गांव में देसी,दूध-दही और स्वच्छ ताज़ी हवा के साथ साथ कई चीजें आपको प्राकृत तौर पर मिल जायेगी। गांव की रोज़मर्रा की जिंदगी, कच्चे घर की दीवारों पर बने चित्र, चूल्हे का खाना, खेतों से घर तक महिलाओं का काम,गप्पे लड़ाना, जानवर चराना,बच्चों का खेल और स्कूल जाने का तरीका इत्यादि सभी कार्य आज भी गांव को शहरों से अलग करते हैं। लोग शहर की तरफ दौड़ते ज़रूर है पर दिल में हमेशा याद गांव की ही रहती है। गांव के लोग मिलनसार होते हैं और सब के सुख-दुःख में एक दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। शहरों में तो पड़ोसी भी कभी-कभी अनजान हो जाते हैं। इतना ही नहीं गाँव में शुद्ध हवा, दुध,मठ्ठा और चूल्हे का देसी खाना मिलता हैं। कोई प्रदूषण नहीं है।
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गांव से हमारी बचपन की यादें जुड़ी होती है। गांव के खेत-खलिहान,वृक्ष ,जानवरों से एक अलग ही लगाव होता हैं। गांव में आप एक-दूसरे को अच्छे से जानते हैं। गांव में आपके कपड़े और ज़मीन जायदाद ही आपकी हैसियत तय नहीं करती। गांव का रहन-सहन गांव का हाव-भाव, बोल-चाल और आपसी तालमेल भी बहुत ही सुन्दर होता है।
मुझे याद है, बचपन में गांव के अंदर तक जाने के लिए मुझे तीन किलोमीटर चलकर जाना पड़ता था। सड़क कच्ची हुआ करती थी तो बहुत कम ही बैल-गाड़ी या और कोई यातायात जाता था। सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे खेत देखने को मिलते थे।
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