उत्तर प्रदेश के प्रयागराज ज़िले में पानी के समस्या से परेशान ग्रामीण। वे बताते हैं यही एक हैंडपंप है जिससे सारा गांव पानी पीता है। नहाना, कपड़ा धोना, खाना बनाना सब इसी से करते हैं लेकिन पानी बिल्कुल गंदा निकलता है।
रिपोर्ट और तस्वीर – सुनीता, लेखन – रचना
प्रयागराज जिले के शंकरगढ़ ब्लॉक के अमिलीहाई गांव के मजरा नई बस्ती कपारी के लोग इन दिनों एक बड़ी परेशानी झेल रहे हैं। यहां के लोगों के लिए पीने का पानी ही अब बीमारी बन गया है। गांव वालों का कहना है कि इस समय गांव में लगे हैंडपंप से आधा पानी और आधा बालू निकलता है। पानी इतना गंदा होता है कि पीने से पेट में दर्द, खांसी-जुकाम और सीने में संक्रमण जैसी बीमारियाँ फैल रही हैं।
इस समस्या पर बात करते हुए गांव के ही एक महिला कलावती अपनी समस्या बताते हुए कहती हैं कि “हम लोग क्या करें मजबूरी है। यही एक हैंडपंप है जिससे सारा गांव पानी पीता है। नहाना, कपड़ा धोना, खाना बनाना सब इसी से करते हैं लेकिन पानी बिल्कुल गंदा निकलता है। बालू भरा और कभी-कभी लाल रंग का हो जाता है। इससे शरीर पर असर पड़ता है। तीन लोग तो गांव में पथरी की बीमारी से जूझ रहे हैं।”
गांव की आबादी दो सौ लेकिन पानी की व्यवस्था सिर्फ एक हैंडपंप
नई बस्ती कपारी की आबादी लगभग दो सौ लोगों की है। गांव में सिर्फ एक हैंडपंप है जो लोगों के पीने और घरेलू उपयोग का एकमात्र साधन है। यहां न कोई कुआं है न नल न पानी की कोई सप्लाई। सरकार की “हर घर नल-जल योजना” की बात तो गांव के लोग सुनते हैं लेकिन उनके गांव में अब तक एक भी नल नहीं लगा।
गांव के लोग बताते हैं कि कई बार प्रधान से शिकायत की गई कि हैंडपंप का पानी गंदा निकलता है लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। गांव की महिलाएं रोज सुबह पानी भरने जाती हैं और बालू के साथ झागदार पानी लेकर लौटती हैं। मजबूरी में वही पानी पीना पड़ता है क्योंकि दूसरा कोई विकल्प नहीं है। कलावती की पड़ोसन रामकली कहती हैं “हम लोग रोज मजदूरी करने शहर जाते हैं। सुबह जल्दी खाना बनाकर निकल जाते हैं। अगर कहीं और से पानी लाने जाएं तो देर हो जाएगी फिर काम छूट जाएगा। इसलिए जो है उसी से गुज़ारा करते हैं।”
पानी से पथरी जैसी बीमारी
गांव में बच्चे भी गंदा पानी पीने से अक्सर बीमार पड़ जाते हैं। खांसी, बुखार और सीने में जलन की शिकायतें आम हैं लेकिन न तो कोई स्वास्थ्य शिविर लगता है न कोई जांच। गांव में इस पानी से पथरी की भी समस्या देखी गई है।
गांव में बीमारियों का असर अब साफ दिखने लगता है। कलावती बताती हैं “हम लोग रोज का खाने कमाने वाले हैं। जब बीमार हो जाते हैं तो इलाज कराना भी मुश्किल हो जाता है। अस्पताल जाने के लिए किराया नहीं दवा महंगी। अगर सरकार साफ पानी की व्यवस्था कर दे तो हम लोग बीमार ही न हों।”
प्रधान सुभाष का बयान: “तीन पंचवर्षीय बीत गए अब भी वही हालत”
इस मामले पर प्रधान एडीओ पंचायत और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक से बात की गई। गांव के प्रधान सुभाष ने इस समस्या पर कहा “ये हैंडपंप जब से लगा है तभी से गंदा पानी दे रहा है। बालू और लाल रंग का पानी आता है। सिर्फ इस गांव में ही नहीं आसपास के कई मजरों में भी यही हाल है। किसी हैंडपंप से लाल पानी आता है किसी से बालू वाला। तीन पंचवर्षीय बीत गए लेकिन हाल नहीं बदला। हमने ब्लॉक में कई बार आवेदन दिया है कि सौर ऊर्जा से चलने वाला टंकी वाला सिस्टम लगवाया जाए लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।”
बता दें प्रधान के मुताबिक पूरे इलाके में करीब पांच हजार की आबादी है और कई मजरे इसी तरह गंदे पानी से परेशान हैं।
एडीओ पंचायत की बात: “यह इलाका पथरीला है इसलिए पानी में बालू”
इस पर एडीओ पंचायत दशरथ लाल का कहना है “ये इलाका पहाड़ी और पथरीला है। इसलिए यहां का हैंडपंप पानी साफ नहीं देता। बालू और मिट्टी नीचे से ऊपर आ जाती है। कुछ जगह सौर ऊर्जा वाली टंकियां लगाई गई हैं और बजट आने पर इस गांव में भी लगाई जाएगी। योजना में इस गांव को शामिल करने की बात चल रही है।” लेकिन गांववालों का कहना है कि यह बात हर साल कही जाती है। “बजट आएगा” या “जल्द काम होगा” जैसे वादे अब तक अधूरे ही रहे हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र “इस क्षेत्र में पथरी और टीबी के मरीज अधिक”
