- पिछले हफ्ते बड़े ही धूमधाम से नवरात्री का पर्व मनाया गया जगह जगह दुर्गा जी के पंडाल सजाए गये नौ दिन खूब रौनक रही मार्केट में अब आती हूं इन त्योहारों के द्वारा किस तरह से हमारे बुंदेलखंड में पार्यावरण की हत्या की गई है हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि डीजे नहीं बजाये जायेगें ताकि ध्वनि प्रदूषण से बचाव हो सके और देवी जी का विसर्जन नदियों में नहीं कराया जायेगा ताकि नदियों के पानी को प्रदूषण से बचाया जा सके लेकिन हमारे बांदा में ये दोनों आदेशों को नहीं माना गया गया है खूब धडल्ले से डीजे बजे और देसी जी की प्रतिमाओं का विसर्जन नदियों में ही कराया गया है मैं पूछना चाहती हूं कि आखिर ऐसा क्यों किया गया माना की आपकी आस्था है आप देवी जी को मानते हैं तो क्या आप प्रकृति की हत्या कर देगें जहां पर हमेशा बुंदेलखंड के बारे में सूखे की बात होती है पीने के पानी की अकाल पड़ जाती है वहीं पर बचे कुचे पानी को केमिकल भरी मूर्तियों को डाल कर पानी को जहरीला कर रहे हैं हमारे समझ में ये बातें क्यों नहीं आती हैं पर्यावरण प्रदूषण को बचाने की दृष्टि से इस साल हाईकोर्ट का आदेश था कि डीजे नहीं बजाए जाएंगे तो वहीं 2012 से चलता आ रहा है मूर्ती विसर्जन के लिए गड्ढा खोदकर और उसमें पानी भरकर विसर्जन किया जाएगा। डीजे बजने में कोई कमी नहीं हुई। मूर्ती विसर्जन गड्ढे में करने को कहा जरूर गया पर मूर्तियों के विसर्जन से निकला मलबा वापस नदी में गया। दूसरा मूर्तियों के क्षत-विक्षत अंग के ढांचे पानी में तैरने लगे। देखकर लगा कि लोग क्यों आडम्बर करते हैं। उसी मूर्ती की नौ दिन पूजा करते हैं, मन्नत मांगते हैं तो फिर उन्हीं मूर्ती की ये स्थिति करके डर नहीं लगता। या फिर ये सोचा जाए कि नौ दिन में उनकी मन्नत पूरी हो गई अब काम निकल गया तो ये मूर्ती भी बेकार हो गईं। बेकार वस्तुओं का निष्कासन इसी तरह कर दिया जाता है। अरे धर्म के ठेकेदारो इस तरह से मूर्ती और धर्म का अपमान कैसे सहन कर सकते हो। जब लास को ऐसे नहीं फेक सकते, उसको भी सुरक्षित ढंग से व्यवस्थित किया जाता है तो फिर लास से भी गए गुजरी हैं ये मूर्तियां, क्यो? कहां गई धार्मिकता? कहां गया पर्यावरण बचाने का जुनून? बांदा में डीएम हीरालाल ने पानी को संचित करने के लिए कुआ तालाब बचाओ अभियान चलाया पार्यावरण को बचाने के लिए पौधा रोपण कराया गया और खूब फोटो खिंचवाई गई लेकिन ये दोनों तरह की नौटंकी मूर्ती विसर्जन में देखने को मिली अगर पार्यावरण को बचाने की इतनी ही चिंता थी तो फिर इन मूर्तियों को केन नदी में क्यो बहाया गया वो इसको क्यो नहीं रोक पाते हैं जो धर्म के ठेकेदार हैं वो क्यो पार्यावण को लेकर संवेदनशील नहीं हैं कोर्ट का उलंघन करने वालों के ऊपर क्या कार्रवाई ई होगी