खबर लहरिया Blog बढ़ते तापमान से बुंदेलखंड में पानी की कमी, टैंकरों से पानी भरने के लिए लोग करते हैं संघर्ष

बढ़ते तापमान से बुंदेलखंड में पानी की कमी, टैंकरों से पानी भरने के लिए लोग करते हैं संघर्ष

बांदा जिला मुख्यालय से महज 55 किलोमीटर दूर स्थित कालिंजर दुर्ग एक ऐतिहासिक जगह है लेकिन गांव में लोग इस भीषण गर्मी में बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस गांव में पानी की समस्या इतनी विकराल है कि गांव के बच्चों से लेकर घर की महिलाएं और बुजुर्ग भी अपने-अपने बर्तन लेकर रात की नींद खराब करते हैं।

                                                                                  गांव में टैंकर से पानी भरते हुए लोगों की तस्वीर ( फोटो – गीता देवी/ खबर लहरिया)

रिपोर्ट – गीता देवी 

बढ़ते तापमान के साथ देश में कई हिस्सों में पानी की कमी हो गई है। लोगों को प्यास बुझाने के लिए और अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। कहीं-कहीं लोगों को मजबूरन गन्दा पानी पीना पड़ रहा है। भले ही सरकार पानी के लिए कितनी भी योजनाएं क्यों न चलाती हो लेकिन लोगों की प्यास बुझाने में ये योजनाएं नाकाम साबित हो रही है। पानी की किल्लत को झेलते उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले की स्थिति भी ऐसी है।

बांदा,बुंदेलखंड। हमेशा से पानी की समस्याओं से जूझता आया है। यहां कई गांव ऐसे हैं, जहां पर लोग गर्मी आते ही बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने लगते हैं।

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कटरा कालिंजर में हमेशा से है पानी की दिक्कत

नरैनी ब्लाक के अन्तर्गत आने वाले कटरा कालिंजर में पानी का संकट थम नहीं रहा। गर्मी की तपन और रात की नींद की परवाह किए बगैर पानी के लिए लोग संघर्ष करते हैं। लोग टैंकर आते ही पानी भरने के लिए टूट पड़ते हैं। मई और जून की तेज आग उगलती तपन में लगभग 9 हजार की आबादी वाला कटरा कालिंजर गांव पानी के लिए तरस रहा है। जबकि पूरे गांव में 60 हैंडपंप हैं और 14 सोलर टंकी लगी हैं फिर भी स्थिति गंभीर है। फिलहाल वहां के प्रधान अपनी तरफ से लोगों तक पानी पहुंचाने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं।

बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष करते हैं लोग

बांदा जिला मुख्यालय से महज 55 किलोमीटर दूर स्थित कालिंजर दुर्ग एक ऐतिहासिक जगह है लेकिन गांव में लोग इस भीषण गर्मी में बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस गांव में पानी की समस्या इतनी विकराल है कि गांव के बच्चों से लेकर घर की महिलाएं और बुजुर्ग भी अपने-अपने बर्तन लेकर रात की नींद खराब करते हैं। घंटों पानी के टैंकर का इंतजार करते रहते हैं। टैंकर आते ही भीड़ लगाकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। कभी-कभी तो पानी भरने के पीछे गांव के लोगों का आपस में विवाद भी हो जाता है।

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सरकार के दिए नल में नहीं आता पानी

कटरा गांव की अनीसा खातून और रन्नों बताती है कि पानी के स्त्रोत तो बहुत है – जैसे सप्लाई वाले नल है, हैंडपंप है,सोलर टंकियां है लेकिन इनमें रोज पानी की सप्लाई नहीं आ रही है। हैंडपंप से पानी भरते हैं लेकिन गांव में जो हैंडपंप है वह भी इस तरह की गर्मी में जवाब दे जाते हैं। यहां का वाटर लेवल बहुत नीचे है जिसके चलते हैंडपंपों से पानी निकालना बहुत मुश्किल हो जाता है। 1 घंटे नल चलाने के बाद भी उनको दो डिब्बे पानी नहीं मिल पाता। पानी भरने के लिए बहुत भीड़ लगती है। इस समस्या की शिकायत कई बार अधिकारियों से भी कर चुके हैं लेकिन अभी तक हमारी समस्याओं का निदान नहीं हो पाया है। उनका कहना है कि पानी न मिलने के कारण हम लोगों को कई बार तो इस तरह की गर्मी में दो लोटा पानी से नहा कर काम चलना पड़ता है।

पथरीला इलाका का होना है, न पानी होने की वजह

बंसु सोनकर बताते हैं कि यहां बुरी स्थिति इसलिए है क्योंकि यह पथरीला इलाका है। यहां हमेशा से पानी की दिक्कत रही है। कभी भूजल स्तर 100- फीट से नीचे नहीं रहा लेकिन आज वो नीचे गिरकर 2 सौ फीट तक चला गया है। उससे नीचे बोरिंग सफल नहीं है क्योंकि पत्थर पड़ जाता है। इसलिए यहां लोगों को सालभर पानी की मार झेलनी पड़ती हैं।

