उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ की वजह से हर साल 27 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है। वहीं सालाना अनुमानित क्षति 432 करोड़ रूपये तक होती है।
Illustration – ज्योत्सना सिंह
भारत में बीते कुछ समय से हो रही मूसलाधार बारिश हज़ारों लोगों की जान ले चुकी है। हज़ारों लोगों को बेघर कर उन्हें उनके परिवारों से दूर कर दिया है। उफान मारती नदियां व बांधे किसी को नहीं छोड़ रही। केन व यमुना नदी का जलस्तर पिछले कुछ समय में खतरे के निशान के ऊपर जाता हुआ दिखाई दिया, वहीं आज इसमें गिरावट भी देखने को मिली। लेकिन इससे यह नहीं कहा जा सकता कि बाढ़ नहीं आ सकती या लोग सुरक्षित हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, बांदा जिले में 6 अगस्त से 12 अगस्त के बीच तापमान 28 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहेगा। अनुमान है कि काले बादल छाए रहेंगे, हल्की बारिश के साथ बिजली भी कड़क सकती है। वहीं आईएमडी की रिपोर्ट के अनुसार, चित्रकूट जिले में 6 अगस्त से 12 अगस्त के बीच तापमान 26 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहेगा। इस दौरान आंधी-तूफान,बिजली कड़कने, काले बादल छाने के साथ बारिश होने की आशंका है। रिपोर्ट से यह तो तय है कि आने वाले दिनों में बारिश होने की संभावना है।
खबर लहरिया की 6 अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार, चित्रकूट जिले के मऊ ब्लॉक के मवई गांव के पास से बहने वाली यमुना नदी का जलस्तर बढ़ गया। पानी लोगों के कमर तक पहुंच चुका था। इसके आस-पास बसे परदंवा,तिलौली, ताड़ी,मंडौर,बियावल इत्यादि गांवो में बढ़ते जलस्तर के साथ किसी भी समय बाढ़ आने की आशंका भी जताई गई। रिपोर्ट यह भी बताती है कि यह वे गांव हैं जो हर साल बारिश में जलमग्न हो जाते हैं।
मवईकला गांव की सीमा देवी बताती हैं कि उन्हें नहीं पता अगर बाढ़ आई तो वह क्या करेंगी। बाढ़ आती है तो बच्चों को लेकर भाग जाते हैं, सामान लेकर नहीं जा पाते। आगे कहा, सरकार को इसके लिए पहले ही व्यवस्था करनी चाहिए। इस दौरान कच्चे घर गिर जाते हैं। सब बर्बाद हो जाता है। कहा,”जब कोई चीज़ भीग जाती है तो बेकार ही हो जाती है।”
मंकू जो मवईकलां गांव से ही हैं कहते हैं कि प्रशासन की तरफ से भी बढ़ते जलस्तर व अन्य व्यवस्थाओं के लिए कोई व्यक्ति नहीं आया है। कहा, बाढ़ आती है तो 300-500 घर डूब जाते हैं। जब सब साधारण होता है तो फिर कच्चा घर बनाते हैं। गल्ला-पानी करते हैं।
अन्य लोगों से बात की तो पता चला कि यहां बारिश नहीं हुई है लेकिन फिर भी यहां का जलस्तर बढ़ा हुआ है। लोगों का मानना है कि हर साल बांध का पानी यमुना नदी में छोड़ दिया जाता है लेकिन कौन-से बांध का पानी,यह नहीं पता।
इसके आलावा चित्रकूट से बहने वाली मंदाकिनी नदी का भी जलस्तर बढ़ा हुआ देखा गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बीते गुरुवार को रामघाट पर बसी दुकानें बढ़े जलस्तर की वजह से जलमग्न हो गईं थीं।
वहीं बांदा जिले से कवर की गई हमारी रिपोर्ट बताती है कि पैलानी क्षेत्र के सिंधनकलां, तुर्री नाला में पड़ने वाले रपटा, यहां कल हुई एक घंटे की हुई बारिश में ही इसका जलस्तर बढ़ गया।
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गंगऊ और बरियारपुर बांध उफान पर
अगर मीडिया रिपोर्ट्स की बात करें तो हाल ही में यूपी, बुंदेलखंड के दो महत्वपूर्ण बांध गंगऊ और बरियारपुर भी लगातार बारिश की वजह से खतरे का निशान पार कर चुके थे।
इन बांधों के पानी को कम करने के लिए पानी को केन नदी में छोड़ा गया जिससे यह बांध बने हैं। इससे यह अनुमान लगाया गया कि केन नदी भी किसी भी समय उसके आस-पास के गांवों को अपने अंदर समाहित कर सकती है। उसने कुछ गांवो को पानी में समाहित करना शुरू भी कर दिया है। ऐसा पहली बार नहीं है कि उफान मारती नदियों ने जन-जीवन को खुद में न समाया हो। साल दर साल यही समस्या होती है। गांव या तो जलमग्न हो जाते हैं या उसी पानी में बह गायब हो जाते हैं कई ज़िन्दगियों के साथ।
