लगातार और बेमौसम बारिश ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसानों की खड़ी फसलें तबाह कर दी हैं। मूंगफली, धान, सोयाबीन और कई प्रमुख फसलें सड़ गईं जिससे किसान और उनके पशु दोनों गंभीर संकट में हैं। बीज, चारा, मेहनत और पूंजी सब खत्म हो चुकी है लेकिन सर्वे और मुआवज़े की प्रक्रिया अभी भी अधूरी है। जलवायु परिवर्तन और प्रशासनिक लापरवाही मिलकर किसानों को निराशा, कर्ज़ और भूख की कगार पर धकेल रहे हैं।
बीते कुछ दिनों से यूपी और आसपास के इलाकों में हुई लगातार बारिश ने किसानों की कमर तोड़ दी है। ठंड के मौसम में हुई यह बेमौसम बारिश खेतों में खड़ी फसलों को चौपट कर गई। जहां कभी मूंगफली, सरसों और चने की लहलहाती फसलें दिखती थीं वहां अब पानी और कीचड़ के सिवा कुछ नहीं बचा। महोबा, हमीरपुर, झांसी, चित्रकूट और आसपास के ज़िलों में खेतों में पानी भर गया है। कई जगहों पर तो किसान कहते हैं “हमारी सालभर की मेहनत बारिश में बह गई।”
यह बारिश सिर्फ एक मौसम की गलती नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन का भी साफ़ असर है जब ठंड के महीने में भी बादल गरजते हैं बिजली कड़कती है और खेत डूब जाते हैं।
किसान अब परेशान हैं क्योंकि बीज, खाद और मेहनत में लगी सारी पूंजी मिट्टी में मिल गई। जिनके घर का खर्च इन्हीं फसलों पर चलता है वे अब सोच में हैं कि आगे खाएंगे क्या और बोएंगे कैसे?
अब जानते हैं कि बारिश के कारण फसलों की क्या स्थिति है।
मूंगफली के खराब होने से किसान और जानवर दोनों के लिए गंभीर चिंता
उत्तर प्रदेश के महोबा के ब्लॉक जैतपुर के गांव कमरपुरा, जिला महोबा में 21 तारीख को हुई तेज बारिश ने किसानों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। बारिश में खेतों में पड़ी मूंगफली और उसका भूसा सड़ गया जिससे जानवरों के खाने तक का संकट खड़ा हो गया है। किसान हरिश्चंद्र, प्रभादेवी और दुर्गा देवी बताते हैं कि पहले मूंगफली का भूसा साल भर के लिए जानवरों के चारे का बड़ा सहारा होता था जो अब पूरी तरह खराब हो चुका है। वे चिंता में हैं कि आने वाले ठंड के मौसम में जानवरों को क्या खिलाएंगे? बता दें महोबा में मूंगफली सबसे अहम फसल है यानि यही वहां के किसानों की आजीविका का मुख्य आधार है। इसी फसल के कमाई से परिवार की जरूरतें पूरी होती हैं। लेकिन इस बार बेमौसम बारिश ने इसे बर्बाद कर दिया है और किसानों की मेहनत पानी में बह गई है। महोबा की मिट्टी मुख्य रूप से उपजाऊ लाल और दोमट मिट्टी है जो मूंगफली जैसी फसलों के लिए बहुत अनुकूल मानी जाती है। यही मिट्टी किसानों की मेहनत और बीज को अच्छी पैदावार में बदलती है। लेकिन इस बार लगातार हुई बारिश ने उपजाऊ ज़मीन को भी पानी में डुबो दिया और मूंगफली की फसल बर्बाद हो गई।
किसानों की परेशानी सिर्फ अपने पेट की चिंता तक ही सीमित नहीं है। अब उन्हें यह भी सोचना पड़ रहा है कि अपने जानवरों को क्या खिलाएं। पूरी मूंगफली की फसल और उसका भूंसा बारिश में सड़ गया है जिससे पशुओं के लिए खाना भी खत्म हो गया है। इंसान किसी तरह अपनी भूख मिटा लेता है लेकिन जानवरों का क्या? अब आने वाले समय में कई किसानों को अपने पशुओं को गूचड़खानों में भेजना पड़ सकता है क्योंकि खाने के लिए कुछ बचा ही नहीं है। यह सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं बल्कि उनके लिए एक बड़ा मानसिक और भावनात्मक दर्द भी है क्योंकि किसान अपने पशुओं को सिर्फ पालन-पोषण नहीं मानते वे उनके साथ अपने जीवन का एक अहम हिस्सा होते हैं।
