पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना की बेहतर पैदावार होती है जिसे किसान चीनी मिलों में ले जाकर बेचते हैं लेकिन उनका भुगतान बहुत लेट होता है जिससे वह काफी परेशान हो जाते हैं और इसके लिए कई बारी विभागों के चक्कर काटते हैं तो कई बारी धरना प्रदर्शन और ज्ञापन भी देते हैं। इस स्टोरी को हमने बागपत जिले के बड़ोद ब्लाक अंतर्गत आने वाले कुछ गांव के किसानों से किया, क्योंकि यूपी विधानसभा चुनाव के पहले सरकारों ने यह वादा किया था कि गन्ना किसानों का पिछला बकाया भुगतान काफी हद तक कर दिया जाएगा। जब हमने किसानों से बातचीत की तो किसानों ने बताया कि कुछ मीलों से तो पिछला भुगतान हो चुका है और इस वर्ष का अभी भी पड़ा है लेकिन कुछ मिले ऐसी हैं जिनमें अभी पिछला भुगतान ही पड़ा हुआ है किसान अपना घर चलाने के लिए थोड़ा बहुत गन्ना कोल्हू में बैठते हैं जानवर भेजते हैं दूध दही बेचकर अपना खर्चा चलाते हैं और जब नहीं पूरा पड़ता तो कर्ज भी लेते हैं जबकि नियम यह है कि 15 दिन में गन्ना किसानों का भुगतान हो जाना चाहिए पर ऐसा नहीं होता।
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विकिपीडिया के अनुसार केंद्र सरकार की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 18 अप्रैल 2022 तक मिलो की तरफ से किसानों का पिछला लगभग 92,480 रुपए गन्ना का बकाया भुगतान किया जा चुका है। जबकि पिछले चीनी सीजन 2020-21 के दौरान चीनी मीलों को गन्ना किसानों को 92,938 करोड़ रुपये के गन्ना का बकाया भुगतना करना था। इस प्रकार पिछले चीनी सीजन का 99,5 फीसदी गन्ना का बकाया भुगतान कर दिया गया है,तो वहीं चालू चीनी सीजन 2021,22 के दौरान मीलों को कुल 81,468 करोड़ रुपये के गन्ना बकाया का भुगतान किया जाना था। जिसमें से लगभग 74,149 करोड़ रुपये का भुगतान 18 अप्रैल 2022 तक किया जा चुका है। जो कि 80 प्रतिशत से अधिक है। अब चालू सीजन मे चीनी मीलें किसानों को 1,00,000 करोड़ रुपये से अधिक का गन्ना मुल्य भुगतान करेंगीं।
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किसानों का कहना है कि उनके यहां गन्ना के अलावा और कोई फसल नहीं होती उसका कारण है कि यहां पर नीलगाय और जानवर बहुत ज्यादा लगते हैं। गन्ने की गुड़ाई निराई पानी कटाई बहुत कुछ लगता है तब जाकर वह फसल तैयार करते हैं। उन फसलों को काट फील करके मिलों में ले जाते हैं वहां पर 3:30 ₹100 कुंतल गन्ना जाता है उसके लिए भी पर्ची कटवाने पड़ती है तब जाकर गन्ना बिकता है और फिर पैसे के लिए सालों भटकना पड़ता है। जिससे उनके खर्च में बाधाएं आती हैं और कई काम रुक भी जाते हैं वह चाहते हैं कि जिस तरह नियम है अगर नियम के अनुसार उनका समय से भुगतान होने लगे तो उनको घर खर्च में दिखते ना आए उनको कर्ज ना देने पड़े उनको जो घर की अन्य चीजें बेचनी पड़ती है।
वह भी न करनी पड़े लेकिन यह लेट हो जाता है और यह चीनी मिलों की तरफ से ही होता है इस पर सुधार चाहते हैं वह लोग इसके लिए उन्होंने कई बारी मांगे भी की हैं लेकिन कुछ खास असर नहीं पड़ता पिछले साल का उनका पैसा अब आया है और जो अभी उन ओं ने गन्ना भेजा है इस साल वह कब आएगा इसका भी पता नहीं है यही कारण है कि किसान अपनी फसल बेचने के बाद भी पैसा ना मिलने के कारण समय से कर्ज में डूबा रहता है।
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