लॉकडाउन में मिल रही राशन सामग्री से दाल गायब देखिये राजनीति रस राय में :लॉकडाउन के समय कमाने के सारे रास्ते बंद हैं ऐसे में लोगों को भूख मिटाने की विपदा आ पड़ी है। सरकार, संस्थाएं और कुछ इंसानों की इंसानियत के चलते लोगों को खाना और जरूरत की सामाग्री पहुंचाई जा रही है। काम तो बहुत नेक और सराहनीय हैं लेकिन कई सवाल हैं जिनको पूंछना लोगों के हित में है।
2 राशन वितरण और खाना देने में शहरी और ग्रामीण स्तर में भी बहुत बड़ा भेदभाव है। संस्थाएं और इंसानियत इस काम में सबसे आगे हैं पर शहरी और कस्बे स्तर तक में ही क्यो? जबकि गांवों की स्थिति को भी देखना जरूरी है। आप कह सकते हैं कि वहां सरकार की तरफ से काम चल रहा है तो सच्चाई भी सुन लीजिए। एक तरफ सरकार कह रही है कि कोई भूखा न रहे इसलिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत तीन महीने तक प्रति यूनिट 5 किलो चावल या गेंहू और एक किलो दाल देने का प्राविधान है। प्राविधान तो है लेकिन सच्चाई भी सुन लीजिए।
3 आइये इसकी सच्चाई पर भी बात कर लेते हैं। देश की 80 करोड़ आबादी को इस योजना का लाभ देने का प्राविधान बनाया गया। 15-26 अप्रैल तक बुंदेलखंड में प्रति यूनिट 5 किलो चावल का वितरण हुआ पर दाल नहीं मिली। कोटेदारों के मुताबिक उनको दाल नहीं दी गई। ये भी जाने कि यह अनाज किसको किसको मिलेगा? कोटेदारों के मुताबिक अंत्योदय और पात्र गृहस्थी वाले राशन कार्ड, श्रम विभाग में रजिस्टर्ड श्रमिक और उन जॉब कार्ड धारकों को जिनका जॉब कार्ड कम से कम तीन साल से रिनिवल हो। क्योकि बहुत सारे ऐसे जॉबकार्ड हैं जो नाम के लिए बने हैं।
4 अपनी रिपार्टिंग के दौरान मैंने देखा कि बहुत से ऐसे गरीब, असहाय, विधवा, विकलांग लोग हैं जो राशनकार्ड जॉबकार्ड के पात्र हैं लेकिन उनके पास न राशनकार्ड हैं और न ही जॉबकार्ड। इसलिए वह राशनकार्ड में अनाज पा ही नहीं रहे हैं। इन गरीबों को राशन न मिलने की बात में प्रधान कहते हैं कि डिग्गी पिटवा कर राशनकार्ड बनवाने के लिए लोगों से कहा गया है। इसी तरह से जिला पंचायत सदस्य कहती हैं कि उन्होंने लोगों से मिलकर और सोशल मीडिया में अपील की है कि लोग राशनकार्ड बनवा लें। पर लोगों से बात करने पर ऐसा लगा कि उनको इन बातों के प्रति किसी भी तरह की कोई जागरूकता नहीं है। सोचने वाली बात है कि इस घड़ी में कौन चाहता है कि राशन न मिले।
5 इस योजना के तहत प्रति राशनकार्ड मिलने वाली एक किलो दाल अब तक नहीं बांटी गई। द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के मुताबिक प्रदेश को करीब 35,000 टन दाल की जरूरत है लेकिन अभी तक सिर्फ लगभग 3,500 टन ही दाल पहुंच पाई है. हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक एक किलो दाल का भी वितरण नहीं किया है। राज्य के अपर उपायुक्त (खाद्य) अनिल कुमार दूबे ने कहा, ‘नैफेड वाले दाल पहुंचा नहीं पा रहे हैं। दाल आनी थी लेकिन काला चना आ रहा है। यूपी सरकार ने 27 अप्रैल से दाल बांटने की योजना बनाई थी लेकिन दाल नहीं आ पाने के कारण इस तारीख से वितरण संभव नहीं हो पाएगा। उन्होंने कहा कि अभी तक ये संभावना है कि 15 मई से अप्रैल महीने की दाल बांटने की शुरुआत हो सकती है। हालांकि ये तय नहीं है कि इस तारीख से भी दाल बंट पाएगी। (ऑडियो)
6 इस समय चैत्र का महीना है इसलिए गांव में लोग या तो कटाई की मजदूरी कर रहे हैं या फिर शीला बीनकर अपना पेट भर रहे हैं। जब चैत खत्म हो जाएगा तो जिनके पास राशन लेने के कोई रिकार्ड नहीं उनको राशन कैसे मिलेगा? क्या वह लोग भूखे रहेंगे?? क्योंकि कोटेदार का कहना है कि प्रशासन से राशनकार्ड के हिसाब से ही राशन मिल रहा है तो बेगैर रिकार्ड वालों को कहां से दें??
7 मेरी इस चर्चा और रिपार्टिंग के अनुभव शेयर से आप लोग समझ गए ही होंगे कि गांवों में किस तरह की स्थिति है और आगे किस तरह की स्थिति आने वाली है। ऐसे में समाज, संस्थाओं और राजनेताओं को गांवों में भी शहरों और कस्बों जैसे ध्यान देने की जरूरत है। एक बात और कि जो लोग राशन देते समय फ़ोटो खिंचवाते हैं, ऐसा लगता है कि शादी की रस्में चल रही हों वह लोग लोगों की निजता का हनन क्यों करते हैं? क्यों शर्मिंदा करते हैं? साहब ये भूखे जरूर है लेकिन इनको भिखारियों की लाइन में क्यों खड़ा कर रहे हैं? इन्हीं सवालों और विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ तब तक के लिए नमस्कार!
अपील- हां भाइयों और बहनों एक बात और
लॉकडाउन का पालन करब हमार तुम्हार हाथ मा है। जबै बहुतै जरूरी होय तबै घर से निकरेव पै मुंह मा मास्क और सेनेटाइजर लगाकै। वापस घर आवैं मा घर घुसय से पहिले हाथ साबुन अउर पानी से निकतान धो लीनेव।