अक्टूबर के शुरुआत के साथ ही यहां गन्ने की छिलाई और कटाई का काम तेज़ी से शुरू हो गया है। गांव–इलाकों में सुबह से शाम तक मजदूरों की टीमें गन्ना छीलने, बोझ बांधने और ट्रॉलियों में लादने में जुटी हैं।
रिपोर्टर: संगीता, लेखन: रचना
उत्तर प्रदेश पूरे भारत में गन्ने का सबसे ज्यादा उत्पादन करता है। हर साल लगभग 135.64 मिलियन टन गन्ना यहां पैदा होता है। प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले को गन्ना उत्पादन का केंद्र माना जाता है, जहां बड़ी संख्या में शुगर मिलें भी स्थापित हैं। गन्ना सीजन अक्टूबर से शुरू होकर अप्रैल तक चलता है, जब खेतों में छिलाई, कटाई और मिलों तक ले जाने का काम तेजी से होता है।
दुनिया में गन्ने की खेती की शुरुआत लगभग 8,000 साल पहले दक्षिण प्रशांत के न्यू गिनी द्वीप पर हुई थी। वहां से यह फसल धीरे-धीरे पूरा क्षेत्र पार करते हुए सोलोमन द्वीप समूह तक फैली। आज गन्ना लाखों किसानों की रोज़ी-रोटी का आधार बन चुका है।
आयोध्या में गन्ने की छिलाई ज़ोरों पर
उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में इन दिनों खेतों में रौनक लौट आई है। अक्टूबर के शुरुआत के साथ ही यहां गन्ने की छिलाई और कटाई का काम तेज़ी से शुरू हो गया है। गांव–इलाकों में सुबह से शाम तक मजदूरों की टीमें गन्ना छीलने, बोझ बांधने और ट्रॉलियों में लादने में जुटी हैं। लखीमपुर खीरी से आए मजदूर से लेकर स्थानीय किसान तक सभी लोगों का दिन गन्ने के खेतों में ही गुजर रहा है। पहले जब खेती छोटे पैमाने पर होती थी, किसान खुद ही गन्ना छील लेते थे। लेकिन अब उत्पादन बढ़ने के साथ ही किसान मजदूरों की टीम लगाते हैं जो खेतों में छिलाई, बोझ बांधने और ट्रैक्टर में लोडिंग का काम संभालते हैं।
खेत मालिक भारत मौर्या – “लागत भले बढ़ी, फसल फिर भी सहारा देती है”
अयोध्या के ब्लॉक–मया गांव चौरैहिया के किसान भारत मौर्या बताते हैं कि उन्होंने अपने खेत में लगभग दो बीघा में गन्ने की खेती की है। उनके अनुसार एक बीघा पर करीब ₹10,000 की लागत आती है और औसतन 80 कुंतल गन्ना प्रति बीघा उत्पादन हो जाता है। इस समय मिल रेट लगभग 350 प्रति कुंतल चल रहा है। खेत में काम के लिए उन्होंने छह मजदूर लगाए हैं जिन्हें 70 प्रति कुंतल के हिसाब से मजदूरी दी जाती है। भारत मौर्या कहते हैं कि इस सीजन में अचानक बारिश और तूफान ने नुकसान पहुंचाया और काफी गन्ना गिर गया जिससे कमाई पर असर पड़ेगा। फिर भी उनके अनुसार गन्ने की फसल कभी पूरी तरह घाटा नहीं देती क्योंकि कम लागत में भी यह कुछ न कुछ फायदा छोड़ ही जाती है।
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10 साल से कर रहे गन्ने की छिलाई
लखीमपुर खीरी के रहने वाले राम बताते हैं कि वे लगभग 10 साल से गन्ने की छिलाई का काम कर रहे हैं। उनकी टीम में कुल 6 लोग होते हैं जो हर साल अक्टूबर में अयोध्या पहुंच जाते हैं और मिल बंद होने तक यानी अप्रैल तक वहीं रहकर काम करते हैं। राम कहते हैं “हम खेत मालिक के यहां ही रहते-खाते हैं। हमारा काम साफ-साफ तय होता है एक आदमी अगर 1 कुंतल गन्ना छीलता है तो उसे 70 रुपए मिलते हैं। बोझ बांधने से लेकर ट्रैक्टर पर लादने तक का सारा काम हम सब मिलकर करते हैं।”
पवन और दिनेश – “मजदूरी हमारी मजबूरी ही नहीं, अब पेशा भी बन गई है”
पवन कुमार बताते हैं “मैं पांच साल से गन्ना बोझ बांधने का काम कर रहा हूं। गरीब परिवार से हूं पढ़ाई नहीं कर पाया। सरकारी योजनाओं की जानकारी भी नहीं थी। ऐसे में मजदूरी ही सहारा बन गई। परिवार चलाने के लिए यही करना पड़ता है। अब यही हमारा पेशा और आदत दोनों बन गया है।”
दिनेश कुमार बताते हैं कि एक बीघा गन्ने की छिलाई दो दिन में पूरी हो जाती है। छिलाई के बाद यही मजदूर ट्रॉली में गन्ना लोड भी करते हैं जिसके लिए उन्हें अलग से भुगतान मिलता है। एक ट्रॉली में लगभग 80 कुंतल गन्ना भर जाता है और गन्ने की किस्म के अनुसार किसानों को 300 से 350 प्रति कुंतल का भाव मिलता है। दिनेश कहते हैं पहले मिल से पैसे आने में महीनों लग जाते थे लेकिन अब 15 दिन के भीतर ही पैसा बैंक खाते में आ जाता है। इससे घर और परिवार के खर्च चलाने में काफी राहत मिलती है।
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गन्ने को ट्रैक्टर में भरकर मिल ले जाते हैं
अक्टूबर से लेकर अप्रैल तक शुगर मिलों का पूरा सीजन चलता है। इन महीनों में किसान दिन-रात मेहनत करके गन्ने की कटाई करते हैं उसे ट्रॉली में भरते हैं और फिर ट्रैक्टर से मिल तक पहुंचाते हैं। खेत से मिल तक का यह सफर आसान नहीं होता छिलाई, बोझ बांधना, लोडिंग और फिर लंबा सफर तय करना सब कुछ लगातार चलता रहता है लेकिन इसी मेहनत पर किसानों की साल भर की आमदनी टिकी होती है। किसानों का कहना है कि गन्ना भले मेहनत वाला काम हो लेकिन समय पर भुगतान मिल जाए तो यह फसल उनके परिवार की आर्थिक स्थिति संभाले रखने में बड़ी मदद करती है।
गन्ना खेती कम लागत में शुरू होने के बावजूद किसान, मजदूर और मजदूरों की पूरी टीम को कई महीनों तक रोजगार देती है। खराब मौसम के बावजूद किसान यह मानते हैं कि गन्ना उन्हें कभी खाली हाथ नहीं छोड़ता। अयोध्या के खेतों में चल रही यह हलचल इसके जीवंत उदाहरण हैं।
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