महिलाओं के सशक्तिकरण, उनकी भागीदारी, हिस्सेदारी और उनकी पहचान को उजागर करने को लेकर काफी बात की जाती हैं। उन पर काफी चर्चाएं भी होती है। योजनाएं बनती हैं। हर क्षेत्र में बिना किसी भेदभाव के उन्हें आगे लाने की बातें की जाती हैं। पर क्या इन सब चीज़ों से जो हम ‘महिला सशक्तिकरण’ की बातें करते हैं, वह पूरी हो रही हैं?
12 दिसंबर 2020 को भारत सरकार द्वारा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवी रिपोर्ट पेश की गयी थी। यह रिपोर्ट 17 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों को ध्यान में रखते हुए निकाली गयी थी। जिसमें लैंगिक समानता और सतत विकास ( एसडीजी-5 ) के महत्व की और संकेत किया गया था।
इन संकेतों में शिक्षा, शैक्षिक स्वतंत्रता, आर्थिक योगदान, आर्थिक सवतंत्रता, घरेलू प्रबंधन, निर्णय लेना, घर में काम करने के दौरान अपनाई गयी स्थिति और स्वास्थ्य – जो भारत में महिलाओं की स्थिति पर सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। इसके आधार पर हम यह समझ सकते हैं कि महिलाएं घर के निर्णयों में भाग ले रही है। क्या उन्हें परिवार में स्वास्थ्य से जुड़े फैसलों को लेने के लिए इज़ाज़त दी जाती है। परिवार और समाज में उनका स्तर आदि।
स्वाथ्य, घरेलू खरीद, रिश्तेदारों के पास जाने का निर्णय
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवी (एनएफएचएस -5) 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 86.5% की बढ़ोतरी देखी गयी है। जो की एनएफएचएस -4 (2015-2016) की रिपोर्ट में जिसका प्रतिशत 75.2% था।
वहीं नागालैंड में 99 प्रतिशत महिलाएं घरेलू निर्णय में भाग लेती हैं। इसके बाद मिज़ोरम में 98 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी पायी गयी है।
दूसरी ओर,देखें तो पता चलता है कि लद्दाख और सिक्किन में महिलाओं की भागीदारी निर्णय लेने में काफी कम है। आंकड़ों के अनुसार, विवाहित महिलाओं में फैसले लेने के निर्णय में 7 से 5 प्रतिशत गिरावट आयी है।
निर्णय लेना
स्वाथ्य,मुख्य घरलू खरीद और रिश्तेदारों को मिलने को लेकर निर्णय से संबंधित –
राज्य | नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 | नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4 |
पश्चिम बंगाल | 88.9 | 89.9 |
त्रिपुरा | 90.9 | 91.7 |
तेलंगाना | 87.2 | 81 |
सिक्किम | 89.7 | 95.3 |
नागालैंड | 99.2 | 97.4 |
मिज़ोंरम | 98.8 | 96 |
मणिपुर | 92.3 | 91.4 |
महाराष्ट्र | 94.8 | 96.2 |
लक्षदीप | 89.8 | 89.3 |
लद्दाख | 92.2 | 82.1 |
केरला | 80.4 | 87.6 |
कर्नाटका | 82.7 | 80.4 |
जम्मू-कश्मीर | 81.6 | 84 |
हिमाचल प्रदेश | 93.9 | 90.8 |
गोआ | 93.1 | 93.8 |
डी एंड एन हवेली, दमन और ड्यू | 91.9 | 81.5 |
बिहार | 86.5 | 75.2 |
असाम | 92.1 | 87.4 |
आँध्रप्रदेश | 84.1 | 79.9 |
अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह | 94.5 | 92.6 |
गुजरात | 92.2 | 85.4 |
स्त्रोत – एनएफएचएस-5
महिला जिसके पास अपनी घर या ज़मीन हो ( संयुक्त या अकेले)
रिपोर्ट में 22 राज्यों में से 11 राज्य ऐसे हैं, जिसमें महिलाओं द्वारा घर या ज़मीन रखने के हिस्से में कमी आयी है। ग्यारह में से पांच उत्तर पूर्व में है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- 4 के मुकाबले त्रिपुरा में 40 प्रतिशत इस मामले में कटौती देखी गयी है। केरल में 7.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गयी है।
यूं तो कागज़ी कानून और संविधान में महिलाओं को पुरुषों के अनुरूप ही पैतृक संपत्ति पर उनका हक़ होने की बात की गयी हैं। इसके बावजूद भी महिलाओं को उनके पिता की संपत्ति का हिस्सा नहीं मिलता। इन आंकड़ों को देखकर यह बात तो साफ है कि महिलाओं के लिए सिर्फ कानून बनाये गए। पर उन्हें सही प्रकार से लागू नहीं किया गया।
