17 दिनों के दौरान मज़दूरों को बचाने के लिए कई तरह के तरीके अपनाये गए लेकिन यह बचाव अभियान अंत में रैट-होल माइनर्स जिसे “rat-hole mining” भी कहा जाता है, उनकी वजह से पूरा हुआ।
#UttarakhandTunnelRescue: उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में पिछले 17 दिनों और लगभग 400 घंटों तक फंसे सभी 41 मज़दूरों को 28 नवंबर की शाम सुरक्षित रूप से बाहर निकाल लिया गया है। मज़दूरों को बचाने में रैट-होल माइनर्स ने बड़ी भूमिका निभाई। टनल से सुरक्षित बाहर निकलने पर उनके चेहरों पर नए जीवन को पाने वाली मुस्कान थी। अपने परिवार के सदस्यों को देख सबके दिल खुश दिखे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन 17 दिनों के दौरान मज़दूरों को बचाने के लिए कई तरह के तरीके अपनाये गए लेकिन यह बचाव अभियान अंत में रैट-होल माइनर्स जिसे “rat-hole mining” भी कहा जाता है, उनकी वजह से पूरा हुआ। प्रक्रिया में खतरनाक प्रभावों को देखते हुए इसे गैर-कानूनी करार दे दिया गया था।
हम “रैट-होल माइनिंग” को थोड़ा और विस्तार से समझ सकते हैं और जान सकते हैं कि इस प्रक्रिया ने किस तरह 41 मज़दूरों की जान बचाई।
विजयी भव:!
Watch as 41 lives are rescued to safety in Uttarkashi because in India, no one is left behind.#FirstResponders#NewIndia#UttarkashiRescue pic.twitter.com/YfUP5TPf3Q
— MyGovIndia (@mygovindia) November 28, 2023
क्या है “रैट-होल माइनिंग”? कैसे हुआ काम?
मौजूदा जानकारी के अनुसार,रैट-होल माइनिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बहुत छोटी सुरंगो से कोयला निकाला जाता है। हालांकि, यह पद्धति काफी विवादित और गैर-कानूनी भी है लेकिन कुछ राज्यों में यह प्रथा आम भी है।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह प्रथा पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय में प्रचलित थी। खनिक गड्ढे खोदकर चार फीट चौड़ाई वाले उन संकरे गड्ढों में उतरते थे जो, जहां केवल एक व्यक्ति की जगह होती है। इसके बाद वे बांस की सीढ़ियों और रस्सियों का इस्तेमाल करके नीचे उतरते थे, फिर गैंती, फावड़े और टोकरियों आदि का इस्तेमाल करके खुद कोयला निकालते थे।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, सिलक्यारा बचाव अभियान में हर प्रक्रिया के फेल होने के बाद सोमवार को छह सदस्यीय रैट माइनर्स की टीम को तैनात किया गया था। आगे बताया,ऑगर मशीन के फेल होने के बाद हाथ से खुदाई कराने का फैसला किया गया। इसके बाद श्रमिकों की कुशल टीम ने रैट होल माइनिंग पद्धति का इस्तेमाल करके हाथ से मलबा हटाने का काम किया।
रैट-होल माइनिंग पर क्यों लगा प्रतिबंध?
रैट-होल माइनिंग को सबसे पहली बार 1970 के दशक में गैरकानूनी घोषित किया गया था, जब भारत सरकार ने कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया और सरकारी खनन कंपनी कोल इंडिया को कोयला उत्खनन पर एकाधिकार दे दिया।
हालाँकि, कई छोटे खदान मालिकों ने इस प्रथा को जारी रखा और कथित तौर पर कोयला निकालने के लिए छोटे बच्चों या व्यस्क लोगों का इस्तेमाल किया।
प्रतिबंध को लागू करने के लिए जनशक्ति की कमी और कोयला उत्खनन वाले स्थानों की दूरदर्शिता की वजह से सरकार इस प्रथा को रोकने में असमर्थ दिखी। अभी हाल ही में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2014 में मेघालय में रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया और अगले साल भी अपना प्रतिबंध बरकरार रखा।
एनजीटी ने कहा कि, “ऐसे कई मामले हैं जहां बरसात के मौसम में रैट-होल खनन के कारण खनन क्षेत्रों में पानी भर गया, जिसके परिणामस्वरूप कर्मचारियों/श्रमिकों सहित कई लोगों की मौत हो गई।”
अतः, एक समय पर इस्तेमाल की जाने वाली खतरनाक पद्धति इस बार लोगों की जानें बचाने में काम आई। पीएम मोदी व उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सभी रैट माइनर्स व सुरक्षा अभियान से जुड़े लोगों को धन्यवाद किया।
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