खबर लहरिया क्राइम महोबा: परिवार का आरोप, दहेज़ के लिए ली जान, अब समझौते का बना रहे दबाव। जासूस या जर्नलिस्ट

महोबा: परिवार का आरोप, दहेज़ के लिए ली जान, अब समझौते का बना रहे दबाव। जासूस या जर्नलिस्ट

महोबा जिले के कुलपहाड़ कोतवाली अंतर्गत आने वाले बेलाताल में 7 अप्रैल को एक महिला की फांसी लगने से मौत का मामला सामने आया था। फिलहाल इस मामले में अभी तक पुलिस ने एफ आई आर भी नहीं दर्ज की है।

अकौना निवासी रामरतन कुशवाहा बताते हैं कि उन्होंने अपनी लड़की की शादी 2017 में अपनी हैसियत के हिसाब से दान दहज देकर बेलाताल कस्बे में विजय के साथ की थी। लेकिन दहेज उत्पीड़न के चलते उनकी लड़की को मार दिया गया है। एक महीने से ऊपर हो गए हैं लेकिन पुलिस ने अभी तक उस केस की एफआईआर तक दर्ज नहीं की है। वह बेलाताल चौकी, कुलपहाड़ कोतवाली से लेकर एसपी तक न्याय की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उनके ऊपर पुलिस समझौते का दबाव बना रही है इसलिए वह परेशान हैं।

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वह कहते हैं कि शादी के समय ससुराल वालों ने किसी भी तरह की कोई मांग नहीं रखी थी लेकिन शादी के कुछ दिन बाद ससुराल वाले मोटरसाइकिल और सोने कि चेन को लेकर लड़की को ताने मारते थे और टॉर्चर करते थे। पीड़ित परिवार की मानें तो दहेज उत्पीड़न के चलते ही उनकी बेटी की जान चली गई है और अब इस मामले को आत्महत्या का रूप दिया जा रहा है।

परिवार ने यह भी आरोप लगाया है कि पुलिस की तरफ से समझौता करने का दबाव लगातार परिवार पर बनाया जा रहा है। और कहीं न कहीं पुलिस को भी ससुराल वालों की तरफ से समझौता कराने के लिए पैसे दे दिए गए हैं।

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कुलपहाड़ कोतवाली प्रभारी अशोक के अनुसार उनके यहां किसी भी तरह की कोई तहरीर नहीं आई है। उनके हिसाब से तो इस मामले में समझौता हो गया है।

हम आए दिन आपको इस तरह की घटनाओं से रूबरू कराते हैं जहां महिलाओं के साथ शारीरिक, यौन हिंसा के मामलों की रिपोर्ट पुलिस स्टेशन में दर्ज तक नहीं होती। हालाँकि सरकारी आँकड़ों के अनुसार भी इस तरह का क्राइम दिन पर दिन बढ़ रहा है, लेकिन फिर भी पुलिस प्रशासन की तरफ़ से ठोस कार्यवाही ना होने के चलते पीड़ित परिवारों को न्याय मिलने में देरी होती है। कई बार तो ऐसे मामले दफ़्तर के किसी कोने में फ़ाइलों में ही दब कर रह जाते हैं। और इसका कारण या तो होता है पीड़ित परिवार की आर्थिक तंगी और या फिर समझौते का दबाव।

लेकिन सोचने की बात तो ये है कि आख़िर कब तक हमारे दश की महिलाएँ समाज की बेड़ियों में जकड़कर ऐसी हिंसाओं की शिकार होती रहेंगी और कब तक यूँ ही उनकी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ होता रहेगा?

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