प्रधान पद के चुनाव के दौरान प्रत्याशियों द्वारा आवास मिलने का वादा किया गया था, लेकिन आज एक साल होने को आया है, न लौट कर प्रधान इस गाँव की हालत देखने आये और न ही आई आवास की कोई सूची।
वाराणसी ज़िले के चिरैया ब्लॉक की जयरामपुर छावनी बस्ती की आबादी लगभग 15 हज़ार है, लेकिन आज भी यहाँ कई ऐसे परिवार हैं जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। ग्रामीणों का कहना है कि इन लोगों ने कई बार आवास की मांग तो करी, लेकिन अबतक विभाग की तरफ से कोई सुनवाई नहीं हुई है। इस योजना के अंतर्गत पात्र परिवार को आवास बनवाने के लिए 1 लाख 20 हज़ार की क़िस्त मिलती है और 15 हज़ार रूपए मज़दूरी की क़िस्त मिलती है।
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टूटे मकानों में रहने को मजबूर परिवार-
इस बस्ती के रहने वाले संतारा ने हमें बताया कि पिछले कई सालों से वो मिट्टी की बनी झोपड़ी में रह रहे हैं। भारी बरसात के कारण ये झोपड़ी बुरी तरह से टूटने की कगार पर है, अगर इसमें जल्द ही मरम्मत नहीं हुई तो ऐसा भी हो सकता है कि संतारा की झोपडी ढह जाए। पैसों की तंगी के चलते वो मौरंग, बालू, ईंट इत्यादि लाकर एक पक्का मकान तैयार करने में भी असफल हैं।
संतारा के पास एक ट्रेक्टर है, उसी ट्रैक्टर को चलाकर वो घर का खर्चा निकाल पाते हैं। सरकारी योजना के बावजूद भी संतारा और उसके परिवार को आवास के लिए इतनी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
इसी बस्ती की रहने वाली सुनीता ने हमें बताया कि पिछले साल हुए प्रधान पद के चुनाव के दौरान प्रत्याशियों द्वारा आवास मिलने का वादा किया गया था, लेकिन आज एक साल होने को आया है, न लौट कर प्रधान इस गाँव की हालत देखने आये और न ही आई आवास की कोई सूची।
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झोपड़ी गिरने से हो चुकी है एक पति-पत्नी की मृत्यु-
गाँव के शिव कुमार ने गाँव में आवास को लेकर हो रही परेशानी को बयान करते हुए हाल ही में हुए एक हादसे को बताया। शिवकुमार के पड़ोसी गुलाब और उसकी पत्नी की मृत्यु पिछले साल झोपड़ी गिरने के बाद उसमें दब के मरने से हो गई। गुलाब की पांच बेटियां थीं, परिवार के पास अंतिम संस्कार तक के पैसे नहीं थे, तब गाँव वालों ने पैसे जोड़ कर जैसे-तैसे गुलाब और उसकी पत्नी का अंतिम संस्कार किया।
पाँचों बच्चियों के सिर के ऊपर छत तक नहीं बची थी तब ग्रमीणों ने पत्थर, बालू इकट्ठा कर उनको एक झोपड़ी बना कर दी, जहाँ अब ये बच्चियां अपना गुज़ारा कर रही हैं।
गुलाब की बच्चियां माला बनाकर और उसे बेचकर अपना पेट भरती हैं, कभी-कभी तो हाल ये होता है कि बच्चियां दिनभर भूखी ही रह जाती हैं। लेकिन गाँव के प्रधान या प्रशासन की तरफ से गुलाब के परिवार को कोई सहयोग नहीं मिला।
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साल भर में आये हैं सिर्फ 10 आवास-
जब हमने इस बारे में गाँव के प्रधान दलसिगार राजभर से बात की, तो उन्होंने बताया कि गाँव में काफी लोगों के पास घर नहीं है और बहुत सारे परिवार झोपड़पट्टी में रहते हैं। उनका कहना है कि आवास की प्रक्रिया बहुत धीमी चल रही है, पिछले साल से अबतक में 10 आवास आ चुके हैं, जिसमें से 7 मकान बनकर तैयार भी हो चुके हैं।
उन्होंने बताया कि 15 हज़ार की आबादी वाली बस्ती में 10 आवास किसको दिए जाएँ, यह सोचना भी बहुत कठिन काम होता है। हालांकि सूची में सभी योग्य परिवारों के नाम हैं, जैसे ही और आवास आते हैं लोगों को इसकी क़िस्त देने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
सचिव गुंजन सिंह का भी यही कहना है कि इस गाँव में आवास की प्रक्रिया बहुत ही धीमी गति में चल रही हैं। उन्होंने बताया कि हाल ही में गाँव में 3 आवास आए हैं। आगे भी जैसे-जैसे आवास आते रहेंगे और परिवाओं को इसका लाभ दिया जायेगा। इसके साथ ही पात्र परिवारों के लिए दोबारा से फॉर्म भरने की भी प्रक्रिया चालू हो गई है।
इस खबर की रिपोर्टिंग सुशीला द्वारा की गयी है।
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