शुक्रवार दिनांक 15-06-2025 को ,असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने AI संचालित वर्चुअल न्यूज़ एंकर ‘अंकिता’ का उद्घाटन किया, जिन्होंने नवीनतम कैबिनेट मीटिंग पर एक विस्तृत रिपोर्ट दी जो राज्य के लिए पहली बार था।
लेखन – रचना
21वीं सदी में तकनीक ने हमारी जिंदगी के हर क्षेत्र को बदल कर रख दिया है, और अब यह परिवर्तन पत्रकारिता की दुनिया में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। समाचार पढ़ने वाले AI वर्चुअल एंकर, स्क्रिप्ट लिखने वाले रोबोट, और सोशल मीडिया पर ट्रेंड्स का विश्लेषण कर रिपोर्ट बनाने वाले एल्गोरिदम ये सब आज हकीकत बन चुके हैं। बीते दिनों शुक्रवार 25 मई को असम के सरकार ने भारत की पहली AI-संचालित वर्चुअल न्यूज़ एंकर ‘अंकिता’ को लॉन्च कर यह दिखा दिया है कि अब न्यूज़ रूम में भी इंसानों की जगह मशीनें लेने लगी हैं। भारत में मीडिया और तकनीक का मेल तेजी से बढ़ता जा रहा है। दरसल असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने हाल ही में एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित वर्चुअल न्यूज़ एंकर ‘अंकिता’ का उद्घाटन किया। यह पहली बार है जब असम में किसी AI एंकर ने कैबिनेट बैठक की पूरी रिपोर्ट आम जनता तक पहुँचाई। लेकिन इस सवाल का जवाब अभी भी गूंजता है क्या अब इंसानी पत्रकारों की क़ीमत कम हो जाएगी ? आइए इस लेख में समझते हैं कि AI के आने से कितने फ़ायदे हैं और कितने नुक़सान ? उसके लिए सबसे पहले जानते है कि कौन है अंकिता ?
कौन है ‘अंकिता’ और क्या है ए आइ (AI) ?
ए आइ का मतलब है आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस जिसे हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमता भी कहा जाता है। इसका काम मुख्यतः यह एक ऐसा मशीनों का मानव है जो एक मनुष्य जैसे सोचने, सिखाने और समझने तथा समस्या का समाधान करने की क्षमता देता है।
ठीक वैसे ही अंकिता एक वर्चुअल AI-संचालित समाचार प्रस्तुतकर्ता है, जो असमिया भाषा में बिना रुके बोलती है और उसका डिजिटल अवतार किसी इंसानी एंकर जैसा दिखाई देता है। उसका स्वर, अंदाज और हावभाव इतने स्वाभाविक हैं कि वह किसी वास्तविक एंकर जैसी प्रतीत होती है। असम के मुख्यमंत्री द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किए गए वीडियो में अंकिता को राज्य की कैबिनेट बैठक के प्रमुख निर्णयों को स्पष्ट और संयमित रूप से प्रस्तुत करते हुए देखा गया। उसने डिब्रूगढ़ हवाई अड्डे का नाम प्रसिद्ध गायक भूपेन हजारिका के नाम पर बदलने तथा चाय बागान श्रमिकों के लिए समयबद्ध अनुदान जैसी घोषणाएँ प्रस्तुत कीं।सूत्रों के अनुसार, इसे असम सरकार ने लोक सूचना विभाग और एक प्राइवेट टेक स्टार्टअप के सहयोग से विकसित किया है।
ए आइ का इतिहास
भारत में AI एंकर कोई नई बात नहीं है। इससे पहले ओडिशा टीवी ने 2023 में “लीसा” नामक AI एंकर लॉन्च किया था।इंडिया टुडे ग्रुप ने भी “सना” नाम की एआई रिपोर्टर पेश की थी, जो इंटरव्यू भी कर सकती है।
दुनिया में चीन का सरकारी चैनल Xinhua (सिन्हुवा) 2018 में पहला AI एंकर लेकर आया था। दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देश भी इस तकनीक में काफी आगे हैं।अंकिता’ इस कदम में नया लेकिन खास कदम है क्योंकि यह राज्य सरकार की ओर से पहिली बार किसी कैबिनेट बैठक के रिपोर्टिंग के लिए ए आइ का इस्तेमाल किया गया है।
AI न्यूज़ एंकर से क्या फायदा हो सकता है ?
