जैसा कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गुरुवार को लोकसभा चुनावों को लेकर अपनी पार्टी सीटों की पहचान की तो ये सामने आया कि ये गठबंधन दोनों दलों के स्थानीय दावेदारों को सीट दिलाने में भारी पड़ सकता है।
राज्य भर में 26 लोकसभा क्षेत्रों में, उस पार्टी को सीट आवंटित नहीं की गई है जिसे 2014 में अन्य की तुलना में अधिक वोट प्राप्त हुए। वितरण विश्लेषण के अनुसार उन सीटों को पार्टी को आवंटित किया गया जिन्हें 2014 में अन्य की तुलना में कम वोट प्राप्त हुए।
उदाहरण के लिए, हरदोई लोकसभा सीट पर, बसपा उम्मीदवार ने 2014 के लोकसभा चुनावों में सपा (2.76 लाख वोट) की तुलना में अधिक वोट (2.79 लाख) हासिल किये।
हालांकि, गुरुवार को घोषित सीटों के वितरण के अनुसार, आगामी चुनाव के लिए सीट सपा को आवंटित की गई है।
इसी तरह, अमरोहा लोकसभा सीट पर, सपा उम्मीदवार ने 2014 के चुनाव में बसपा (1.62 लाख वोट) की तुलना में अधिक वोट (3.70 लाख वोट) लिए, लेकिन सीट बसपा उम्मीदवार को आवंटित की गई।
बसपा उन 12 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी, जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा उम्मीदवार ने अपने उम्मीदवार की तुलना में अधिक वोट हासिल किये थे। इसी तरह, सपा उन 14 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, जहां 2014 के चुनावों में बसपा उम्मीदवार ने सपा के मुकाबले अधिक वोट हासिल किये।
पिछले महीने की शुरुआत में, सपा और बसपा ने चुनाव पूर्व गठबंधन की घोषणा की थी, जिसमें प्रत्येक में 38 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया गया था, दो सीटें कांग्रेस को और दो संभावित सहयोगी को। बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के संयुक्त हस्ताक्षरों के तहत गुरुवार को सीट-वितरण पर बयान से पता चला कि बसपा 38 सीटों पर और सपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
गठबंधन की पांच सीटों में से दो कांग्रेस के लिए (रायबरेली, अमेठी) और तीन आरएलडी (मथुरा, बागपत, मुजफ्फरनगर) के लिए हैं।
सूत्रों के अनुसार इस असहमति का प्रतिद्वंद्वी दलों द्वारा फायदा उठाया जा सकता है और यह सपा-बसपा गठबंधन के खिलाफ भी काम कर सकता है।