खबर लहरिया Blog गांव में पुलिया टूटने से पानी का बहाव, पुलिया बनाने की मांग

गांव में पुलिया टूटने से पानी का बहाव, पुलिया बनाने की मांग

पुलिया टूटने की वजह से महिलाओं को भी गर्भावस्था के दौरान बहुत दिकक्त होती है। गांव से दूर अस्पताल है तो जाने में समय लगता है ऊपर से रास्ता इतना गीला है कि कोई भी जाने में घबराएगा लेकिन मज़बूरी में जाना पड़ता है।

Water flow due to breaking of culvert in village, demand to build

                                                                         पुलिया टूटने की वजह से सारा पानी गांव के सड़क पर आ गया है और सड़क कीचड़ हो गई है (फोटो – शिव देवी)

रिपोर्ट – शिव देवी 

ग्रामीण क्षेत्रों में आपने छोटी-छोटी पुलिया देखी होगी जो गांव में बनाई जाती है। यह छोटी पुलिया पाइप लगाकर बनाई जाती है ताकि बरसात का पानी बाहर निकल सके। इसके साथ ही लोग जिनके मकान नीचे हैं वो आसानी से चलकर या गाड़ी, साइकिल के माध्यम से रास्ता पार कर सकें। उत्तर प्रदेश के बांदा जिला के तिंदवारी ब्लॉक के ग्राम पंचायत खौड के मजरा दतौली में पुलिया बनी तो लेकिन यह पुलिया टूट गई और उसका पानी गांव के कच्चे रास्ते में फैल गया है। अब यह रास्ता दलदल बन चुका है इसलिए आने-जाने वाले लोगों को संभल के चलना पड़ता है। दलदल रास्ता होने के कारण उन्हें हमेशा डर लगा रहता है, कहीं उनका पैर फिसल न जाए और वे गिर जाए। यह पुलिया 1 साल से टूटी हुई है। अब बरसात का मौसम है तो पानी कैसे बाहर निकलेगा? सारा पानी गांव में फैल जाता है। इसलिए लोग पुलिया को बनाने की मांग कर रहे हैं।

गांव के सुरेश वर्मा का कहना है कि “1 साल से प्रधान से पुलिया बनवाने की मांग बराबर कर रहे हैं पर ऐसा प्रधान बना है जो कोई काम भी नहीं कर पा रहा है। पुलिया नहीं होने से आवागमन ठप हो गया है। लोगों को 8 किलोमीटर घूम कर जाना पड़ता है जबकि यह मैन रास्ता है। अगर कोई रात-बिरात बीमार होता है या किसी को जल्दी हो तो लोग रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। हम मांग कर रहे हैं कि पुलिया का निर्माण जल्द से जल्द कर दिया जाए, जिससे आने-जाने में किसी तरह की परेशानी न हो।”

डिलीवरी के समय अस्पताल पहुंचने में असमर्थ

पुलिया टूटने की वजह से महिलाओं को भी गर्भावस्था के दौरान बहुत दिकक्त होती है। गांव से दूर अस्पताल है तो जाने में समय लगता है ऊपर से रास्ता इतना गीला है कि कोई भी जाने में घबराएगा लेकिन मज़बूरी में जाना पड़ता है। रघुवीर ने बताया कि “मेरी पत्नी सुधा की डिलीवरी होनी थी। इतनी बारिश होने के कारण रास्ते में दलदल मचा रहता है। गाड़ियां नहीं आ पाती हैं और ना तो कोई इस रास्ते से निकल पाता है। गर्भावस्था में बार-बार जाँच के लिए बड़ी मुश्किल से जाना पड़ता था। संभल के ले जाना पड़ता था ऐसी हालत में अगर पैर फिसलता तो मेरी पत्नी और बच्चे दोनों की जान चली जाती। जिस दिन डिलीवरी होनी थी। अस्पताल जाने के लिए घूम कर 8 किलोमीटर तिंदवारी जाना पड़ा लेकिन अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में डिलीवरी हो गई जिससे बहुत परेशानी हुई। गांव तक सरकारी अस्पताल की एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती ऐसे में। अगर पुलिया सही होती तो आराम से लोगों का अस्पताल जाने में आसानी हो जाती और इमरजेंसी में एंबुलेंस भी समय पर आ जाती।”

स्कूल जाने में हो जाती है देरी

शोभित का कहना है कि, “मैं स्कूल पढ़ने साइकिल से जाता हूं। साइकिल से इस रास्ते से निकलना मुश्किल होता है क्योंकि लोगों के खेती से अगर साइकिल निकालते हैं तो लोग गाली देते हैं। इसी चक्कर में समय से स्कूल नहीं पहुंचते हैं तो मास्टर डांटते हैं।”

प्रधान का बयान

गांव के प्रधान कृष्णा का कहना है कि “पुलिया टूटने के कारण कई गांवों को आने में दिक्कत हो रही है लेकिन मैं अपनी तरह से पूरा प्रयास किया है। अभी पुलिया बनने का  कोई बजट नहीं है जब बजट आएगा तभी पुलिया का निर्माण हो सकता है।”

कई गांव के लोगों के आवागमन का माध्यम

श्याम लाल का कहना है कि “इस रास्ते से 10 गांव के लोग पुलिया से निकलते हैं। इस पुलिया के माध्यम से बम्बिया गांव, बरेठी कला गांव, भवानीपुर गांव, पदारथपुर गांव के सभी लोग तिंदवारी जाने के लिए मैन यही रास्ता है। प्रधान से कई बार कहा भी है पर उन लोग ध्यान नहीं देते हैं। कहते हैं – हां, बन जाएगी। लेकिन कब? लोग अपने खेतों से निकलने नहीं देते तो लोगों को घूम कर जाना ही पड़़ता है।”

 

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