अंकिता जैसे AI एंकर थकते नहीं हैं। ये बिना रुके दिन-रात काम कर सकते हैं और भविष्य में ये AI कई भाषाओं में काम कर सकते हैं – जैसे हिंदी, अंग्रेज़ी, बंगाली, तमिल आदि। इससे हर राज्य को अपनी भाषा में खबरें मिलेंगी। इतना ही नहीं, इंसान को सैलरी, छुट्टियाँ, स्टूडियो की ज़रूरत होती है, लेकिन AI को बस एक सिस्टम चाहिए। इससे न्यूज़ चैनल्स को काम खर्च में चलाया जा सकता है।अगर ठीक से प्रोग्राम किया जाए, तो AI एंकर सही-सही जानकारी दे सकते हैं बिना किसी ग़लत उच्चारण के।
AI न्यूज़ एंकर से क्या नुकसान हो सकता है ?
अगर न्यूज़ चैनल AI को एंकर बना लेंगे, तो असली इंसानों की ज़रूरत कम होगी। इससे बहुत से पत्रकारों की नौकरी और जीवन पर बेहद ही गहरा प्रभाव पड़ सकता है। AI सिर्फ शब्द बोलता है, उसे इंसानों की तरह दर्द, खुशी या ग़ुस्सा महसूस नहीं होता। गंभीर खबरें, जैसे किसी हादसे की रिपोर्ट, वो उस भाव से नहीं पढ़ सकता जैसे कोई इंसान पढ़ेगा। AI को जो स्क्रिप्ट दी जाती है, वही पढ़ता है। पत्रकारिता का असली महत्व है सवाल पूछना लेकिन AI एंकर सवाल नहीं पूछ सकता, न ही सोच सकता है कि कौन सी खबर ज्यादा ज़रूरी है। जबकि एक असली पत्रकार हालात को समझ कर रिपोर्ट करता है और वर्तमान स्थिति में पत्रकारों का सवाल पूछना ज़्यादा महत्वपूर्ण है। शायद इसी प्रकार की सभी मशीनों नई तकनीकों के कारण से लोगों का काम छिन जाता है और बेरोज़गारी की संख्या तेज़ी से बढ़ती भी है।
ए आइ एक नई सुबह है या अस्त होता सूरज
AI एंकर ‘अंकिता’ न सिर्फ तकनीकी विकास का प्रतीक है, बल्कि वह असम की स्थानीय भाषा और संस्कृति को भी मंच प्रदान करती है। यह पहल यह दिखाती है कि डिजिटल इंडिया का सपना केवल अंग्रेज़ी या हिंदी तक सीमित नहीं है यह देश की हर क्षेत्रीय भाषा और पहचान को साथ लेकर आगे बढ़ सकता है। लेकिन इस तरह की तकनीकें देश के तमाम पत्रकारों से उनका अधिकार छिनना है, और देश के लिए बेरोज़गारी का दरवाज़ा खटखटाना है। कहीं ना कहीं देश में चल रहे तमाम मुद्दों में पत्रकारों द्वारा सवाल ना पूछे जाने को भी साज़िश के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि ए आइ एंकर सवाल पूछ ही नहीं सकती, वो सिर्फ़ इशारों पर चलने वाला मात्र एक मशीन ही है।इस ए आइ एंकर को इस्तेमाल करने का एक कारण यह भी हो सकता है कि ये 24 घंटे बिना थके खबरें पढ़ सकते हैं, और उन्हें किसी वेतन, अवकाश या प्रशिक्षण की ज़रूरत नहीं होती। इस कारण कुछ मीडिया हाउस अपने खर्चे कम करने के लिए AI एंकर को तवज्जों दे रहे हैं।
इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि मीडिया हाउस के लिए यह तकनीक आने से काफ़ी मददगार साबित हो सकती है। पत्रकारों के लिए एक चेतावनी भी है कि तकनीकी बदलावों के साथ – साथ चलना अब अनिवार्य हो गया है। ज़रूरत है कि हम इस तकनीक को कैसे और किस हद तक इस्तेमाल में ला रहे हैं। यह देखा जाना बाकी है कि AI और मानव पत्रकारिता साथ-साथ कैसे काम करेंगी, लेकिन एक बात साफ है और बड़ा सवाल भी कि पत्रकारिता का चेहरा बदल रहा है जो अच्छी, बुरी दोनों तरह से साबित हो रही है तो समझा जाना मुश्किल है कि ये पत्रकारिता की नई सुबह है या अस्त होता सूरज ?
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