खबर लहरिया Blog WAQF BOARD: सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ क़ानून के कुछ प्रावधानों पर लगाई रोक, वक़्फ़ अधिनियम 2025 की कहानी 

WAQF BOARD: सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ क़ानून के कुछ प्रावधानों पर लगाई रोक, वक़्फ़ अधिनियम 2025 की कहानी 

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून 2025 पर पूरी तरह से रोक लगाने से इनकार कर दिया है लेकिन कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाई है। कोर्ट ने वक्फ करने के लिए कम से कम पांच साल तक मुस्लिम होने की अनिवार्यता पर रोक लगाई है।

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सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार एआई)

 सोमवार 15 को 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ संसोशन क़ानून को लेकर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने वक़्फ़ संसोशन क़ानून से जुड़े कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है। इस साल की शुरुआत में लोकसभा ने वक्फ (संशोधन) विधेयक को 12 घंटे लंबी बहस के बाद मंजूरी दे दी थी जिसमें 288 सदस्यों ने इसके पक्ष में और 232 ने इसके विरोध में मतदान किया था। घंटों चली बहस में सत्तारूढ़ एनडीए ने इस कानून का बचाव अल्पसंख्यकों के लिए फायदेमंद बताते हुए किया, जबकि विपक्ष ने इसे “मुस्लिम विरोधी” बताया। विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए सभी संशोधनों को ध्वनिमत से खारिज करने के बाद विधेयक पारित हो गया।

पूरे कानून पर पूर्ण रोक लगाने से इनकार करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने अस्थायी रूप से उन प्रावधानों पर रोक लगा दी, जो जिला कलेक्टरों को वक्फ संपत्तियों पर व्यापक अधिकार देते थे और वक्फ बनाने के लिए पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की अनिवार्यता रखते थे। अदालत ने केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में नियुक्त किए जा सकने वाले गैर-मुस्लिमों की संख्या भी सीमित कर दी। यह आदेश नए कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली लगभग 65 याचिकाओं के जवाब में आया है। यह रोक तब तक जारी रहेगी जब तक याचिकाओं पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता।

बता दें CJI बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस सर्वसम्मत अंतरिम निर्णय में कहा कि हम पूरे वक्फ कानून पर रोक नहीं लगा रहे हैं। हम नए कानून कुछ प्रावधानों पर रोक लगा रहे। 

सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ संशोधन क़ानून 2025 की धाराओं पर लगाई रोक:

  1. धारा 3(10)(r) –  पहले नियम यह था कि पहले कोई भी व्यक्ति वक़्फ़ (दान) तभी कर सकता है जब वह कम से कम पांच साल से मुसलमान हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक राज्य सरकार यह साफ नहीं करती कि इसे कैसे लागू किया जाएगा, तब तक यह शर्त लागू नहीं होगी। 
  2. धारा 3C(2) – इस धारा के अनुसार किसी ज़मीन या संपत्ति को वक़्फ़ मानने से पहले कलेक्टर के रिपोर्ट जरुरी थी। यानी बिना सरकारी अधिकारी की पुष्टि के संपत्ति को वक़्फ़ नहीं माना जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट ने इस नियम पर भी फ़िलहाल रोक लगा दी है। 

       3. धारा 2(c) का उपबंध: जब तक नामित अधिकारी की रिपोर्ट दाख़िल नहीं होती, संपत्ति को वक़्फ़ संपत्ति न माना जाए। यह प्रावधान स्थगित।

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सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

क़ानून लागू होने से लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्तमान आदेश तक 

वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2025 संसद से 3 और 4 अप्रैल को दोनों सदनों में पारित हुआ और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद क़ानून बन गया। इसके तुरंत बाद आम आदमी पार्टी के अमानतुल्लाह खान, असदुद्दीन ओवैसी, मोहम्मद जावेद और एआईएमपीएलबी समेत कई नेताओं और संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। 17 अप्रैल को कोर्ट ने पहली सुनवाई की और केंद्र सरकार से जवाब मांगा। 25 अप्रैल को केंद्र ने कहा कि पूरे क़ानून पर रोक नहीं लग सकती। 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने नई याचिकाओं पर विचार करने से इनकार किया। फिर 5 मई को तत्कालीन सीजेआई ने सुनवाई अगली बेंच को सौंप दी। 15 मई को नए सीजेआई बी.आर. गवई ने अंतरिम राहत पर सुनवाई के लिए 20 मई की तारीख तय की। 20 से 22 मई तक दलीलें सुनी गईं और फैसला सुरक्षित रखा गया। आखिरकार 15 सितंबर को सीजेआई गवई की अगुवाई वाली बेंच ने अंतरिम आदेश सुनाया और क़ानून की कुछ धाराओं पर रोक लगा दी।

