खबर लहरिया Blog चित्रकूट में दीवाली के बाद लगा “गधा मेला”, फ़िल्मी अभिनेताओं के नाम पर रखे जाते हैं गधों के नाम

चित्रकूट में दीवाली के बाद लगा “गधा मेला”, फ़िल्मी अभिनेताओं के नाम पर रखे जाते हैं गधों के नाम

गधे मेले की शुरुआत औरंगज़ेब के शासनकाल में हुई थी। कहा जाता है कि एक बार औरंगजेब के सैन्य बल में घोड़ों की कमी हो गई थी, जिसे पूरा करने के लिए गधे और खच्चरों को सेना में शामिल करना था।
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चित्रकूट को ‘राम की नगरी’ भी कहा जाता है। लोगों के अनुसार यहां मुगलों के ज़माने से लगने वाला ‘गधों का मेला’ आज भी लगता है। ये मेला दीवाली के अगले दिन से मंदाकिनी नदी के तट पर लगना शुरू हो जाता है। इस मेले में दूर-दूर से लोग गधे, घोड़े और खच्चरों की खरीदारी और बिक्री करने के लिए आते हैं।

भारत में मुगलों का शासन खत्म हुए करीब 500 साल बीत चुके हैं लेकिन उनकी कई परंपराएं आज भी ज़ारी हैं। मध्य प्रदेश के सतना जिले में आने वाले चित्रकूट के हिस्से में लगने वाला गधों का मेला मुगल शासन की ही निशानी बताई जाती है। चित्रकूट में रामघाट के पास हर साल यह मेला लगता है। यह मेला तीन दिनों तक चलता है।

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जानें कब हुई गधे मेले की शुरुआत

बताया जाता है कि गधे मेले की शुरुआत औरंगज़ेब के शासनकाल में हुई थी। कहा जाता है कि एक बार औरंगजेब के सैन्य बल में घोड़ों की कमी हो गई थी, जिसे पूरा करने के लिए गधे और खच्चरों को सेना में शामिल करना था। ऐसे में अफगानिस्तान से अच्छी नस्ल के खच्चर मंगवाए गए थे। इन खच्चरों को मुगल सेना में शामिल किया गया था। इसके बाद से ही हर साल मेला लगाने की परंपरा चली आ रही है।

फिल्मी अभिनेताओं के नाम रखे जाते हैं गधों के नाम

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चित्रकूट में लगने वाला गधा मेला भी काफ़ी दूर-दूर तक मशहूर है। बिक्री करने वाले लोग साल भर इस गधे मेले का इंतजार करते हैं। मेले में गधों के अलावा घोड़े और खच्चरों की भी बिक्री होती है। लोगों के अनुसार इस गधे मेले में गधों के नाम फिल्मी अभिनेताओं के नाम रखे जाते हैं जिसके बाद खरीद-बिक्री का सिलसिला शुरू होता है। इस मेले में लाखों की संख्या में भीड़ नज़र आती है और लोग काफी मनोरंजन भी करते हुए दिखाई देते हैं।

पिछले दो सालों से कोविड-19 के कारण यह मेला नहीं लग पाया या ये कहें कि उसकी रौनक उस प्रकार से नहीं थी जैसे की अमूमन होती है। वहीं इस बार लगे मेले में भीड़ के साथ काफी रौनक भी है। मेले में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के आस-पास के जिलों से व्यापारी और पशु पालक अपने गधे, घोड़े और खच्चर लेकर आते हैं और मेले में शामिल होते हैं।

हर गधे की लगती है एंट्री फीस

अमर उजाला की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, गधों के मेले में गधा बेचने के लिए एंट्री फीस भी चुकानी होती है। चित्रकूट नगर पंचायत प्रत्येक गधे के लिए 300 रुपये की एंट्री फीस वसूलता है। इसी तरह एक खूंटे के लिए 30 रुपये चुकाने होते हैं। इसके बाद गधों के लिए बोलियां लगती हैं और गधे की नस्ल और सेहत को देखकर कीमत तय की जाती है। औसतन तीन से चार हजार गधे हर साल इस मेले में बिक जाते हैं।

इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है। 

 

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