गांव के ग्रामीण किसानों से बात करने पर आनंद सिंह बताते हैं कि जानवर ऐसे खाना खाते नहीं क्योंकि सड़े हुए भूंसे से अलग तरह की बदबू होती है। अगर जानवर खा भी लिए तो वो बीमार पड़ जाएंगे। फसल जानवर के खाने लायक़ भी नहीं बच पाए हैं।
जयवंत सिंह बताते हैं कि इस बारिश से पूरी मूंगफली खराब हो गई है। उन्होंने बताया कि लगभग 70 प्रतिशत मूंगफली खराब हुई हैं और ये बर्बादी गांव के आधे लोगों के साथ हुई है। उन्होंने कहा कि “हम किसानी भी करते हैं और पढ़ने लिखने वाले स्टूडेंट हैं तो हम सरकार से यही मांग करेंगे कि अधिकारी को भेजें और सभी के खेतों का जायज़ा ले और किसानों को इसका उचित रेट दिलवाएं।”
महोबा के पशुचिकित्सक डॉ संजय राजपूत का इस पर कहना था कि “भूसा खराब है तो न खिलाएं जानवरों को साफ चीजें खिलाएं। गांव के ही एक ग्रामीण कहते हैं कि “किसी को दर्द नहीं है किसान का न जनता का जिसको भी अपना बनाते हैं वो भेजते हैं सरकार को कि चलो हमको राहत मिलेगी वही अपना उल्लू सीधा करने में लग जाते हैं।” महोबा की जीवन रेखा कही जाने वाली मूँगफली अब बेमौसम बारिश से बर्बाद हो गई है और इसके साथ ही किसानों और उनके पशुओं की चिंता भी बढ़ गई है।
अब यह बेमौसम बारिश में सड़ी हुई फसलें केवल उनके पेट ही नहीं बल्कि उनके साथ पल रहे पशुओं का जीवन भी संकट में आ गया है। किसान की चिंता अब सिर्फ आर्थिक नहीं रह गई अब चिंता उस रिश्ते की भी है जो वह अपने पशुओं के साथ निभाता आया है।
बारिश से फसल खराब होने से आक्रोशित किसान पहुंचे ज़िला मुख्यालय
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के ग्रामीण भी लगातार बारिश से बुरी तरह परेशान हैं। यहां धान की फसल पूरी तरह से खराब हो गई है, जिससे किसान गंभीर संकट में हैं। ज़िले के किसानों ने जिला मुख्यालय जाकर प्रदर्शन किया और सरकार से आर्थिक मदद की मांग की। जौरही गांव के श्यामबाबू पटेरिया बताते हैं कि बारिश में उनका खेत पानी में डूब गया और चार-पाँच लाख रुपये की मेहनत पानी में चली गई। उनका कहना है कि खेती ही उनका पूरा आजीविका का साधन है और अब घर के खर्च, बहन की शादी और मां के इलाज के लिए भी चिंता बढ़ गई है।
किसान खेतों से पानी निकालने की कोशिश में लगे हैं लेकिन ज़मीन इतनी भीगी है कि फसल निकालना मुश्किल है। अगर जल्द मदद नहीं मिली तो उनकी रोज़ी-रोटी और आने वाली फसल दोनों ही खतरे में हैं। खेतों में भरा पानी नहीं निकल पाया है था जिससे बाकी फसलें बोने या पैदावार करने की संभावना लगभग खत्म हो गई थी। वर्तमान में अगर अगली फसल भी नहीं हो पाई तो किसान भुखमरी जैसी स्थिति में आ सकते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि प्रशासन उनकी तकलीफ़ नहीं सुना जाएगा तो वे बड़ा आंदोलन करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि गांव का सही सर्वे नहीं हुआ। कुछ लोगों ने बताया कि लेखपाल जरूर आया लेकिन केवल चेक करने के बाद वापस चला गया।