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ अभिशेष सिंह ने बताया कि इस क्षेत्र में मजदूर वर्ग के लोग ज्यादा हैं और यहां का पानी खनिजों व बालू से भरा होने के कारण किडनी में पथरी और टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ी है। अधिकारी ने कहा “गंदा पानी और धूलभरा वातावरण दोनों ही स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। लोग खुले में काम करते हैं और वही गंदा पानी पीते हैं। इस वजह से यहां इन बीमारियों के केस ज्यादा आते हैं।”
बता दें इस तरह की पानी की समस्या पहली समस्या नहीं है। इससे पहले भी पानी की समस्या देखी गई गई है। वाराणसी ज़िले के पिंडरा ब्लॉक अंतर्गत गार्डर गांव की वनवासी बस्ती के लोगों का आरोप था कि वे पिछले एक साल से गंदा और अशुद्ध पानी पीने को मजबूर हैं। इस पानी को पीने से कई तरह की बीमारियां फैल रही हैं। गांव में जब हैंडपंप खराब हो जाता है तो लोगों को कई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। इसके अलावा गांव में पानी का कोई दूसरा स्रोत उपलब्ध नहीं है। स्थानीय लोगों ने कई बार अपनी समस्या गांव के प्रधान को बताई लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिला। एक साल बीत जाने के बावजूद अब तक कोई बदलाव नहीं हुआ है। अब ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर मांग की है कि उनके लिए स्वच्छ और सुरक्षित पानी की व्यवस्था की जाए। हालाँकि जल जीवन मिशन के तहत कई गांवों में टंकियाँ लग चुकी हैं लेकिन इस बस्ती में तब भी सिर्फ रेत और गंदगी वाला पानी निकलता रहा। अधिकारियों की ओर से यह जवाब मिला है कि जाँच के लिए टीम भेजी जाएगी।
UP Varanasi: वनवासी बस्ती के हैंडपंप से बालू वाला निकल रहा पानी, लोगों में बीमारी
ठीक ऐसा ही एक और उदाहरण है उत्तर प्रदेश का खन्ना गांव। उत्तर प्रदेश के महोबा जिले का कबरई ब्लॉक और उसमें बसा खन्ना गांव। जहां आज भी सैकड़ों लोग नदी में गड्ढा खोदकर पानी पीने को मजबूर हैं। 21वीं सदी में भी जब दुनिया डिजिटल हो रही है यहां पानी एक सपना बना हुआ है। गांव के तीन मोहल्लों में लगभग 1500 लोग रहते हैं। यहां न हैंडपंप है, न टंकी, और न ही चालू पाइपलाइन। लोग हर दिन गड्ढा खोदकर नदी का गंदा पानी पीते हैं।
चित्रकूट जिले के मानिकपुर विकासखंड से महज़ 3 किलोमीटर दूर बसे चमरौहा डांढी और अहिरन डांढी गांव आज भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं। गांव के लोग सालों से एक तालाब और दूर के एक पुराने कुएं पर निर्भर रहे हैं लेकिन अब हालात बद से बदतर हो गए हैं। गांव में पांच हैंडपंप हैं जिनमें से तीन ही चालू हैं वो भी गंदा और बेहद कम पानी देते हैं। एक बाल्टी भरने में 15 मिनट और उसके बाद घंटों इंतज़ार। सरकारी बोरिंग हैं लेकिन सूखे पड़े हैं और प्राइवेट बोरिंग से भी हर किसी को पानी नहीं मिलता। यहां पानी हर दिन नहीं नंबर से मिलता है यानी इंतज़ार, थकावट और जद्दोजहद ही जीवन का हिस्सा बन गई है।
केंद्र सरकार की हर घर जल योजन (जल जीवन मिशन) का उद्देश्य था कि 2024 तक देश के हर घर में नल से पानी पहुंचे। सरकार ने करोड़ों रुपये इस योजना पर खर्च करने की बात कही है। दस्तावेजों में प्रयागराज जिले के कई गांवों में नल-जल योजना पूरी दिखती है लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। नई बस्ती कपारी की कहानी केवल एक गांव की नहीं है बल्कि उन हजारों ग्रामीण इलाकों की है जहां आज भी साफ पानी एक सपना है। सरकारी रिपोर्टों में योजनाएं पूरी बताई जाती हैं लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि लोग आज भी बालू और लाल पानी पीने को मजबूर हैं।
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