पानी की कमी से पड़ता है स्वास्थ्य पर असर

कटरा गांव की मुन्नी बताती है कि उनके मोहल्ले में ज्यादातर खटीक और कुछ घर मुस्लिम के हैं। पानी के लिए सरकार ने भले ही बहुत सारी योजनाएं चलाई है। कटरा कालिंजर में 2014 में जब भैरव प्रसाद मिश्र भाजपा से सांसद बने थे तो उन्होंने गांव गोद लिया था। तब सोलर टंकियां लगवाई थी। लेकिन वह भी आज खराब पड़ी है, हैंडपंप है भी वो खराब पड़े हैं। गिने चुने हैंड पंप है जो पानी दे रहे हैं। उनमें घंटों मस्कत करनी पड़ती है जिसके चलते उनके स्वस्थ पर बुरा असर पड़ता है। आए दिन वह बीमार बने रहते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा पानी उन्हीं महिलाओं को भरना पड़ता है। हाथ पैरों में दर्द होने लगता है, बुखार आ जाता है, लाइन में भीड़ के साथ खड़े होने पर कई बारी चक्कर आने लगते हैं।

काम पर भी पड़ता है पानी का असर

सियसखी कहती हैं उनके यहां पानी के हालात हर साल बद से बदतर होते जा रहे हैं। पानी के लिए सुबह 4:00 बजे से ही लोग बर्तन इकट्ठा करके दरवाजे पर बैठ जाते हैं। रात में देर रात तक पानी भरने की होड़ मची रहती है। कई बार तो पानी भरने के चक्कर में समय से मजदूरी के लिए नहीं जा पाते जिससे उनके काम पर भी प्रभाव पड़ता है। पानी भरने के लिए बैठ जाओ तो घर के बाकि के काम छूट जाते हैं। इतनी तेज गर्मी में बिना पानी कैसे गुजारा हो। गर्मी में पूरे दिन में लगभग उनके घर में 500 लीटर से ऊपर पानी खर्च हो जाता है। नहाना, कपड़ा धोना, पीना के लिए और खाना बनाने के लिए लगता है। अब तो घर-घर शौचालय भी है तो उसके लिए भी पानी का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है।

प्रधान कहते हैं रात तक चलता है टैंकर

कटरा कालिंजर प्रधान बताते हैं कि 3000 वोटर वाले गांव में उनके 60 हैंडपंप लगे हैं जिसमें से 15 हैंडपंप खराब है। सिर्फ उनकी ही जिम्मेदारी नहीं होती पानी भरने वालों की भी जिम्मेदारी होती है जो लोग ठीक से नहीं निभाते। कई बार सोलर टंकियों के तार लोग तोड़ देते हैं, कई बार गलत जोड़ देते हैं, मोटर निकल लेते हैं। जिसके कारण भी टंकियां नहीं चल पाती। पाइप लाइन से भी पर्याप्त मात्रा में लोगों को पानी नहीं मिल पाता कहीं पानी पहुंचता है तो कहीं नहीं पहुंचता। एक टैंकर है उनके पास जिससे वह दिन में 15 चक्कर पानी गांव के लिए भेजते हैं। इतना ही नहीं कटरा के अलावा कालिंजर में भी उनके टैंकर से पानी जाता है। सुबह से लेकर रात 12:00 तक पानी भेजने का काम करते हैं। वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि लोगों को पानी की दिक्कत न हो और सोलर टंकियां बनवाने की भी कोशिश जारी है। सोलर वाली मोटर निकल गई है तो अब वह बिजली वाली मोटर लगवा कर उनको सही करने का काम करेंगे।

प्रधान का कहना – पानी को न करें बर्बाद

प्रधान का कहना है लोग भी काफी परेशान करते हैं। एक टैंकर में वह किस तरह से पानी दिनभर भेजते हैं वही जानते हैं। इतनी गर्मी में लोग फालतू पानी खर्च करते हैं। लोग इकट्ठा बर्तन रखकर बैठ जाते हैं एक टैंकर एक ही घर में खाली करते हैं, कमरे धोते हैं, आंगन धोते हैं, गाडियां धोते हैं इस तरह में भी फालतू पानी खर्च करते हैं जबकि लोगों को चाहिए कि जब टैंकर से पानी पहुंच रहा है तो लोग बंटवारा कर पानी ले और हिसाब से खर्च करें।

पानी के स्रोत की बात करें तो सरकार की एक बड़ी योजना है जल जीवन मिशन योजना जिसमें ‘हर घर जल’ पहुंचने के बड़े-बड़े वादे हैं लेकिन प्यास अभी भी नहीं बुझ रही जबकि इस योजना में करोड़ों रुपए का बजट खर्च हो रहा है गांव की गलियां ध्वस्त हो गई।

एक तरफ लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं, दूसरी तरफ पानी की बर्बादी भी बहुत हो रही है जिसके चलते यह विकराल समस्या पैदा हुई। अरे भाई पानी बचाना सीखिए जिसमें सबका हित होगा।

 

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