हैंडपंप मैकेनिक का नाम सुनते हैं तो हमारे जेहन में तस्वीर एक पुरुष की उभर कर आती हैं, क्योंकि औजार हथौड़े चलाना, नट बोल्ट कसना पुरुषों का काम माना जाता है। लेकिन इस धारणा को तोड़ते हुए चित्रकूट जिले की राजकुमारी ने 1992 में जब अपने हाथों में औजार और हथौड़े उठाये तो लोग हंसते थे और कहते थे, ‘नल बनाना इनके बस का नहीं।’ इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि बुंदेलखंड की महिलाओं ने कभी हालात से हार नहीं मानी है. हर समय यहां की महिलाओं ने लोहा मनवाया है कुछ ऐसा ही किया राजकुमारी ने भी..
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राजकुमारी कहती हैं..”अब तो जमाना बहुत बदल गया है लेकिन आज से 20 साल पहले स्तिथि बहुत खराब थी, महिलाओं का घर से निकलना ही मना था, उस समय नल मैकेनिक बनना पुरुषों को लगता था कि हमने उनके मुंह पर तमाचा मार दिया है।”
राजकुमारी ने ठान लिया था चाहें कुछ हो जाए पुरुषों की हंसी तो एक दिन बंद करानी ही है, आज वही लोग नल ठीक करने के लिए हमको ही याद करते हैं।”
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राजकुमारी कहती हैं अब उनका परिचय उनका दलित होना नहीं बल्कि उनका असली परिचय उनका काम है। वह ख़ुशी से बताती हैं कि वह आज एक कामयाब महिला हैं। राजकुमारी ब्लॉक की वोर्ड सदस्य होने के साथ-साथ दलित महिला समिति की एक जिम्मेदार सदस्य भी है। खबर लहरिया राजकुमारी के इस जज्बे को सलाम करता है।
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