जहां सोच है, वहीं शौचालय। अभिनेत्री विद्या बालन की यह बात शायद ही कोई भूले लेकिन ललितपुर जिले का समोगर गांव आज भी खुले में शौच कर रहा है, जिससे छेड़खानी, गाली गलौज, मारपीट जैसी तरह-तरह की दिक्क्तों का सामना करना पड़ रहा है।
जिला ललितपुर, ब्लॉक महरौनी, गांव समोगर में लोग शौचालय के आभाव में खेतों में शौच के लिए जा रहे हैं। उनका आरोप है की घर में शौचालय नहीं है तो खेतों में जाना पड़ता है लेकिन जिनकी ज़मीनें हैं वो उनसे लड़ते हैं, उन्हें दुत्कारते हैं। पर मज़बूरी वश लोगों की सुनना पड़ता है। खबर लहरिया ने ऐसी कई स्टोरियां अपने चैनल पर चलाई हैं जो स्वच्छ भारत मिशन की पोल खोल रहे हैं।
जमीनी हकीकत है कुछ और…..
मर्दों के लिए तो पूरी दुनिया हीं शौचालय है, मूत्रालय है ! जब लगा – जहाँ लगा कर लिए। दिक्कत तो उन लड़कियों और औरतो के लिए हैं जिन्हे सूरज डूबने का इंतज़ार करना पड़ता है। महज़ शौचालय जाना एक लड़की के लिए कितना घातक हो सकता है, यह तब सामने आया जब यह सुनने और पढ़ने में आता है कि रात को खेत गईं लड़की के साथ छेड़छाड़, और हत्या कर दी गई है। लेकिन भारत के गांवों में शौच के लिए खेत जाना आम है। शौच आने पर रात के अंधेरे का इंतजार करना और सुबह की पहली किरण के फूटने से पहले अपनी नित्य क्रिया कर्म से निवृत होना उन महिलाओं लड़कियों के लिए कष्टकारक होता ।
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‘बाहर शौच जाने में खराब लगता है’
स्थानीय निवासी गीता का कहना है कि सोचिये आप शौच के लिए शाम या सुबह में खेत में जाएं और खेत का मालिक या कोई अन्य पुरुष टॉर्च मारे तो आपको कैसा लगेगा? जी हाँ ऐसी ही स्थिति अक्सर गाँवो में देखने या महसूस करने को मिल जाती हैं। गीता ने आगे बताया कि उनको यहां पर रहते करीबन 20 साल हो गए हैं लेकिन शौचालय नहीं मिला है। लोग शौच के लिए बाहर जा रहे हैं। अगर किसी बुजुर्ग या बच्चों को रात में जाना है या पेट ख़राब हो तो घर में ही करना पड़ता है। फिर सुबह उसे उठाकर खेतों में फेंक कर आते हैं।
लड़किओं और महिलाओं की इस दिक़्क़त को समझने वाले कम हैं
हद तो बरसात के दिनों में होती है जब पूरे खेत पानी से भरे होते हैं , बचता है गावों की पगडण्डी और रास्ते। वहां भी भीड़ और पहले से गन्दगी। ऊपर से लोग कभी -कभी पानी का बोतल या पानी से भरा लोटा नहीं ले जाते क्यों कि लोग हँसते हैं ताने मारते हैं और मजाक उड़ाते हैं। कौन चाहता है कि उस का मज़ाक उड़े? बदनामी हो ! इस लिए बिना पानी लिए हम शौच को जाते हैं और घर आ कर सफाई करते हैं। ऐसी स्थिति अकसर आती है लेकिन क्या किया जाए करना ही पड़ता है।
सरकार कहती है घर-घर शौचालय बनवाओ स्वस्छता अपनाओ पर हम लोग तो ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जैसे नर्क में रह रहे हो। मेहनत मजदूरी करके पेट पालने वाले लोग शौचालय कहाँ से बनवायेगे। हर गांव में शौचालय के लिए बजट आता है लेकिन हमारे गांव के प्रधान अजय से कई बार कहा गया लेकिन उनके पास बजट ही नहीं है। ऐसे में क्या किया जाए दूसरे के खेतों में जाना और गालियां सुनना मज़बूरी बन गई है।
खेत में जाती हूं टॉयलेट, शर्म लगती है
