लंदन में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सोमवार को यूनाइटेड ब्रेवरीज के अध्यक्ष विजय माल्या के भारत में प्रत्यर्पण का आदेश दिया है। भारत की जांच एजेंसी, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मामले में यह फैसला एक बड़ी सफलता है, जिन्होंने माल्या पर 9,000 करोड़ तक के ऋण में धोखा देने का आरोप लगाया है।
माल्या के पास फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए अब 14 दिन का समय है और वह इस मामले को ब्रिटेन के उच्च न्यायालयों में भी जा सकते हैं।
यदि उनके प्रत्यर्पण को चुनौती देने वाली याचिका को ठुकरा दिया जाता है, तो उन्हें बाद के 28 दिनों में प्रत्यर्पित कर दिया जाएगा।
मार्च 2016 में लंदन भाग जाने के बाद से जांच एजेंसियां और बैंक माल्या को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
इस पर एक सीबीआई प्रवक्ता का कहना है कि “हम उम्मीद करते हैं कि वह जल्द ही उसे वापस लाएंगे और मामले को समाप्त करेंगे। सीबीआई की अपनी अंतर्निहित ताकत थी। हमने इस मामले पर कड़ी मेहनत की, हम कानून और तथ्यों पर मजबूत थे और हम प्रत्यर्पण प्रक्रिया का पालन करते हुए आश्वस्त भी थे”।
मुख्य मजिस्ट्रेट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि “इस आचरण से खुद के लिए झूठे अभियोग बनाने, धोखाधड़ी और धन शोधन की साजिश रचने के अपराध बनेंगे। यह आचरण भारत में 12 महीने से अधिक के कारावास से दंडनीय है”।
मामले को अब ब्रिटिश गृह सचिव (मंत्री) के पास भेजा जाएगा, जो तय करेंगे कि प्रत्यर्पण का आदेश दिया जाए या नहीं। सुनवाई के लिए यूके में सीबीआई और ईडी के अधिकारियों की एक टीम मौजूद थी।
यह मामला पहली बार तब सामने आया जब भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआ) की एक शिकायत के बाद सीबीआई ने अगस्त 2016 में माल्या के खिलाफ मामला दर्ज किया था।