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देश में जातिगत आय असमानताएं

साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

भारत के सवर्ण जाति के परिवारों ने राष्ट्रीय औसत वार्षिक घरेलू आय की तुलना में लगभग 47 फीसदी अधिक कमाई की है। यह जानकारी ‘वर्ल्ड इनक्वालटी डेटाबेस’ द्वारा हाल ही में सामने आई है। 2012 के दशक में सबसे धनी 1% लोगों ने अपने धन में लगभग 16 % अंक की वृद्धि कर 29.4 % किया है, जैसा कि नवंबर 2018 में प्रकाशित ‘वेल्थ इनइक्वलिटी, क्लास एंड कास्ट इन इंडिया, 1961-2012’ नाम की रिपोर्ट में कहा गया है।

 

देश में जातियों में और जातियों के बीच आय और धन में असमानता, सवर्ण जातियों में गरीब वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में 10 % कोटा के लिए भारतीय जनता पार्टी सरकार के नए बिल के प्रकाश में महत्वपूर्ण हैं, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है।

जातियों के बीच अंतर

अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) 113,222 रुपये की औसतन राष्ट्रीय घरेलू आय की तुलना में बहुत कम कमाते हैं।  एससी और एसटी परिवारों की आय 21 फीसदी और 34 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत से कम है। ओबीसी परिवार बेहतर कमाते हैं, लेकिन फिर भी वार्षिक भारतीय औसत से 8 फीसदी या 9,123 रुपये कम कमाते हैं। ‘वेल्थ इनइक्वलिटी, क्लास एंड कास्ट इन इंडिया, 1961-2012’ रिपोर्ट के अनुसार सवर्ण जाति समूहों में, ब्राह्मण राष्ट्रीय औसत से 48 फीसदी ऊपर कमाते हैं और गैर-ब्राह्मण अगड़ी जातियां 45 फीसदी ज्यादा कमाती हैं। 9 जनवरी, 2019 को, भारतीय संसद ने नागरिकों की सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए संविधान (124 वां संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी। ये ऐसे परिवार हैं, जो एससी, एसटी या ओबीसी श्रेणियों से संबंधित नहीं हैं, और सालाना 800,000 रुपये से कम कमाते हैं। उनके पास 5 हेक्टेयर से कम कृषि भूमि और 1,000 वर्ग फुट से छोटे आवासीय संपत्तियां हैं।

जातियों के भीतर, सबसे ज्यादा अंतर अगड़ी जातियों में हैं और सबसे कम धन अंतर एससी के बीच पाए जाते हैं। संसाधनों के आवंटन से  अवसरों तक के लिए, सामाजिक पूंजी के लिए वितरण पैटर्न तिरछी सामाजिक संरचना से मेल खाता है। वे रैंकिंग में अधिक हैं या बहुमत से इनकार करने की कीमत पर बेहतर आवंटन प्राप्त करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है, जिसमें टॉप 10 % कुल धन का 55 % नियंत्रित करता है। 1980 में यह आंकड़े 31 % थे। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 2 जनवरी, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।  राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 ( एनएफएचएस-4) के अनुसार अनुसूचित जाति की जनसंख्या के 26.6 % ओबीसी की 18.3 % अन्य जातियों की 9.7 % और जिनकी जाति अज्ञात है, उनकी 25.3 % की तुलना में 45.9 % अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या सबसे कम संपत्ति वर्ग में थी।

 

मुसलमानों की कम आय, गैरहिंदूगैरमुस्लिम समूह की अधिक

 

मुसलमानों का एससी, एसटी और ओबीसी आबादी की तुलना में बेहतर प्रदर्शन है लेकिन राष्ट्रीय औसत से 7 % कम वार्षिक आय की सूचना है। गैर-हिंदू, गैर-मुस्लिम समूह और जो लोग एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों के अंतर्गत नहीं आते देश में सबसे अमीर समूह हैं, हालांकि वे देश की आबादी का केवल 1.5 % हिस्सा बनाते हैं। उन्होंने भारत में वार्षिक घरेलू आय औसत से दोगुना, 242,708 रुपये की वार्षिक आय अर्जित की।

जनसंख्या की तुलना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पास धन कम

 

एससी भारत की आबादी का लगभग 18-20 % है, लेकिन 2012 में उनके पास धन का स्वामित्व उनकी आबादी की हिस्सेदारी से 11 % अंक कम था। एसटी के मामले में, यह समुदाय की आबादी की हिस्सेदारी 9 % से लगभग 2 % कम था, ओबीसी समूह के पास 2002 में कुल संपत्ति का 32 फीसदी हिस्सा था जिसमें 2012 में केवल मामूली वृद्धि हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या हिस्सेदारी (-7.8 % से -10.2 %) का अंतर बिगड़ गया। इसका कारण उनकी जनसंख्या में खासा वृद्धि होना है।

सवर्ण जाति समूह की हिस्सेदारी ने कुल धन में उनके हिस्से में 39 % से 41 % की वृद्धि दिखाई है और 4 प्रतिशत अंकों से अंतर को 18 % तक सुधार किया है।

जातियों के भीतर असमानताएं

अगड़ी जातियों ने 2012 के अंत में दशक के दौरान तीन जाति समूहों के टॉप 5 % के बीच सबसे अधिक (47.6%) संपत्ति में वृद्धि दिखाई। 2012 तक, समूह का टॉप 10 % अगड़ी जाति धन का 60 % का स्वामित्व कर रहे थे।

 

उसी दशक में, एसटीएस के बीच, टॉप 1 फीसदी ने 4.4 प्रतिशत अंक के साथ 19.5 फीसदी के पास संपत्ति को बढ़ाया जबकि एससी के टॉप 1 फीसदी ने 1991 और 2012 के बीच अपनी संपत्ति को 2.5 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 14.4 फीसदी कर दिया।

 

ओबीसी और एसटी के बीच भी, शीर्ष 10 फीसदी ने अधिकांश धन अर्जित किया था। 2012 में दोनों समूहों के टॉप 10 फीसदी के पास लगभग 52 फीसदी संपत्ति थी और टॉप 10 फीसदी एससी की हिस्सेदारी 2012 तक दो दशकों में तीन प्रतिशत अंक बढ़कर 46.7 फीसदी हो गई। जाति समूहों के भीतर असमानता का सटीक परिमाण देश भर में भिन्न हो सकता ग्रामीण बिहार में जाति समूहों के बीच असमानता पर विश्व बैंक के एक अध्ययन से पता चलता है कि उप-जातियों के बीच असमानता भारत में आर्थिक असमानता का एक प्रमुख चालक हो सकती है, जैसा लाइव मिंट ने 2018 की रिपोर्ट में बताया है। मासिक उपभोग व्यय और शैक्षिक प्राप्ति में अनुसूचित जातियों के बीच, चामर और दुशाध की तुलना में मुशहरों की स्थिति बद्तर हैं। ओबीसी के बीच, कोइरी जैसी उप-जातियां दलित उप-जातियों की तुलना में बुरा प्रदर्शन करती हैं, जैसा लाइवमिंट ने रिपोर्ट में बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निचले 50 % आबादी ने सभी जाति श्रेणियों में 2-4 % अंक खो दिए हैं। वही बड़ी गिरावट एसटी, ओबीसी और एससी और मुसलमानों के हिस्से में आई है।

साभार: इंडियास्पेंड