गांव की महिलाओं ने नाम न देने की शर्त पर बताया कि भोर में चार बजे उठकर खेतों में न जाये तो कहीं जगह ही नहीं मिलती। इसलिए वह सुबह जल्दी उठकर अँधेरे में ही खेत से शौच करके वापस आ जाती हैं। गांव में अक्सर देखा जाता है की महिलाएं शौच जा रही हैं तो अगर किसी पुरुष का सामना हो जाता है तो डिब्बे को साड़ी से छुपा लेती हैं। ताकि उन्हें पता न चले की वह शौच के लिए गयी हुई थी। लेकिन यह बात पुरूषों पर लागू नहीं होती। वह दिन निकलने के बाद भी डिब्बा लिए खेतों के तरफ जाते दिख जायेगे। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके शौचालय तो बनें हैं लेकिन इस्तेमाल नहीं होते पूछने पर बताया कि सुबह-सुबह उठकर जाने से सैर भी हो जाती है। इसलिए भी खेतो में शौच के लिए जाते हैं। पर इसे देखने-समझने वाले और घर के ख़र्चों से जुड़े फ़ैसले लेने वाले पुरुष अब भी शौचालय को अहमियत नहीं देते हैं।
सड़क पर शौच के लिए बैठना, शर्मनाक
रात में सड़क के किनारे या खेतों की आड़ पर एक लाइन से शौच के लिए बैठीं महिलाएं घूंघट ओढ़कर बैठी रहती हैं, खासकर कोई बड़ी गाड़ी की लाइट उनपर पड़ती है तो या तो वो उठकर खड़ी हो जाती हैं या मुंह ढ़ंककर बैठी ही रहती हैं। ये आज के बदलते समाज के लिए कितने शर्म की बात है। अगर हम बेटियों की बात करें तो आए दिन शौच के लिए खेत में गईं बच्चियों के साथ दुष्कर्म और उसके बाद उनकी हत्या कर दी जाती है। आए दिन होने वाली ये घटनाएं घर में शौचालय नहीं होने की वजह से सुनने को मिलती हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=JPCwpvAvBCo&t=3s
प्रत्याशियों के लुभावने वादे
भानकुवर का कहना है कि हर बार की तरह इस बार भी प्रत्याशियों ने बढ़चढ़कर लुभावने वादे किये हैं। शौचालय, आवास और सड़क सब बनवाया जाएगा पर जीत गए हैं अब देखिये गांव का कितना विकास करते हैं। सरकार कह रही है की कोरोना वायरस के समय में घर से बाहर न निकलो पर कैसे न निकलें? कहना आसान है लेकिन लोगों की स्थिति इस तरह है की घर में खाने के लिए दाना नहीं है शौचालय एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है तो घर से बाहर कैसे न निकलें। हमारा गांव ऐसा है जहां पर कोई सुविधाएं नहीं है। क्या हम लोगों के लिए सरकार की तरफ से योजनाएं नहीं आ रही हैं? आती हैं लेकिन सब बिचौलिए ही गबन कर लेते हैं। सरकार शौचालय बनवाने पर इतना जोर दे रही है लेकिन इस गांव में योजनाएं ही नहीं पहुंची।
बजट आने पर बनेगा शौचालय-रोजगार सेवक
सुंदर लाल कुशवाहा रोजगार सेवक का कहना है कि हमारे गांव में ऐसे अभी दो ढाई सौ परिवार हैं जिनको शौचालय की जरूरत है। बाहर शौच जाने के लिए बहुत दिक्कत होती है साथ ही बिमारियों को बुलावा भी देती है। कोरोना काल में वैसे भी लोगों को घर से बाहर जाने के लिए मना किया जा रहा है लेकिन शौचालय के लिए कैसे मना करें। जब सरकार ही कोई व्यवस्था नहीं कर रही है। पैसा आते ही शौचालय सबके बनवाये जाएंगे।
आलोक कुमार खंड विकास अधिकारी महरौनी ने बताया कि अभी तक मेरे संज्ञान में ऐसा मामला नहीं आया है। सरकार की यही मंशा है कि हर गांव में हर घर में शौचालय होना चाहिए। लेकिन अगर इस गांव में लोगों का शौचालय नहीं बना है तो इसकी जाँच की जायेगी और बजट आते ही शौचालय बनवाया जाएगा।
समय के साथ बदल रही हैं परिस्थियाँ
परिस्थितियां बदल रही हैं, आज बेटियां उस घर में शादी करने से मना कर रही हैं जिस घर में शौचालय नहीं हैं। बहुएं ससुराल छोड़कर इस जिद पर मायके चली जा रही हैं कि जबतक ससुराल में शौचालय नहीं बनेगा, वापस नहीं आऊंगी। इससे लगता है कि लोगों के बीच स्वच्छता और शौचालय को लेकर जागरूकता आई है, लोग शौचालय की जरूरत को धीरे-धीरे समझ रहे हैं। लेकिन अभी लोगों की मानसिकता में और बदलाव लाने की जरूरत है। तभी बाहर शौच से मुक्ति मिलेगी।
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