किसान सोबरन सिंह ने बताया कि जौरही गांव में लगभग सौ प्रतिशत किसान रहते हैं और सभी की फसल करते हैं। उन्होंने बताया कि उनका मुख्य फसल धान ही है इसके अलावा और फसल नहीं करते हैं। वे कहते हैं “इस बार की सभी फसल तो खराब हो गई लेकिन हमें अगले साल की फसल की चिंता है। बीज के लिए कुछ नहीं है हमारे पास और खेत का हालत खराब है पानी से। फूलचंद शिवहरे कहते हैं “हमारा छः बीघे में खेती है और वो भी पूरी तरीके से पानी में डूब गई है। हमारे लिए अब जीने मरने का सवाल है। क्या हम खाएँ, क्या जानवर पाले और क्या बच्चों को खिलाएँ।”
राघव चंद्र जो बारिश से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं कहते हैं “सरकार बिलकुल चुप बैठी है। कहते हैं कि किसानों को कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन सरकार को समझना चाहिए कि किसान से ही सरकार चलती है। अगर किसान सड़क पर आ जाए तो सरकार भी सड़क पर होगी।” इस मामले में किसान मजदूर यूनियन के प्रमोद आज़ाद ने भी अपनी बात रखी। वे खुद किसानों के साथ ज़िला मुख्यालय पहुंचे थे और कहते हैं “बेमौसम बारिश ने इन किसानों के सपनों में पानी फेर दिया। अब वे आखिर कहां जाएं? यह सिर्फ एक गांव की नहीं पूरे जनपद की स्थिति है। अधिकारियों का कहना है कि नुकसान सिर्फ 15 प्रतिशत है लेकिन सच्चाई इससे कहीं ज्यादा गंभीर है।”
ग्रामीणों ने कहा कि उनकी बस यही मांग है कि उन्हें उचित मुआवजा मिले और गांव का सही सर्वे किया जाए। सभी किसान मिलकर ज़िला अधिकारी से मिलने पहुंचे लेकिन किसी से भी उनकी मुलाकात नहीं हो पाई। वे लोग जिनकी मेहनत से घर चलता है और देश का अन्न बढ़ता है आज एक-एक दाने के लिए परेशान हैं। सिटी मजिस्ट्रेट संदीप केला ने किसानों का ज्ञापन लिया और कहा कि वह इस मुद्दे को आगे बढ़ाएंगे।
बेमौसम बारिश ने सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के किसानों की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। पन्ना ज़िले के किसान लगातार हो रही वर्षा से फसलों के नुकसान को लेकर बेहद चिंतित और परेशान हैं।
बेमौसम बारिश से पन्ना के किसान बेहाल, फसलों को भारी नुकसान की आशंका
मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में बेमौसम बारिश ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। लगातार बारिश के चलते खेतों में खड़ी फसलें खराब हो रही हैं और किसान भारी नुकसान झेल रहे हैं। जहां एक ओर किसानों ने उम्मीदों से अपनी फसल बोई थी वहीं अब वही खेत चिंता का कारण बन गए हैं। कई जगहों पर धान सोयाबीन और सब्जियों की फसलें गल रही हैं। किसानों का कहना है कि अगर बारिश जल्द नहीं रुकी तो पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी।
ग्राम बघा के रहेने वाले रामचंद पटेल अपने खराब फसल को छाँटने में मेहनत कर रहे थे। ताकि फसल का कुछ हिस्सा तो हाथ लग पाए। उनका कहना था कि उन्होंने पांच एकड़ में मूंगफली की खेती की थी जो बारिश में सड़ चुकी है। उन्होंने बताया कि इस फसल में उनकी 50 हजार की लागत और सोयाबीन में 30 हजार की लागत लगी। उनका लगभग डेढ़ लाख का नुक़सान हो गया है। उन्होंने कहा “अब जितनी फसल बची है जिसे हम छाँट रहे हैं उसमें से बीज के लिए सिर्फ तीन से चार बोरी मूंगफली ही बच पाया है। इस फसल से हमारी मज़दूरी भी नहीं निकल पाएगी। गांव में लगभग लोगों की यही स्थिति है।
