ख़बर लहरिया ने अप्रैल 16 और 17 को गोवा में एक ज़मीन से जुडी कार्यशाला में भाग लिया।
पेश है एक रिपोर्ट।
ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैंड की जानी-मानी विश्वविद्यालय की तरफ से एक कार्यशाला गोवा राज्य के डोना पाउला के अंतर-राष्ट्रीय सेंटर में आयोजित गई। कार्यशाला का मुद्दा था ज़मीन से जुड़ी ज़िंदगियां। कार्यशाला में आने वाले लोग भारत के अलग अलग कोने से 22 लोग आये थे | जिसमे जमीन को ले कर अलग अलग तरह से लोग काम कर रहे हैं|
इनमे से एक हम भी थे।
कार्यशाला कुछ प्रश्नों से जूझ रही थी।
भूमि क्या है ?
क्या हमे भूमि के बारे में बहुवचन में सोचना चाहिए ?
कार्यशाला में भाग लेने वालों के लिए भूमि का क्या मतलब है ?
भूमि को फिल्म ,न्यूज और आर्ट कैसे दर्शाया जाता है ?
भूमि को को इस बहुआयामी रूप में देखने का क्या फायदे हैं?
इस कार्यशाला का में मकसद यह भी है की भूमि की चर्चा दूर दूर तक फैलाव हो सके |
खास कर दलित आदिवासियों के साथ किस किस तरह से भेदभाव होते है इस कार्यशाला में सब से अच्छी बात यह थी की बात तो हम सब जमीन से जुडी जिंदिगियों के बारे में क्र रहे थे पर वह केवल पढ़ कर या लिख कर ही नहीं दिखा रहे थे |
समुद्र की जमीन को लेकर किस तरह से अग्रेजो ने मछुवारों के साथ टैक्स की बात किया था जब की समुद्री जमीन में किसी का हक नहीं बनता था फिर भी लोग मछुवारो को जमीन सेहतने के लिए बोलते थे यह सब बाते लिखित में दिखाई गए थे | ऐसी तरह से कुछ लोगों ने कार्टून के माध्यम से दिखाया की किस तरह से लोग प्राकतिक चीजों को भूल रहे हैं पेड़ों को काट काट पर्यवरण का नुकसान करते हैं | कहानी के माध्यम से बताया गया की बच्चो को कहानियों के माध्यम से किस तरह से आकर्षित कर सकते हैं क्यों की अब हम बड़े भी बच्चों को ें सब बटन के बारे में नहीं बताते है जिससे पुराणी चीजे सब गम होती जा रही हैं |
झारखंड से आई जसिन्ता जो खुद में आदिवासी लड़की है वह कविताओं के माध्यम से दर्शाया था की आदिवासियों को किस किस तरह से जल जंगल जमीन से रोका जाता है इसके आलावा रिपोर्टिंग के माध्यम से आदिवासियों को जागरूक करने का काम करती है | शामली से ए चल चित्र संगठन ने वीडियों के माध्यम से लोगो के साथ हो रहे विवाद को दिखाया किस किस तरह से दलित आदिवासी परेशान किये जाते हैं |
मिजोरम से आये लोगों गीत और दृश्य के माध्यम से खोती हुई रीती रिवाज हाँथ के बने लकड़ी के सामान के बारे में सुनाया पहले क्या था आज क्या है |
मुंबई से आये हुए लोगों ने कपड़े में की जा र ही सिलाई को खोते हुए देख क्र उस पर चल चित्र तैयार किया |
यह कार्यशाला बहुत ही काम की है और हम सोचते थे की केवल लिख क्र या वीडियों के मध्यमा से ही काम कर सकते हैं पर कार्यशाला में अलग अलग प्रस्तुतिकरण देख कर बहुत ही अचछा लगा की हम गम होती चीजों को किस किस तरह से लोगो को दिखा क्र बता सकते
ओडिशा राज से आई महिला पत्रकार ने बताया कि हम किस तरह से अपनी जिंदगी जीते हैं ने औऱ अपनी बातों को वहां पर रखा कि किस तरह आदिवासी परिवारों के साथ वहां हिंसा और अत्याचार होते हैं किस तरह से अपना जीवन वहां जीते हैं पर अभी आदिवासी परिवार की आवाज को ऊपर तक पहुंचाने की कोशिश करती हूं लेकिन मेरे मीडिया साथी मेरी आवाज को ऊपर तक नहीं ले जाने देते हैं जबकि वहीं पर पुरुष पत्रकार अपनी खबरों को आगे बढ़ाते हैं और मेरी खबरों को दबा दिया जाता है थे आज भी वही है हमलोगों की सुनवाई कहीं भी नहीं होती है कहने को तो जल जंगल जमीन हमारा है लेकिन अधिकार जहां अधिकार की बात जाती है वहां पर हमारी सुनवाई नहीं होती है आदिवासी जैसे पहले थे आज भी आदिवासी उसी तरह की जिंदगी जीने को मजबूर है मैंने जमीनी स्तर पर आदिवासियों की आवाज को ऊपर पहुंचाने की कोशिश की है
हमने जमीनी स्तर पर प्रतुतीकरण किया जिसमें लिंग, जाति, धर्म के संदर्भ से बुंदेलखंड की ज़मीन सच्चाई को पेश किया। अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताया कि किस तरह से उन लोगों ने अपनी खुद की जमीन खरीदी है और उस जमीन पर किस तरह से अपना हक जमा पाए हैं। हमने अपनी निजी कहानियों और महिला किसानॉन के ज़मीन से जुड़ाव पर चर्चा की।
मीरा जाटव
श्यामकली देवी