नमस्कार, मैं मीरा देवी, खबर लहरिया की प्रबन्ध संपादक अपने शो राजनीति, रस, राय में आप सबका बहुत-बहुत स्वागत करती हूं। 12 अप्रैल को विधान परिषद चुनाव के नतीजे आ गए। विधानसभा सभा के बाद विधान परिषद में भी बीजेपी पार्टी ने ज़्यादा से ज़्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर लिया है। कहीं मतदान के साथ तो कहीं निर्विरोध का नाम देकर जिसमें बांदा भी शामिल है। 24 मार्च को बांदा-हमीरपुर सीट से बीजेपी प्रत्याशी जितेंद्र सिंह सेंगर को एमएलसी के लिए निर्विरोध चुन लिया गया था।
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि 9 अप्रैल को विधान परिषद की 36 में से 27 सीटों पर वोटिंग हुई थी। जबकि 9 सीटों पर बीजेपी को निर्विरोध जीत हासिल हुई थी जिसमें बांदा जिला भी शामिल है। लगभग सभी 27 सीटों पर मुख्य मुकाबला सपा और बीजेपी के बीच में ही रही। कहीं-कहीं पर निर्दलयी प्रत्याशी भी कड़ी टक्कर दे रहे थे।
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आइये बात करें गाजीपुर और वाराणसी की। क्योंकि इन दोनों जिलों पर हमारे रिपोर्टर हैं तो यहां के बारे में बताना तो बनता ही है न। अगर गाजीपुर की बात की जाए तो भाजपा प्रत्याशी विशाल सिंह चंचल एक बार फिर चुनाव जीत गए। यहां की सभी सातों विधानसभा सीटों को सपा और गठबंधन के उम्मीदवारों की जीत मिली थी। फिर भी एमएलसी सीट भाजपा के खाते में चली गई। अब आइये वाराणसी में भी एक नजर डालते हैं कि यहां पर बीजेपी तीसरे नम्बर पर रही। यहां के बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीत गईं। ये भी एक विचारणीय प्रश्न है।
चुनाव दर चुनाव बदलती राजनीतिक व्यवस्था अपने आप कई सवाल खड़े करती है कि क्या यह सीधे तौर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था का उल्लंघन करना नहीं है? अगर इसका जवाब हां है तो निवार्चन आयोग कब करेगा कार्यवाही? ये भी कि क्या निवार्चन आयोग के बस की बात नहीं रही इस पर रोक लगाना? जब इतना भौकाल कि कोई व्यक्ति या पार्टी चुनाव लड़ने में इतना डरा महसूस करे कि पर्चा तक भरने की हिम्मत न जुटा पाए और अगर जुटाए भी तो चुपचाप नाम वापस ले ले।
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