किसने समर्थन किया और किसने विरोध 

बता दें बीजेपी और सहयोगी दल ने कहा कि यह क़ानून जरुरी है ताकि वक़्फ़ बोर्ड का दुरुपयोग बंद हो और पारदर्शिता बढ़े। उनका कहना था कि ‘वक़्फ़ बाय यूज़र’ प्रावधान से आम लोगों की ज़मीनों पर जबरन दावा किया जाता था। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस, AIMIM, वामपंथी दलों और कई मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया। असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM) ने कहा कि यह क़ानून मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला है। विपक्ष का आरोप था कि सरकार का मकसद अल्पसंख्यक संस्थाओं को कमजोर करना है। 

अदालत की अहम टिप्पणियां 

शीर्ष अदालत ने कहा कहा, ‘केवल ऐसी रिपोर्टों के आधार पर राजस्व रिकार्ड और बोर्ड के रिकॉर्ड में बदलाव नहीं किया जाएगा। धारा-83 के तहत वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा मालिकाना हक के विवाद का अंतिम फैसला होने तक वक्फ बोर्ड को उनकी संपत्तियों से बेदखल नहीं किया जाएगा और न ही आधिकारिक रिकॉर्ड में प्रविष्टियों में कोई बदलाव किया जाएगा, बशर्ते हाई कोर्ट में अपील न की गई हो।’ कोर्ट ने कहा कि ऐसी कार्यवाही के दौरान उन संपत्तियों के संबंध में किसी तीसरे पक्ष के अधिकार सृजित नहीं किए जा सकते। 22 सदस्यीय केंद्रीय वक्फ परिषद में अधिकतम चार गैर-मुस्लिम सदस्य और 11 सदस्यीय राज्य वक्फ बोर्डों में अधिकतम तीन गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं। इसके अलावा अदालत ने वक्फ बोर्ड के सीईओ के मुद्दे पर विचार किया और धारा-23 पर रोक नहीं लगाई, जो सीईओ को पदेन सचिव के रूप में नियुक्त करने से संबंधित है। कहा कि जहां तक संभव हो, सीईओ की नियुक्ति मुस्लिम समुदाय से हो। पीठ ने कहा कि ये निर्देश अंतरिम प्रकृति के हैं और अंतिम चरण में संशोधित प्रविधानों की संवैधानिक वैधता पर बहस या निर्णय को प्रभावित नहीं करेंगे।

वक़्फ़ विवाद के बड़े मामले 

आंध्र प्रदेश और कर्नाटक – यहां सरकारी जमीनों को वक़्फ़ संपत्ति घोषित करने को लेकर विवाद हुआ था। 

उत्तर परदेस – लखनऊ और आयोध्या के कई इलाक़ों में वक़्फ़ संपत्तियों को लेकर स्थानीय लोगों और बोर्ड के बीच टकराव देखने को मिला। 

दिल्ली – दिल्ली में भी कई बार डीडीए और वक़्फ़ बोर्ड के बीच संपत्ति को लेकर खिंचतान हुई।

अदालत ने किन बातों पर रोक नहीं लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की पूरे अधिनियम पर रोक लगाने की मांग ठुकरा दी। गौरतलब है कि उसने दो अन्य बड़े बदलावों पर रोक नहीं लगाई।

– ‘उपयोग द्वारा वक़्फ़’ खतम करना – पहले यह नियम था कि यदि कोई ज़मीन लंबे समय तक मस्जिद, क़ब्रिस्तान या किसी धार्मिक काम में इस्तेमाल होती रही है तो उसे वक़्फ़ मान लिया जाता था भले ही वह रजिस्टर्ड न हो। सरकार ने तर्क दिया कि इस नियम का दुरुपयोग करके सरकारी जमीन पर क़ब्ज़ा किया जा रहा था। कोर्ट ने माना कि इसे हटाने पर रोक लगाने की जरुरत नहीं है। 

– सीमा कानून लागू होना – पहले वक़्फ़ संपत्तियों पर अगर कोई क़ब्ज़ा कर ले तो वक़्फ़ बोर्ड बिना समय सीमा के कभी भी मुक़दमा कर सकता था। अब नए क़ानून में कहा गया है कि मुकदमा भी एक तय समय सीमा (जैसे बाकी मामलों में होता है) के अंदर ही करना होगा। कोर्ट ने इस बदलाव पर भी रोक लगाने से इनकार कर दिया। 

