खबर लहरिया Blog बुन्देलखण्ड में पानी का संकट कोई नई बात नहीं

बुन्देलखण्ड में पानी का संकट कोई नई बात नहीं

बुन्देलखण्ड में पानी का संकट कोई नई बात नहीं, सदियों पुरानी बात है। सूखे और पानी के संकट को देखते हुए पूर्व कि केन्द्र सरकार द्वारा दिए गये बुन्देलखण्ड पैकज के तहत चित्रकूट के पाठा क्षेत्र और बाँदा के दोवावा क्षेत्र सहित कई जगहों पर नए तालाब भी खुदवाए गये थे।लेकिन ज्यादातर तालाब कागजों में बने रहे और जो धरातल में दिखे भी उनमें बहुत कम तालाबो में पानी देखा गया, सिवाय बारिश के कुछ दिनों को छोडकर। जैसे की चित्रकूट और बांदा का पठारी भाग जो पाठा कहा जाता है और सर्दी हो या गर्मी पानी का संकट यहाँ की सदियों पुरानी पहचान है।

मानिकपुर क्षेत्र के रामपुर, बांदा जिले का नरैनी का दोवावा क्षेत्र और महोबा जिले का जैतपुर क्षेत्र आज भी पानी के इस संकट से घिरा है। यहाँ लोगो को पीने के पानी के लिए सुबह से नंबर लगा कर पानी भरना पड़ता है। घंटो लाइन लगाना पड़ता है तब कहीं जाकर लोगों को पानी नसीब होता है। तब लोग साइकिल बैलगाड़ी और महिलाओ के सिर पर तीन-तीन बर्तन रख कर पानी भरते हैं। यहाँ तक की पानी के पीछे लोगों में झगड़े और मारपीट भी बहुत ही खतरनाक हो जाती है। इसके बाद भी जब नहीं मिल पाता तो पूरा निस्तार नदियों के सहारे लोग करते है।

कभी कभी तो नदियों का ही पानी पीना पड़ता है, लेकिन बुन्देलखण्ड की पानी की ये परेशानी खत्म होने का नाम ही लेती। अगरमैं बात करूँ मानिकपुर पाठा और पथरामानी की तो वहां लोग सुबह 5 बजे से जंगल के बीच का रास्ता तय करके नदियों से पानी लाते हैं और अपना जीवनयापन करते हैं। क्योंकि बिना पानी तो कोई चीज संभव नहीं है। हर चीज में पानी का खर्च है नहाने, खाना बनाने, कपड़ा धोने तक में पूरे दिन पानी का ही खर्च है।

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ऐसा नहीं है की सरकार ने योजनायें नहीं चलाई कई सारी योजनाएं चलाई लेकिन धरातल पर आते- आते सिर्फ कागजों में ही दर्ज होकर कैद हो गई और लोग बंद-बूंद पानी को तरसते हैं। कोई सुधार नहीं हो रहा है ये बुंदेलखंड वासियों का सरकार के ऊपर बड़ा सवाल है कि क्या कभी ये सूखे की स्थिति सुधर पाएगी? या यूँ ही तालाबों, कुओं, या फिर जंगलों में बने छोटे-छोटे गड्ढों से पानी छानकर पीते रहेंगे?

 

-रिपोर्टर गीता देवी