कर्नाटका और तेलंगना में देखा गया कि जिन महिलाओं की आय 15 से 49 साल के बीच है। उनमें से 67.6% और 66.6% महिलाओं के पास उनके नाम की ज़मीन और घर है।
महिलायें जिन्होंने पिछले 12 महीने में काम किया, उन्हें नकद पैसे मिले
तेलंगाना में इसका प्रतिशत 45.1 प्रतिशत है। इसमें 15 से 49 साल के बीच की महिलायें शामिल हैं। इसके बाद आंध्रप्रदेश में 42.2 प्रतिशत और मणिपुर में 42.1 प्रतिशत है। सिक्किम में एनएफएचएस –4 में 19.9 प्रतिशत से एनएफएचएस –5 में 32.7 प्रतिशत में काफ़ी सकारात्मक बदलाव देखने को मिला। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और लक्षद्वीप में महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी में बहुत ज़्यादा कमी पायी गयी।
महिलाएं जो खुद खरीदा हुआ फोन इस्तेमाल करती हैं
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस –5) का डाटा यह दर्शाता है कि दुनिया भर और भारत में स्मार्टफोन की बिक्री पिछले दशक से ज़्यादा बढ़ी है। 22 राज्यों में अब बहुत-सी महिलाओं के पास फोन है। वहीं रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि जम्मू-कश्मीर में इसका प्रतिशत 21.3 और लक्षद्वीप में 19.1 प्रतिशत है। गोआ में 91 प्रतिशत से अधिक महिलाओं के पास फ़ोन है। वहीं गुजरात में सिर्फ 48.8 प्रतिशत महिलाओं के पास ही फोन है। नएफएचएस –4 और एनएफएचएस –5 ने इस राज्य में सबसे कम ( 0.9%) वृद्धि रिपोर्ट की है।
महिलायें जो मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का उपयोग नहीं करती
इसमें 15 से 24 वर्ष की आयु की महिलाएं शामिल हैं। सरकार और कई एनजीओ महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान स्वछता के प्रति जागरूकता फ़ैलाने का काम करती है। इस लाइन में मिज़ोरम राज्य को छोड़कर सभी राज्यों की महिलाएं मासिक सुरक्षा का ध्यान रखती है। हालाँकि, बिहार में सिर्फ 58.8 प्रतिशत महिलाएं ही मासिक स्वछता का ध्यान रखती है। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह और गोआ में इसका प्रतिशत 98.9% और 96.8% है। जो की अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे ज़्यादा है।
महिलाएं जो बैंक खाते का इस्तेमाल करती हैं
इसमें 15 से 49 साल के बीच की महिलाएं आती हैं, जो बचत खाते का उपयोग करती है। इन उम्र की महिलाओं के बीच उनके नाम के बैंक खातों में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। बिहार में 50.3 प्रतिशत के साथ सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी देखी गयी है, जिसके बाद मिज़ोरम 37.1 प्रतिशत पर है। वहीं एनएफएचएस-4 की रिपोर्ट के अनुसार लक्षद्वीप में सबसे ज़्यादा कमी देखी गयी है। साल 2014 से, प्रधानमंत्री जन धन योजना के अंतर्गत भारत में 40 करोड़ खाते खोले गए थे। जिसमें 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा महिलाएं थीं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के बाद कुछ हद तक यह बात साफ़ हो गयी कि कुछ क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। तो कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जहां महिलाओं की हिस्सेदारी में कमी देखने को मिली है। मासिक धर्म के दौरान स्वछता,बैंक खाते का होना, फोन इस्तेमाल करना है , वह चीज़ें है जो की सामान्य रूप से होनी चाहिए। लेकिन वह नहीं है। इन सब चीज़ों के लिए भी जद्दोजेहद की जा रही है। तो इन चीज़ों को महिला सशक्तिकरण देना, सही नहीं लगता है। जो की सामान्य तौर पर होनी चाहिए।