पक्ष-विपक्ष नेताओं की प्रक्रिया 

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा  मेरे हिसाब से ऐसी नौबत आनी ही नहीं चाहिए थी। जब बिना चर्चा के कानून बनाए जाते हैं, तो आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ता है और राहत देनी पड़ती है। यह पहली बार नहीं है, पिछले 10–11 सालों में कई बार ऐसा हुआ। वहीं बीजेपी सांसद और वक्फ बिल की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के चेयरमैन जगदंबिका पाल- सुप्रीम कोर्ट ने आज साफ कर दिया है कि संसद से पास हुआ कानून पूरी तरह वैध है। यह बिल लोकसभा-राज्यसभा में 14 घंटे की चर्चा और JPC में 6 महीने की समीक्षा के बाद बना है।

वक़्फ़  (संशोधन) कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने 5 मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई की। इसमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका शामिल थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन और केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता पेश हुए थे।

क्या है वक़्फ़ क़ानून संसोशन 

शब्द “वक्फ” की उत्पत्ति अरबी शब्द “वक़ुफ़ा” से हुई है, जिसका अर्थ है रोकना, पकड़ना या बांधना। वक़्फ़ का अर्थ है कि किसी संपत्ति को अल्लाह के नाम पर दान कर देना ताकि उसका इस्तेमाल समाज और धर्म की भलाई के लिए हो सके। 

उदाहरण के लिए – कोई कोई मुस्लिम व्यक्ति ज़मीन या मकान वक़्फ़ कर देता है तो उसका मालिकाना हक अब व्यक्तिगत नहीं रहता। उसे बेचा या खरीदा नहीं जा सकता। उस संपत्ति से जो आय होती है उसका इस्तेमाल मस्जिद, मदरसा, गरीबों की मदद या धार्मिक कामों के लिए होना चाहिए। इन संपत्तियों का देख-रेख करने वाला होता है मुतवल्ली यानी वक़्फ़ प्रबंधक। 

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सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

वक़्फ़ संरचना, तीन मुख्य हिस्से 

  1. वाकिफ़ (संस्थापक) – वह व्यक्ति जो अपनी जमीन, पैसा या संपत्ति दान करके वक़्फ़ की शुरुआत करता है। 
  2. मौक़ूफ़ अलैह (लाभार्थी) – वे लोग या समूह जिन्हें वक़्फ़ से फ़ायदा मिलता है। जैसे गरीब, विद्यार्थी या धार्मिक संस्थान।
  3. मुतवल्ली (प्रबंधक) – वह व्यक्ति जो वक़्फ़ की संपत्ति और कामकाज की देखभाल करता है। 

वक़्फ़ कानून की उत्पत्ति 

भारत में वक़्फ़ कानून की शुरुआत उस समय से मानी जाती है जब मुस्लिम शासक और अमीर लोग धार्मिक और सामाजिक कामों के लिए ज़मीन या संपत्ति दान करते थे। ब्रिटिश राज के दौरान वक़्फ़ से जुड़े कई मामले अदालतों में पहुँचे और 1913 में “मुस्लिम वक़्फ़ वैधीकरण अधिनियम” लाकर पारिवारिक वक़्फ़ को क़ानूनी मान्यता दी गई। आज़ादी के बाद 1954 में और फिर 1955 में नया वक़्फ़ अधिनियम बनाया गया, जिसके तहत हर राज्य में वक़्फ़ बोर्ड बनाए गए ताकि वक़्फ़ संपत्तियों का सही प्रबंधन हो सके। बाद में 2013 में इसमें संशोधन करके वक़्फ़ बोर्ड को और मज़बूत किया गया और संपत्ति की ग़ैरक़ानूनी खरीद-फरोख़्त रोकने के लिए कड़े नियम जोड़े गए।

भारत में वक़्फ़ का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। यह मुस्लिम समाज की धार्मिक और सामाजिक ज़िंदगी से गहराई से जुड़ा हुआ है। लेकिन इसकी वजह से कई विवाद भी पैदा हुए हैं – खासकर संपत्ति और मालिकाना हक़ को लेकर।

सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा आदेश दिखाता है कि यह मुद्दा अब सिर्फ राजनीतिक या धार्मिक बहस का नहीं है, बल्कि संवैधानिक और कानूनी सवाल भी है। आने वाले समय में कोर्ट का अंतिम फैसला तय करेगा कि वक़्फ़ बोर्ड की भूमिका और अधिकार क्या होंगे।

 

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