बघा गांव की एक ग्रामीण महिला बताती हैं कि इस साल उन्हें फसल खराब होने के कारण काफी नुक़सान हुआ है। “उदास लगता है हम दिन रात एक कर के इस फसल के लिए मेहनत करते हैं और जब कुछ मिल ही नहीं पता।” उन्होंने बताया इतनी ख़राबी होने के बाद भी अभी तक कोई प्रशासन या अधिकारी नहीं आया है। “न कोई पटवारी और न ही कोई अधिकारी” वे कहती हैं “हमें प्रशासन से कोई आशा नहीं है। इससे साफ दिख रहा है कि इस साल नवंबर में किसानों की हालत बेहद कठिन है। न तो वे खरीफ़ की फसल समय पर निकाल पा रहे हैं और न ही रबी की बुवाई के लिए उनके पास पर्याप्त बीज बचे हैं। मजबूरी में किसान बारिश जारी रहने के बावजूद मूंगफली की फसल काटने और छांटने पर मजबूर हैं ताकि कम से कम रबी की फसल के लिए कुछ अनाज बचाया जा सके।
बांदा जिले के पलरा गांव में भी धान की फसल बारिश से तबाह
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के पलरा गांव में किसानों पर प्रकृति का कहर टूटा है। लगातार तीन दिनों की बेमौसम बारिश ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। धान की फसल खेतों में गिरकर सड़ रही है बाली खोखली हो गई है और किसान अब पूरी तरह से नुकसान में हैं। हार्वेस्टर मशीन खेतों में नहीं चल पा रही इसलिए मजदूरों से कटाई करवाई जा रही है।
पलरा गांव के किसानों का कहना है कि बिना मौसम के लगातार बारिश के कारण उनका भारी नुक़सान हुआ है। खेतों के सारे धान गिर गए गयें हैं। धान के अंदर बीज नहीं है।
महिलाएं कहती हैं इतनी मेहनत करने के बाद भी मेहनत भर नहीं निकलती किसान हर तरफ से पिस रहा है। गांव की शांति बतलाती हैं कि “हमारी पूरी की पूरी फसल बारिश ले गई है अब तो लगता है जैसे मरने वाले दिन हैं। जो मशीन होता है वो भी फसल काटने को तैयार नहीं है क्योंकि धान ज़मीन में धस गई है। मज़दूरों को देने के लिए पैसे भी नहीं है क्योंकि कुछ मिल ही नहीं पा रहा है। जितना हाथ में आया बस उतना ही है। इस साल बाकी फसल में आग लग गई है।” उनका ये भी कहना था कि हमने साल भर बहुत मेहनत किया। किसानों ने दिन-रात मेहनत की अँधेरे में साँप-बिच्छुओं के खतरे को भी नजरअंदाज़ किया, अपनी जान तक जोखिम में डाली लेकिन फिर भी उनके हाथ खाली ही रह गए।
गांव की कलमतिया कहती हैं कि “इस साल हमें जितना मिला हमें अब उस पर ही गुज़ारा करना पड़ेगा। मजबूरी है पेट तो भरना है। कैसे भी जितना फसल हमारे हिस्से में रहेगा बारिश के बाद उसमें गुज़ारा करना होगा।” उन्होंने बताया कि जो धान ज़मीन पर गिर या झुक जाता है उस पर दाना (अनाज) नहीं बनता है।
किसान लवकुश धीरे-से बताते हैं “हमारे दस बीघे में धान खड़ा था लेकिन सब बारिश से बर्बाद हो गया। मशीन से कटवाना भी संभव नहीं है क्योंकि भीगी हुई फसल मशीन में नहीं चलती और मज़दूरों को देने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं। मेहनत ज़्यादा होने की वजह से मजदूरी भी बहुत लगती है। अब दूसरी फसल बोने की भी कोई संभावना नहीं बची है।”
उन्होंने बताया कि एक बीघे की लागत ही कम से कम दस हज़ार रुपये आती है। अगर बारिश न होती तो इतना नुकसान नहीं होता। “इस साल तो हमारी सिर्फ लागत ही निकल पाएगी न मेहनत का फायदा मिलेगा न कोई बचत। कुछ हाथ में आएगा ही नहीं।”
बारिश के कारण खेत बना तालाब
उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले का न्युरिया गांव, जहाँ मूंग, उर्द, तिली और मूंगफली की खेती अधिक होती है, वहां के किसान इस बार खराब फसल से बेहद परेशान हैं। न्युरिया के किसान जगदेव के लिए तो जैसे आसमान ही टूट पड़ा हो। छोटा-सा घर और गुज़ारे का सहारा केवल यही फसलें लेकिन लगातार बारिश ने उनका सब कुछ चौपट कर दिया। उनका कहना है कि छह बीघे खेत में उन्होंने वही पारंपरिक फसलें बोई थीं पर अब वहाँ कुछ भी नहीं बचा है।
संतोष बाई बताती हैं “हम पूरा जीवन खेती पर ही निर्भर हैं लेकिन बारिश ने सब छीन लिया। अब हमारे पास कुछ भी नहीं बचा। न समझ आ रहा है क्या खाएँ, क्या करें और बच्चों को कैसे खिलाएँ।” वे कहती हैं कि वे बड़े किसान नहीं, छोटे किसान हैं कभी खेती, कभी मज़दूरी करके घर चलता था, लेकिन अब तो फसल पूरी तरह खत्म हो चुकी है।
श्याम देवी का कहना है कि अब उनके पास कोई और सहारा नहीं बचा। “हम अब सिर्फ सरकार की मदद पर ही निर्भर हैं… और कोई रास्ता नहीं है।”
जलवायु परिवर्तन की मार और किसानों का टूटता धैर्य
अब सवाल यह है कि आखिर ऐसी बेमौसम बारिश बार-बार क्यों हो रही है? क्या यह सिर्फ एक मौसम की लापरवाही है या सच में जलवायु परिवर्तन का असर, हमारे दरवाजे पर खड़ा हो चुका है? मौसम के बदलते पैटर्न ने किसानों की जिंदगी ही उलट दी है। कभी धूप की जगह अचानक बादल आ जाते हैं कभी फसल पकने के वक्त ओले पड़ जाते हैं, और कभी जहां बरसात होनी चाहिए वहां सूखा पड़ जाता है। इन अनिश्चित मौसमों की सबसे भारी मार किसान ही झेलते हैं।
जब पर्यावरण बिगड़ता है तब सबसे पहले और सबसे ज़्यादा असर किसानों पर होता है। इस साल भारी बारिश और बाढ़ ने देश के कई राज्यों में तबाही मचा दी है। जिसका एक कारण है जलवायु परिवर्तन। बे मौसम बारिश, कहीं बादल फटना कहीं भूस्खलन, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा। ये सारी परेशानियों का जड़ है जलवायु परिवर्तन जिसका सबसे घातक मार किसानों को पड़ता है। खाद, बीमा जैसे कई मुसीबतों का तो सामना करना पड़ ही रहा है लेकिन जलवायु परिवर्तन दोहरा होता है। किसानों को ये पता होता है कि कब खेती करना है, किस मौसम में बारिश होती है, कब सूखा होगा, कब खेतों को क्या जरुरत है। ऐसी सभी जानकारी उन्हें होती है और वे उसके ही हिसाब से अपना हर मौसम के लिए तैयारी रखते हैं। लेकिन कुछ सालों से मौसम ने अपना समय बदल लिया है। कभी भी बारिश अचानक बाढ़ और जब जरुरत हो तो ज़मीन सूखा पड़ा होता है। इसका असर जलवायु परिवर्तन ही है। मौसम अब किसान का दोस्त नहीं रहा। यह सबसे बड़ा बदलाव है।
जो किसान अपनी मिट्टी से सोना उगाते हैं आज उन्हें उसी मिट्टी से दो अनाज बचाने के लिए तरसना पड़ रहा है। खेतों को हर साल सींचने वाले हाथ अब खुद मदद के लिए फैले हुए हैं। कहीं पशुओं के खाने की चिंता कहीं बीज न बच पाने का डर, और कहीं साल भर की कमाई बारिश में बह जाने की पीड़ा यह दृश्य दिल को झकझोर देने वाला है।
क्या कहता है विज्ञान
भारतीय मौसम विभाग (IMD,आईएमडी) और वैश्विक पर्यावरण रिपोर्टों की मानें तो जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून चक्र पहले से कहीं अधिक अनियमित और तीव्र हो गया है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे समुद्र का तापमान बड़ रहा है। नतीजा यह हो रहा है कि बारिश की तीव्रता अधिक हो रही है और कभी-कभी एक दिन में पूरे महीने जितनी बारिश हो रही है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु संकट अब चेतावनी का नहीं बल्कि आपातकाल का विषय बन चुका है।
