है ? जहाँ एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसके साथ दरिंदगी की सारी हदे पार की गई|
अब आते हैं शिक्षा के अधिकार पर तो आपको बता दें की अनुच्छेद 21 (क) के अनुसार 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा. इसके प्रचार प्रसार तो हुए लेकिन जमीनी हकीकत हमारे संविधान में शोषण के विरुद्ध भी अधिकार दिया गया है जिसके तहत किसी व्यक्ति की खरीद-बिक्री, बेगारी या जबरदस्ती काम करना भी दंडनीय अपराध है |
लेकिन हल ही में एक ऐसा मुद्दा हमारे सामने आया जिसने हमें सोचने पर मज़बूर कर दिया क्या वाकई इस पर कुछ हो रहा है। हमारे संविधान ने हमें धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी दिया मतलब कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है |लेकिन कुछ समय से लव जिहाद का मुद्दा जोरो पर है जब हमारे मुख्य मंत्री ही संविधान के अधिकारों का अनदेखा करेंगे तो अन्य लोगों के क्या कहने।
संविधान द्वारा मूल रूप से सात मूल अधिकार प्रदान किए गए थे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार। हालांकि, संपत्ति के अधिकार को 1978 में 44वें संशोधन द्वारा संविधान के तृतीय भाग से हटा दिया गया था तोअब हमारे छः ही मौलिक अधिकार हैं| लेकिन जितने भी अधिकार हमें संविधान में दिए गए हैं वो पूरी तरह से लागू नज़र नहीं आ रहे।