खबर लहरिया ताजा खबरें बुंदेलखंड के पानी की समस्या का समाधान का सही तरीका

बुंदेलखंड के पानी की समस्या का समाधान का सही तरीका

जिला बांदा। 26 जुलाई 2019 को डीएम हीरालाल ने अपने आवास के कुआं तालाब में दीपदान कार्यक्रम किया। जिला का जखनी गांव जल ग्राम घोषित है उसका आदर्श लेकर यहां के डीऐम ने पानी बचाने की मुहीम छेड़ी। 25 अप्रैल 2019 को प्रधान-मंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी जनसभा को सम्बोधित करने आये थे। अपनी भाषण में उन्होने पानी की समस्या से निपटने का एलान किया। यहां की जनता बहुत खुश और जोश से भर गई। इस समस्या पर सफलता पाने के लिए डीऐम हीरालाल ने गांव गांव कुआं पूजन, दीपदान, चौपालें, पैदल मार्च और कुआं तालाब जियाओ अभियान जैसे के तमाम काम किए।

अगर मैं बात करुँ कुआ तालाब जियाओ अभियान की तो एक तरफ डीऐम का कहना है कि इसके लिए किसी तरह के बजट की आवश्यकता नहीं है तो वहीं इसके लिए तीन विभागों को शामिल किया गया। इन विभागों का काम पहले से ही कुआ तालाबों को जीवित रखना है इनके अपने लक्ष्य होते हैं पर डीएम ने अपने द्वारा चलाये जा रहे अभियान से जोड़कर इनको अपने नाम मशहूर करने की होड़ में नज़र आये।
मैं तीनों विभाग से बजट और काम का आकड़ा लेना चाही पर कई दिन इन विभागों में जाने के बाद सिर्फ कृषि विभाग की शाखा भूमि सरक्षण अधिकारी से कुछ आकड़े मिल पाए। इस विभाग द्वारा खेत तालाब योजना के तहत 2019-20 में कुल 678 तालाब खोदे जाने थे। डीएम ने 678 के साथ मिलाकर कुल 2000 तालाब खोदने के आदेश दिए जिसमें कुल लगभग 335-40 तालाब ही खुद पाए। तालाब खोदने की अन्तिम तारीख 30 जून थी। इस अभियान की शुरूवात 10 जुलाई से हुई थी।  2000 तालाबों में कुल 1260 माध्यम आकार के तालाब शामिल हैं जिनकी लम्बाई 35 मीटर, चौड़ाई 30 मीटर और गहराई तीन मीटर है। इसके लिए 14 करोड 38 लाख 92 हज़ार रुपये की जरूरत है। इसीतरह 740 लघु तालाब हैं। इसकी 22 मीटर लम्बाई, चौड़ाई 30 मीटर और 3 मीटर गहराई होती है। इसका एक तालाब खोदने का खर्च 52 हज़ार 500 रुपये होता है। कुल 740 तालाबों की खुदाई का बजट 3 करोड 88 लाख रुपये होता है। दोनो तरह के तालाब खुदाई का कुल खर्च 18 करोड 27 लाख 42 हज़ार रुपये होता है। जिसमें अब तक में कुल 2•56 करोड ×3 = 7•68 करोड रुपये शासन से मिल चुका है बाकी अभी नहीं मिला।
जब एक विभाग करोडों का बजट खर्च कर रहा है इस अभियान को सफल बनाने में तो यह नि:शुल्क कैसे हो सकता है। दो विभागों ने तो आकड़े ही नहीं दिए वरना अथाह बजट होता। इसके अलावा दीपदान, जल महोत्सव, चौपाल, कुआं तालाब पूजन और जल मार्च जैसे कार्यक्रम जो किए गये उनके खर्चो का कोई हिसाब किताब नहीं। किस बजट में, कहां एड करेंगे इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं।
मैने कई गांवों के तालाबों को देखा जैसे लामा गांव, पड़मई गांव, माटा गांव प्रधान ने अपने स्तर से इन तालाबों को बहुत जल्दी में खुदवाया, क्योकि डीएम का आदेश था। प्रधानों में अपनी सुरक्षा की बात करते हुए कैमरे पर न आने की रिक्योस्ट करते हुए बोले उन्होने बहुत पैसा खर्च किया एक तालाब खोदाए। 50 से 90 हज़ार रुपए का कर्ज लेना पड़ा। इस पैसे को जुगाढने में उनको बहुत भटकना पड़ा। किसी ने साहूकारों से लिए तो किसी ने अपने ही भाई, पति, पत्नी की नौकरी का पैसा लगा दिया। पता नहीं ये पैसा कब तक और कैसे मिलेगा जब डीएम नि:शुल्क बता रहे हैं।
 बांदा में गांव-गांव आयोजित हुईं जल चौपालें इस बात की गवाह हैं। इसके तहत तालाब-कुआं जियाओ अभियान, जिले के 471 ग्राम पंचायतो में कुआं पूजन और नवाब टैक में जल महोत्सव के नाम पर 5000 दीपों का दीपदान किया जिसमें निर्वाचन आयुक्त उत्तर प्रदेश एल वेंकटेश्वर लू शामिल हुए और शहर के छाबीतालाब से लेकर प्रयागी तालाब तक पैदल जल मार्च किया गया।
जल संरक्षण की इस अनूठी पहल की गूंज प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक पहुंच गई। जिसके बाद जल शक्ति मंत्रालय ने इस अभियान का जायजा लिया।
कुएं-तालाबों का पूजन और दीपदान
जिला प्रशासन ने पहले चरण में भूजल बढ़ाओ, पेयजल बचाओ अभियान के तहत छह ब्लाकों में जल चौपालों का आयोजन किया। ग्रामीणों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक करने के बाद दूसरा चरण 10 मई से शुरू किया गया।
 पानी को मुद्दे पर किस तरह राजनीती की जा सकती है इस राजनीती विश्लेशण में शामिल हैं बांदा डीएम और महोबा जिले के बन्नी गांव का  किसान। मई जून का महीना था। बांदा के लोगों और जानवरो के लिए पानी की मांग बढ़ रही थी। पूरे शहर की पाईप लाइन टूटी है और जल संस्थान विभाग का दावा है तीन साल से बजट नहीं है तो वहीं पर डीएम जल बचाने के नाम पर कुआ तालाब पूजन व दीपदान, जल महोत्सव, जल मार्च, जल गोष्ठी, मुसायरा, चौपालें और कुआं तालाब जियाओ अभियान को नि:शुल्क बताते हुए लाखो करोडो खर्च करते हैं ताकि प्रधानमंत्री खुश किए जा सकें। तो वहीं किसान अपने निजी ट्यूवबेल से जिसका सालाना बिल भी भरते हैं दस किलोमीटर चन्द्रावल नदी भरकर जनता और जानवर को जीवनदान देने का काम करते आ रहे हैं।