नवभारत टाइम्स की 5 अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को केन नदी खतरे का लाल निशान पार कर चुकी है। गांवो में पानी घुसने लगा है। प्रशासन ने नदी के किनारे रह रहे गांवो को अलर्ट कर दिया है। वहीं बाढ़ चौकिया को भी सतर्क रहने को कहा गया है। जानकारी यह भी है कि नदी का जलस्तर खतरे का निशान 104 मीटर को पार कर 104.53 मीटर पर पहुंच गया है।
रिपोर्ट में बताया गया कि एमपी के बांध क्षेत्र में हो रही बारिश से गंगऊ और बरियारपुर बांध का पानी बढ़ा है। दोनों बांध केन नदी में ही मध्य प्रदेश के छतरपुर व पन्ना जनपदों में बने हैं। बीते शुक्रवार की शाम गंगऊ से 3 लाख 7 हजार 478 और बरियारपुर बांध से 3 लाख 24 हजार 64 क्यूसेक पानी नदी में गिर रहा है। यह पानी बारिश के बाद सबसे ज़्यादा छोड़ा गया पानी है।
बाढ़ आती है और गांव पानी हो जाते हैं
केन नदी का जलस्तर बढ़ने से कई गांवो के रास्ते बंद हो गए हैं। वहीं यमुना नदी का जलस्तर बढ़ने से पैलानी क्षेत्र के शंकरपुरवा,नंदादेव, पंडोरा डेरा,सिंधनकलां के मजरा हरबंस पुरवा,सिंधन खुर्द गुरगवां, सिमरन डेरा गौरी कलां अमारा और तारा खजूरी में भी बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है।
शंकरपुरवा गांव तो हर साल बाढ़ को खुद में समा लेता है या खुद को उसमें छोड़ देता है मानों कभी रहा ही न हो या कभी मोह ही न रहा हो, जीवन का, वहां बसने वाले लोगों का।
खबर लहरिया की अगस्त 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, बांदा जिले की ग्राम पंचायत नांदादेव का मजरा शंकर पुरवा बाढ़ आने पर हर बार बुरी तरह से प्रभावित होता है। बाढ़ आने और उसके बाद भी लोग खुद से अपनी ज़रूरतों की
व्यवस्था करते हैं। हर साल यहां बाढ़ आती है और प्रशासन हर बार यहाँ के लोगों को बस भरोसा देता है कि उन्हें किसी ऊंचाई की जगह पर विस्थापित कराया जाएगा।
लोगों के अनुसार साल 2013, 2016, 2019, 2021, 2022 में भयावह बाढ़ की स्थिति जानलेवा बन गई थी। 2023 में केन नदी के साथ-साथ चंद्रावल नदी भी उफान पर थी।
यूपी की बाढ़ की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ की वजह से हर साल 27 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है। वहीं सालाना अनुमानित क्षति 432 करोड़ रूपये तक होती है।
रिलीफ वेब पर प्रकाशित Situation Report 2: Flood in Uttar Pradesh (26th July 2024) की रिपोर्ट के अनुसार,वर्तमान में कुल 9 जिले और 21 तहसीलें बाढ़ से प्रभावित हैं, जिससे अब तक कुल मिलाकर 26 जिले और 76 तहसीलें प्रभावित हो चुके हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ ने अब तक 258 गांवों को प्रभावित किया है, जिससे प्रभावित गांवों की कुल संख्या बढ़कर 1,809 हो गई है। बाढ़ से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कुल 1,601,150 आबादी प्रभावित हुई है।
एनडीटीवी की 4 अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ में राज्य राहत आयुक्त कार्यालय के अनुसार, उत्तर प्रदेश में रविवार शाम तक 24 घंटों में बारिश से संबंधित घटनाओं में पांच लोगों की मौत हो गई, जबकि इसके छह जिले अभी भी बाढ़ से प्रभावित हैं।
पिछले कुछ समय में यूपी के अलग-अलग जिलों से बाढ़ की वजह से मौत की खबरें सामने आई हैं। हालांकि, बाढ़ से अभी तक कुल कितनी मौतें हुई हैं, यह आंकड़ा सामने नहीं आया है।
हर साल बाढ़ से सबसे ज़्यादा हानि लोगों के जनजीवन व उनकी जीविका को होती है। एक बार त्रासदी सह चुके लोग फिर दोबारा साधारण जीवन के दैनिक क्रियाकलापों में खुद को नहीं जोड़ पाते व अमूमन ग्रस्त दिखाई पड़ते हैं। आर्थिक तौर पर कमज़ोर वर्ग व ग्रामीण क्षेत्र इससे उभर नहीं पाते, न उन तक उचित सुविधा पहुँच पाती है।
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