जलवायु परिवर्तन का कारण
जलवायु परिवर्तन का कुछ कारण हमने ऊपर देखा जैसे कार, फ़ैक्ट्री, एयर कंडीशनर, थर्मल प्लांट जैसे कोयला आदि। जलवायु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है तेजी से करोड़ों के मात्रा में वनों की कटाई। वनों की अंधाधुंध कटाई ने भूमि की जल अवशोषण क्षमता को कम कर दिया है। इससे न केवल गर्मियों में पानी की कमी हो रही है बल्कि बारिश के समय बाढ़ की तीव्रता भी बढ़ गई है।
इन्हीं जलवायु परिवर्तन का असली मार किसान झेल रहे हैं।
किसानों के फसल खराब होने से देश में प्रभाव
बेमौसम बारिश से किसानों की फसल खराब होने का असर केवल खेतों तक सीमित नहीं रहता बल्कि पूरे देश पर गहरा प्रभाव डालता है। जब बड़े पैमाने पर फसलें नष्ट हो जाती हैं तो बाजार में अनाज, दालें और सब्ज़ियों की कमी होने लगती है जिससे महंगाई बढ़ती है और आम लोगों की रसोई तक इसका असर पहुँचता है। किसानों की आय घटने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ती है, मजदूरों को काम नहीं मिलता और बेरोज़गारी बढ़ती है। लगातार नुकसान से किसान कर्ज़ में डूब जाते हैं, जिससे मानसिक तनाव और आत्महत्या जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं। उत्पादन घटने पर देश को कृषि उत्पाद आयात करने पड़ते हैं जिससे आर्थिक बोझ बढ़ता है। कुल मिलाकर, बेमौसम बारिश न सिर्फ किसान की कमर तोड़ती है बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिरता पर भी भारी असर डालती है।
किसानों की प्रशासन से मांग
कई गांवों के किसान प्रशासन के पास मदद मांगते हुए पहुँचे लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन मिला राहत नहीं। सही सर्वे नहीं हुआ मुआवज़ा नहीं मिला और हालात इतने बदतर हो गए कि किसान अपने ही खेतों के बीच खड़े होकर बेबसी का रोना रोने को मजबूर हैं। देश का पेट भरने वाला किसान आज खुद दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है।
बेमौसम बारिश की यह मार सिर्फ एक मौसम की दुर्घटना नहीं बल्कि उस प्रशासनिक उदासीनता का भी आईना है जो किसानों की पीड़ा को कागज़ों से आगे देखने को तैयार नहीं। एक तरफ खेत सड़ रहे हैं जानवरों के लिए चारा नहीं बचा, बीज और कर्ज़ में डूबे किसान अगली फसल की उम्मीद भी खो रहे हैं। दूसरी तरफ राहत और मुआवज़े की प्रक्रिया आज भी कछुआ-गति से चल रही है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब नुकसान हर साल बढ़ता जा रहा है तो समाधान अब तक क्यों नहीं बढ़ा?
जब बेमौसम बारिश नई वास्तविकता बन चुकी है तो सरकार की तैयारी और नीतियाँ पुरानी क्यों पड़ी हैं?
और जब किसान ही टूट गया तो कृषि और ग्रामीण भारत कैसे बचेगा? किसान अब सिर्फ नुकसान नहीं सह रहा बल्कि उम्मीद खो रहा है। अभी राहत काग़जों से निकलकर खेतों तक पहुंचने की जरुरत है और किसानों की आवाज़ सिर्फ सुनी न जाए बल्कि उस पर ठोस कार्रवाई भी हो। इसी तरह की परेशानियों के कारण आत्महत्या करने को भी मजबूर हो जाते हैं
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