उत्तर प्रदेश रोटी के लिए गए थे रोटी के लिए वापस आ गए : कोरोना महामारी के चलते सबसे अधिक दुर्दशा देश के असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मजदूरों की हुई है| मजदूरों को खून के आंसू पिलाने वाली सबसे अधिक जिम्मेदार राज्य सरकारें रही| जो लॉक डाउन में फंसे मजदूरों को ना तो उनका बकाया भुगतान दिला सकी और ना ही उनके खाने-पीने की सुविधाएं मुहैया करा सकीं| जिस तरह से रोटी के लिए अपना वतन छोड़कर मजदूर महानगरों में गए उसी तरह रोटी के लिए वापस भी आ गए और अभी भी उनके आने का सिलसिला जारी है| ऐसा ही कुछ हाल उत्तर प्रदेश के मजदूरों का भी है| मजदूर इस तरह के संकट की घड़ी में एक-एक रुपये और दो जून की रोटी के लिए लाचार हो गया और अंत में उन्हें अपने वतन वापस लौटने के लिए पैदल और साइकिल की यात्रा करनी पड़ी| जिसमें कितने मजदूरों के तो पैर सूज गए फफोले पड़ गए और भूख प्यास से तड़पते चलते रहे| जिससे इसी सफर की मुसिबत में बहुत से मजदूरों को सड़क एक्सीडेंट, ट्रेन ने कुचला और कोरेंटाइन में मौत हो गई और वह घर तक नहीं पहुंच पाए
अभी तक में जो भी मजदूर पैदल साइकिल रिक्शा या ट्रक से वापस आ रहे हैं उनकी दास्तान सुनते ही बनती है| जैसे की कालिंजर कस्बे के आशाराम और भोला का कहना है की वह मजदूरी करने के लिए अहमदाबाद गये थे वहाँ वह एक कपड़ा फैक्ट्री में मजदूरी करते थे अचानक से हुए लॉकडाउन के कारण वह परेशान हो गये जो थोडा बहुत उनका पैसा था वह भी नहीं मिल पाया और खाने के लाले पड़ गये| जिस रोटी के लिए वह अपना वतन और परिवार छोड़ कर गये थे उसी के लिए तरसने लगे और अन्त में लगभग 50 दिन इस तरह की मुसिबत से गुजरने के बाद कुछ दूर पैदल और कुछ दूर ट्रेक में लद कर किसी तरह अपने वतन को वापस लौटे हैं|
इसी तरह मुंबई गुजरात दिल्ली जैसे बड़े-बड़े महानगरों में जहां भी जो मजदूर थे वहीं फंसे रहे गए और जो भी काम करते थे उनका मालिकों ने बहुत से लोगों का बकाया भुगतान नहीं दिया| यहां तक कि बहुत से मकान मालिकों ने भी उन्हें कमरा खाली करने की धमकी दी और खाली भी करा लिए कई लोग एक-एक रुपए के लिए तरसते रहे खाने-पीने की भी व्यवस्था नहीं हो सकी लेकिन इसके बावजूद भी वह महीनों वहीं फंसे तड़पते रहे एक मजदूर जो अपना परिवार छोड़कर परदेस जाता है और ऐसी संकट की घड़ी में जहां एक तरफ परदेस में मजदूर तड़प रहा था और वहीं दूसरी तरफ गांव में उनका परिवार तड़प रहा था और अभी भी बहुत से लोग जो फंसे हैं उनके परिवार और वह तड़प रहे हैं यह बात किसी से छुपी नहीं है लेकिन उनका कहना है कि रोटी के लिए उनको परदेस जाना पड़ता है| क्योंकि अगर वह बात करें उत्तर प्रदेश में खासकर बुंदेलखंड का जो इलाका है वह बहुत ही पिछड़ा और बेरोजगारी से भरा इलाका है यहां का मजदूर अगर रोजगार ढुंडने के लिए बडे़-बडे़ शहरों और महांनगरों के लिए पलायन करके ना जाये तो उसको दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो जाता है| ऐसे में उनके सामने मजबूरी होती है कि बाहर जाना ही पड़ता है| लेकिन कोरोना महामारी के चलते हुए लॉक डाउन ने उन्हें उसी बेरोजगारी के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है| जिसके लिए वह अपना घर परिवार और गांव छोड़ कर बडे़ शहरों और महांनगरों को जाते हैं बहुत से मजदूरों का कहना है कि उनको यह दिन कभी नहीं भूलें गा पर आगे परिवार लगा है और बुंदेलखंड में रोजगार के ऐसे कोई साधन नहीं है ग्रामीण स्तर पर मनरेगा योजना है लेकिन उससे कितना काम मिलेगा दुसरी बात हर कोई मनरेगा में काम भी नहीं कर पाता क्योंकि जो लोग काम भी करते हैं वह भी मजदूरी के लिए छह छह महीने लटके रहते हैं और एक मजदूर की जो दास्तान होती है कि रोज का खाना रोज का कमना होता है| दूसरी बात इस योजना में इतना पैसा भी नहीं है जिससे परिवार का गुजारा ठीक से चल सके | लेकिन बाहर महानगरों में बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां और अन्य काम होते हैं जिससे उनके परिवार का पालन पोषण अच्छे से हो पाता है| इस लिए वह काम करने के लिए परदेश को पलायन करते हैं| अगर यही चीजें अपने बुंदेलखंड में रोजगार के लिए मुहैया हो जाऐ तो शायद मजदूरों का पलायन रुक जाता और जो आज कोरोना के चलते लॉक डाउन के कारण स्थिति हुई है मजदूरों की वह शायद ना होती| लेकिन मजदूरों का दर्द कौन सुनेगा वह इतना लंबा सफर तय करके आए हैं पर कितने दिन यहां गुजारेंगे| वापस उन्हें पेट के लिए दोबारा उन्हीं शहरों की ओर जाना ही होगा सरकारें वादे तो बहुत करती हैं मजदूरों के लिए लेकिन धरातल में कुछ नजर नहीं आता यही कारण है कि उत्तर प्रदेश और खासकर बुंदेलखंड का मजदूर पलायन कर रहा है और आगे भी पलायन करने के लिए मजबूर होगा|
उत्तर प्रदेश सरकार के हिसाब से अभी तक में लगभग 23 लाख मजदूर अपने वतन को वापस आ गए हैं| जिसमें उन्होंने घोषणा की है कि यूपी और अन्य राज्यों मैं प्रदेश के कामगारों और श्रमिकों को सेवा योजित करने के लिए बनने वाले माइग्रेशन कमीशन गठित करने की रुपरेखा तैयार की जा रही है| जिसका नाम कामगार श्रमिक (सेवा योजना एवं रोजगार) कल्याण आयोग होगा| जिसके तहत श्रमिकों एंव कामगारों के सेवायोजना, रोजगार, स्किल मैपिंग और कौशल विकास के क्षेत्र में आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा जाएगा | लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस तरह की पीड़ा प्रवासी मजदूरों को सहनी पडी़ और भूखों रहना पड़ा उनके खून पसीने का पैसा भी बहुत से कंपनियों से वापस नहीं मिला जिस रोटी के लिए वह गए थे उसी के लिए वापस चले आए तो क्या सरकार इन सभी मजदूरों के भरण-पोषण के लिए अपने बुंदेलखंड में भी कोई रोजगार दे पाएगी या फिर इसी तरह इनको भटकना पड़ेगा और ऐसी ही स्थितियों का सामना करना पड़ेगा|