इलाहाबाद उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) के लखनऊ खंडपीठ ने सोमवार को उत्तर प्रदेश में 5000 प्राथमिक विद्यालयों के विलय पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दी है।
दरअसल सोमवार 7 जुलाई 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में स्कूलों के विलय करने से संबंधित अपना फैसला सुना दिया है। यूपी सरकार के पक्ष को सही मानते हुए कोर्ट ने याचिका को खारिज किया है। बता दें यूपी के 5000 स्कूलों का विलय होना है। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाया।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार ने 16 जून 2025 को एक आदेश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि जिन प्राथमिक स्कूलों में कम बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें पास के उच्च प्राथमिक स्कूल में समायोजित कर दिया जाएगा।लेकिन सरकार के इस फैसले का कुछ विपक्षी दलों ने विरोध किया। सीतापुर और पीलीभीत में इस फैसले के खिलाफ याचिका भी दायर की गई लेकिन कल यानी 7 जुलाई 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार के इस फैसले को सही बताते हुए लगाई याचिका को खारिज कर दिया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा फैसला
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि यह सरकार का नीतिगत (पॉलिसी से जुड़ा) फैसला है जो छात्रों के भले के लिए लिया गया है। जब तक यह फैसला संविधान के खिलाफ या किसी गलत इरादे से न लिया गया हो तब तक इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने साफ कहा कि सरकार का यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और उपलब्ध संसाधनों जैसे शिक्षक, भवन, सुविधाएँ आदि का सही इस्तेमाल करने के लिए उठाया गया है।
विपक्षी दल की प्रतिक्रिया
इस फैसले के खिलाफ आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने आवाज उठाई है। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर हैरानी जताई जिसमें सरकार के फैसले को सही ठहराया गया है। संजय सिंह ने कहा कि यह बच्चों के शिक्षा के अधिकार का मामला है और वे अब इसे सुप्रीम कोर्ट तक लेकर जाएंगे। सरकार के फैसले का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि इससे छोटे बच्चों के स्कूल उनके घर से दूर हो जाएंगे। इससे उन्हें स्कूल आने-जाने में परेशानी होगी। सरकार के फैसले के खिलाफ दायर की गई याचिका में जोर देकर कहा गया था कि स्कूलों का विलय 6-14 साल के बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।
इसी के साथ आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा “हाईकोर्ट के फैसले से हैरान हूं। उत्तर प्रदेश के बच्चों ने जज साहेब से पढ़ाई बचाने की गुहार लगाई थी सरकार ने स्कूल छीना अब न्यायालय ने उम्मीद छीना। क्या यही है ‘शिक्षा का अधिकार’? लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट ले जायेंगे।”
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई हो कहां रही है। टीचर्स को सिर्फ वेतन से ही मतलब है मात्र 10% टीचर ही सही पढ़ा रहे हैं।हाई कोर्ट ने सही फैसला जनहित में जारी किया है।
— Ashok kumar Dubey (@Ashokku80659883) July 7, 2025
याचिका दायर किसके द्वारा किया गया
ABP न्यूज़ के रिपोर्ट अनुसार, कुछ शिक्षक संगठनों और सीतापुर जिले की छात्रा कृष्णा कुमारी समेत 51 बच्चों और पीलीभीत के ब्लॉक बिलसंडा के ग्राम चांदपुर निवासी सुभाष, यशपाल यादव और अत्येंद्र कुमार ने प्राइमरी स्कूलों के विलय को चुनौती दी थी। लोगों द्वारा सरकार की स्कूल विलय नीति के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। याचिका में राज्य सरकार, महानिदेशक, स्कूल शिक्षा, शिक्षा निदेशक (बेसिक), बेसिक शिक्षा बोर्ड, प्रयागराज, क्षेत्रीय सहायक शिक्षा निदेशक (बेसिक) पीलीभीत के जिला मजिस्ट्रेट, मुख्य विकास अधिकारी, बेसिक शिक्षा अधिकारी और खंड शिक्षा अधिकारी, बिलसंडा को विपक्ष बनाया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने याचिका में बेसिक शिक्षा विभाग के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें बच्चों की संख्या के आधार पर प्राथमिक स्कूलों को उच्च प्राथमिक या कंपोजिट विद्यालयों (मिश्रित विद्यालय) में विलय करने की बात कही है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह आदेश न केवल बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच को भी प्रभावित करता है।
इस फैसले को शिक्षा व्यवस्था के बेहतर प्रबंधन की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है लेकिन यह चिंता और सवाल भी है कि छोटे स्कूलों का विलय कहीं दूर-दराज के बच्चों के लिए पढ़ाई में रुकावट तो नहीं बन जाएगा? खासकर वहां जहां नजदीकी स्कूल ही शिक्षा का एकमात्र जरिया है। दूसरी तरफ यह विलय कहीं ना कहीं शिक्षकों की नौकरियों को भी प्रभावित कर सकती हैं। अब आगे देखना दिलचस्प होगा कि इस विलय प्रक्रिया का जमीनी स्तर पर बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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